Vande Bharat Express: प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 15 फरवरी, 2019 को पहले वंदे भारत का उद्घाटन किए जाने के चार साल हो चुके हैं। अब देशी में ऐसी सेमी हाई स्पीड 10 ट्रेनें हैं। सभी ट्रेन चमकदार नीले रंग की पट्टी के साथ चमकदार सफेद रंग में रंगी हुई हैं। देश में अभी इस तरह की 400 और ट्रेन बनने वाली हैं। चेन्नई की इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (ICF) में सेमी-हाई स्पीड वंदे भारत ट्रेन बनाई गई थी। वंदे भारत एक्सप्रेस को पहले ट्रेन 18 के नाम से जाना जाता था।
ट्रेन 18 को साकार करने वाले इंजीनियर्स
एक भारतीय सेमी-हाई स्पीड ट्रेन और भारत की पहली बिना इंजन की ट्रेन वंदे भारत एक्सप्रेस पूरी तरह से भारत में डिजाइन और निर्मित होने वाली पहली ट्रेन भी है। इंडियन एक्सप्रेस ने इंजीनियरों की मूल टीम से बात की, जिन्होंने 180 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली स्व-चालित ट्रेन के सपने का साकार किया। वे इसकी उपलब्धियों और बहुत सी पहली बातों का बखान गौरवान्वित माता-पिता की तरह करते हैं।

मनीष प्रधान
मनीष प्रधान पहली वंदे भारत ट्रेनों के साज-सामान के प्रभारी इंजीनियर थे। प्रधान साल 2018 में चेन्नई की इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (ICF) में भारत के पहले सेमी-हाई स्पीड ट्रेनसेट को डिज़ाइन करने वाले इंजीनियरों के प्रेरक समूह का एक हिस्सा थे। मनीष प्रधान ने मजाक में कहा, “भारतीय ट्रेनें कभी भी सफेद नहीं होती हैं, क्योंकि भारत में हमारी मान्यता है कि कुछ भी सफेद तेजी से गंदा दिखाई देगा। तो, हमने फैसला किया कि हमारी ट्रेन पूरी तरह सफेद होगी और यह गंदी नहीं दिखेगी।”
शुभ्रांशु
उस समय टीम का नेतृत्व कर रहे यूनिट के प्रिंसिपल चीफ मैकेनिकल इंजीनियर शुभ्रांशु कहते हैं, “हमने सफेद और नीले रंग पर ध्यान केंद्रित करने से पहले लाल और काले, क्रीम और लाल रंग की कोशिश की।” उन्होंने कहा, ‘हमने इसे एक लग्जरी कार की तरह पेंट किया है न कि ट्रेन की तरह। इसमें पेंट की छह परतें होती हैं और अंतिम एक पारदर्शी परत होती है जो धूल को दूर भगाती है।
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एस श्रीनिवास
परियोजना के मुख्य डिजाइन इंजीनियर मैकेनिकल एस श्रीनिवास कहते हैं, “मैंने देखा कि यूरोप में ट्रेनों के दरवाजे खोले जाने पर पीछे हटने की जगह थी। मैंने कहा हमारी ट्रेन में यह भी होना चाहिए। फिर वहां एक साथ बनी खिड़की है … मैंने कहा चलो एक ऐसा प्रभाव पैदा करते हैं जो पूरी ट्रेन में एक गिलास की तरह दिखे, भले ही वे अलग-अलग खिड़कियां हों। अब देखिए, हर कोई इसे पसंद करता है।”
देबी प्रसाद दास
प्रोजेक्ट के मुख्य डिजाइन इंजीनियर इलेक्ट्रिकल देबी प्रसाद दास कहते हैं कि सीसीटीवी कैमरा लगाना एक अच्छा टच था। उन्होंने बताया, “मैंने कहा कि चालक यात्रियों और प्लेटफार्मों को देखने के लिए बाहर और अंदर सीसीटीवी कैमरे रखें। कुछ लोग कहते थे, क्या जरूरत है… लेकिन आज आप देखिए, उन कैमरों में कैद फुटेज ने उस लड़के की पहचान कर ली, जो बंगाल में वंदे भारत पर पत्थर फेंक रहा था।”
ICF के तत्कालीन महाप्रबंधक सुधांशु मणि
जिस शख्स ने देश के लिए इस चुनौती को स्वीकारा वह आईसीएफ के तत्कालीन महाप्रबंधक सुधांशु मणि थे। साल 1955 में स्विस सहयोग से देश में अपनी ट्रेन बनाने में बढ़त देने के लिए यह कारखाना स्थापित किया गया था। इसके खुलने के एक साल बाद, चीनी प्रीमियर चाउ एन लाई ने इस यहां का दौरा किया और आगंतुक पुस्तिका में लिखा कि वह चाहते हैं कि चीनी इंजीनियर आईसीएफ से सीखें। मणि कहते हैं, “चीन दुनिया भर से ट्रेनों का आयात करता था जब तक कि एक दिन उन्होंने कहा, बस हो गया … फिर उन्होंने अपनी हाई स्पीड ट्रेनें बनाना शुरू कर दिया। मैंने मन ही मन सोचा, हम क्यों नहीं कर सकते?” रेलवे में मैकेनिकल इंजीनियरिंग सेवा में कार्यरत मणि दिसंबर 2018 में ICF से सेवानिवृत्त हुए और जल्दी ही इंटरनेट पर वंदे भारत की कहानी के प्रचारक बन गए।
प्रोजेक्ट को मंज़ूरी दिलाने के लिए एक “टॉप मैन” के पैरों पर गिरना पड़ा
तीन साल पहले हैदराबाद में अपनी अब तक की चर्चित TEDx Talk में उन्होंने कहा था कि रेल मंत्रालय से प्रोजेक्ट (और पैसे) को मंज़ूरी दिलाने के लिए उन्हें एक “टॉप मैन” के पैरों पर गिरना पड़ा था। हालांकि मणि ने कभी यह नहीं बताया कि एक महाप्रबंधक रिटायर होने के सिर्फ दो साल के भीतर एक विश्व स्तरीय ट्रेनसेट बनाने का काम क्यों करेगा। मणि कहते हैं, “किसी ने मुझे इसके लिए नहीं रखा। यह मेरा अपना गुस्सा था। आप अपनी आँखें बंद करते हैं, और भारत में ट्रेनों की केवल एक छवि आती है। वह छवि दशकों तक वैसी ही बनी रही। हम इसे क्यों नहीं बदल सके?”