केंद्र सरकार की ओर से एक पखवाड़े के भीतर लाए गए अहम अध्यदेशों पर उनके ही तीन मंत्रियों ने आपत्ति दर्ज कराई है। बिलों को पारित कराने में संसद में आए अवरोध के कारण नरेंद्र मोदी सरकार ने अध्यादेश का रास्ता अपनाया था। इनमें भूमि अधिग्रहण, खदानों से जुड़ा अहम अध्यादेश भी है। भूमि अधिग्रहण पुनर्वास कानून 2013 में संशोधन के अलावा कैबिनेट में दूसरे अध्यादेशों को लेकर भी मतभेद देखने को मिले हैं। विपक्ष इन अध्यादेशों को लेकर सरकार के खिलाफ अपना विरोध पहले ही प्रकट कर चुका है।

तीन मंत्रियों के विरोध ने सरकार की दुविधा बढ़ा दी है। इन मंत्रियों ने सरकार से सवाल किया है कि राष्ट्रपति अध्यादेशों को मंजूरी न दें तो क्या होगा। भूमि अधिग्रहण कानून पर राज्यों से मशविरा क्यों नहीं किया गया। मंत्रियों ने पूछा है कि अगर अध्यादेश के जरिए यह संशोधन लागू हुआ तो कानून कितना पुख्ता होगा।

सूत्रों का कहना है कि 29 दिसब्ांर को कैबिनेट की बैठक में कुछ अध्यादेशो को मंजूरी दी गई तो दो मंत्रियों ने विरोध किया था। उनका कहना था कि अध्यादेशों को जारी कर मोदी सरकार पूर्ववर्ती मनमोहन सरकार के रास्ते पर जा रही है। वह भी संसद में कानून पास कराने में असफल है। कैबिनेट की यह पहली बैठक थी जिसमें मतभेद खुलकर सामने आए। तीन मंत्रियों ने इस बात की पुष्टि की कि भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन के अध्यादेश को लेकर उन्होंने सरकार से सवाल किए।

सूत्रों का कहना है कि दो मंत्रियों ने आशंका जताई है कि अगर अध्यादेशों पर सरकार की जल्दबाजी को लेकर राष्ट्रपति ने इन्हें लौटा दिया तो क्या होगा। एक अन्य मंत्री ने कहा है कि कुछ अन्य अध्यादेशों को बजट सत्र तक रोक कर रखना चाहिए। सोमवार को खदानों को लेकर जारी अध्यादेश पर भी तीन मंत्रियों ने असहमति जताई थी।

इस बीच भूमि अधिग्रहण, कोयला और खानों को लेकर अध्यादेश लाए जाने के खिलाफ जनता परिवार के दल भी लामबंद हो रहे हैं। वे संयुक्त रूप से आंदोलन शुरू करेंगे। जद (एकी) अध्यक्ष शरद यादव ने आरोप लगाया है कि ये अध्यादेश नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से भारत और विदेश के अपने उद्योगपति समर्थकों को दिए गए उपहार हैं।

शरद यादव ने बुधवार को संवाददाताओं को बताया कि समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव संयुक्त आंदोलन के लिए रणनीति तैयार करने के मकसद से गुरुवार को दिल्ली पहुंचेंगे। इसे लेकर तृणमूल कांग्रेस और वाम दलों के साथ भी बातचीत चल रही है। तृणमूल कांग्रेस ने भी अध्यादेश को लेकर तीखी प्रतिक्रिया जताई है। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और जद (एकी) के वरिष्ठ नेता नीतीश कुमार के भी गुरुवार को दिल्ली पहुंचने की संभावना है।

शरद यादव ने आरोप लगाया कि इस सरकार ने उन कानूनों को नष्ट कर दिया जो राष्ट्रीय संपत्ति और संसाधनों की रक्षा के लिए थे। सरकार ने यहां और विदेशों में अपने समर्थकों व बहुराष्ट्रीय कंपनियों को यह संदेश दिया है कि कृपया यहां आइए क्योंकि हमने आपके लिए मैदान खाली कर दिया है।

जद (एकी) अध्यक्ष ने राजग सरकार पर विपक्ष की अनदेखी कर लोकतंत्र पर लगातार आघात करने का आरोप लगाते हुए कहा कि एकदलीय शासन ज्यादा नहीं चल सकेगा। उन्होंने सरकार के खिलाफ जल्दी ही संसद से लेकर सड़क तक कार्रवाई करने का एलान किया। उन्होंने कहा कि संवैधानिक प्रक्रिया को दरकिनार कर अध्यादेश पारित करने की व्यवस्था ज्यादा देर तक नहीं चल पाएगी।

उन्होंने कहा कि जब से यह सरकार सत्ता में आई है, तब से यह लगता है कि वह यह सोच रही है कि एक दल की ही चलेगी। यूपीए के शासन काल में यही भाजपा कहती थी कि आपात स्थिति में ही देश हित में अध्यादेश पारित होने चाहिए। आज वही भाजपा संसद का सत्र खत्म होने के बाद अध्यादेश पारित कर रही है। संसद के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ कि सत्र स्थगित होने के बाद अध्यादेशों की एक कड़ी पारित हो। हमने आपातकाल के दौरान भी ऐसा नहीं देखा था, जब लगातार अध्यादेश जारी किए गए थे।

उन्होंने कहा कि चुनी हुई सरकार द्वारा लगातार अध्यादेश जारी करने की राह अपनाना प्रजातंत्र के लिए बहुत बड़ा खतरा है। यह इस बात को दर्शाता है कि सरकार गंभीर कानूनों पर बहस करने में असमर्थ है। सरकार जहां एक ओर प्रजातांत्रिक प्रक्रिया को खत्म कर रही है वहीं दूसरी ओर वह अपने लक्ष्य को पाने में असफल साबित हुई है।