Jammu Kashmir Assembly Elections: दिल्ली हाईकोर्ट ने बारामूला के लोकसभा सांसद राशिद इंजीनियर को 2 अक्टूबर तक बेल दी है। उन्हें बेल मिलने के बाद कश्मीर में उनके समर्थक उत्साहित हैं। राशिद इंजीनियर को बेल मिलने को को लेकर जब मीडिया ने जम्मू-कश्मीर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला से सवाल किए तो उन्होंने कहा, “हमें तो मालूम था, कहीं न कहीं ये होगा…”
उन्होंने मीडिया से बातचीत में कहा, “मुझे तो अफसोस बारामूला संसदीय सीट के लोगों के लिए है क्योंकि ये बेल उन्हें उनकी खिदमत के लिए नहीं मिली है, ये बेल उन्हें संसद में हिस्सा लेने के लिए नहीं मिली है, ये बेल संसद सदस्य के रूप में काम करने के लिए नहीं मिली है। ये बेल मिली है सिर्फ और सिर्फ वोट हासिल करने के लिए… इसके बाद उसे वापस तिहाड़ जाना होगा और नॉर्थ कश्मीर के लोग वापस एक नुमाइंदे के बिना होंगे। अब वोटर इसको किस तरह से लेगा और इस फैसले का उनपर क्या असर होगा, हम देखेंगे।”
प्रचार के लिए राशिद ने दायर की थी याचिका
इंजीनियर राशिद की तरफ से जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों में प्रचार करने के लिए अंतरिम जमानत का अनुरोध करते हुए अदालत में याचिका दायर की थी। वह आतंकवादी गतिविधियों के वित्तपोषण मामले में जेल में बंद हैं। मामले में सुनवाई करते हुए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश चंद्रजीत सिंह ने कहा, “मैं दो अक्टूबर तक अंतरिम जमानत दे रहा हूं। उसे तीन अक्टूबर को आत्मसमर्पण करना होगा।”
दो लाख रुपये के मुचलके पर मिली जमानत
न्यायाधीश चंद्रजीत सिंह ने राशिद को दो लाख रुपये के निजी मुचलके और इतनी ही रकम की जमानत पर राहत दी। न्यायाधीश ने राशिद पर विभिन्न शर्तें भी लगाईं, जिनमें यह भी शामिल है कि वह गवाहों या जांच को प्रभावित नहीं करेगा। अदालत ने पांच जुलाई को राशिद को लोकसभा सदस्य के तौर पर शपथ लेने के लिए हिरासती पैरोल दी थी। वर्ष 2017 के आतंकी वित्तपोषण मामले में गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद से राशिद 2019 से जेल में है। वह तिहाड़ जेल में बंद है।
कैसे जांच के घेरे में आए राशिद?
राशिद का नाम कश्मीरी व्यवसायी जहूर वटाली के खिलाफ जांच के दौरान सामने आया था, जिसे एनआईए ने कश्मीर घाटी में आतंकवादी समूहों और अलगाववादियों को कथित रूप से वित्तपोषित करने के आरोप में गिरफ्तार किया था। एनआईए ने इस मामले में कश्मीरी अलगाववादी नेता यासीन मलिक, आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक हाफिज सईद और हिजबुल मुजाहिदीन के प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन समेत कई लोगों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया था। मलिक को आरोपों में दोषी ठहराए जाने के बाद 2022 में एक निचली अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। (इनपुट – ANI / भाषा)