पिछले शुक्रवार को जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के सिंगल जज बेंच ने जम्मू-कश्मीर एचसी बार एसोसिएशन के अध्यक्ष मियां कयूम द्वारा पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) के तहत उन्हें हिरासत में लिए जाने को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया था। बेंच ने पाया कि अदालत “एक व्यक्ति को हिरासत में लेने के लिए प्रशासनिक निर्णय को योग्यता की जांच करने के लिए उचित मंच नहीं है” और इस तरह की नजरबंदी “सबूत पर आधारित नहीं है”।

लेकिन पीएसए से जुड़े पहले के दो अन्य फैसले, जिसे उसी हाईकोर्ट के दूसरे सिंगल जज बेंच द्वारा पास किया गया था, ने प्रशासनिक आदेश को खारिज कर दिया था। बेंच ने रेखांकित किया था कि प्रिवेंटिव डिटेंशन “बिना जांच के किसी व्यक्ति को हिरासत में रखने के लिए एक औजार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है”।

संयोग से न्यायमूर्ति संजीव कुमार ने हिरासत के आदेशों की जांच की थी, जो उन्होंने बाद में खारिज कर दीं थी। उन्होंने कहा था, “प्रिवेंटिव डिटेंशन के तहत किसी भी प्रकार के अपराध को रोकने के लिए बिना किसी मुकदमे के व्यक्ति को हिरासत में लेना शामिल है लेकिन इस हिरासत को सामान्य कानून का विकल्प नहीं बनाया जा सकता है।

यह जस्टिस ताशी राबस्टर द्वारा की गई टिप्पणियों के विपरीत था, जिन्होंने पिछले शुक्रवार को कहा था कि कार्यकारी के पास “प्रिवेंटिव डिटेंशन का आदेश देने के लिए जरूरी शक्तियां हैं” और “किसी व्यक्ति को हिरासत में लेने या न लेने के लिए डिटेनिंग ऑथरिटी की व्यक्तिपरक संतुष्टि के उद्देशय की जांच के लिए कोर्ट नहीं खुला है”।

जस्टिस राबस्टर ने तीन अन्य व्यापक टिप्पणियां भी कीं। पहली ये कि एक हाईकोर्ट डिटेनिंग ऑथरिटी के निर्णय पर अपील में नहीं बैठता है डिटेनिंग ऑथरिटी पर अपनी राय नहीं रख सकता है। दूसरी ये कि कोर्ट इस सवाल पर भी नहीं जाती हैं कि हिरासत में लिए गए तथ्य के आधार सही हैं या गलत। और तीसरा ये कि  हाईकोर्ट “इस आधार पर हस्तक्षेप नहीं कर सकता है कि इस तथ्य को देखते हुए कि समय बदल गया है, आगे की नजरबंदी गलत होगी”।