देश में कई सांसदों को ‘‘लाभ के पद’’ पर काम करने को लेकर अयोग्यता का सामना करना पड़ा है लेकिन ‘लाभ के पद’ जैसी किसी चीज की न तो किसी कानून में और न ही किसी फैसले में व्याख्या की गई है। इसके चलते एक संसदीय समिति को विधि मंत्रालय से कहना पड़ा है कि वह एक ऐसा विधेयक लेकर आए जिसमें उन पदों की सूची हो जिस पर आसीन रहने से कोई संसद सदस्य अयोग्य करार दिया जाएगा।

गौरतलब है कि दिल्ली सरकार के 21 संसदीय सचिवों की सदस्यता पर खतरा मंडरा रहा है। आम आदमी पार्टी (आप) के संसदीय सचिव पद को ‘लाभ के पद’ से अलग करने वाले बिल को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी खारिज कर दिया गया था। इस दौरान प्रशांत पटेल नाम के वकील ने राष्ट्रपति के पास एक याचिका दायर की, जिसमें शिकायत की गई कि आम आदमी पार्टी के 21 विधायक दिल्ली में लाभ के पद पर हैं इसलिए इनकी विधायकी रद्द होनी चाहिए। राष्ट्रपति ने ये याचिका चुनाव आयोग को भेजी और इस पर कार्रवाई करके रिपोर्ट देने को कहा। अब चुनाव आयोग तय करेगा की आप संसदीय सचिवों का पद लाभ का पद है या नहीं। हालांकि आप विधायकों ने आयोग में दायर किए अपने जवाब में कहा है कि वह किसी तरह की सुविधा नहीं ले रहे हैं।

लाभ के पद संबंधी संसद की संयुक्त समिति ने अपनी दो ताजा रिपोर्ट में कहा है कि लाभ के पद की व्याख्या संविधान, जन प्रतिनिधित्व कानून, संसद: अयोग्यता निवारण: अधिनियम या उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालय द्वारा किए गए किसी फैसले में नहीं की गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह स्पष्ट है, ‘ऐसी कोई संपूर्ण व्याख्या तय करना मुश्किल है जिसमें सरकार के तहत आने वाले विभिन्न प्रकार के सभी पदों को शामिल किया जा सके।’

अब संयुक्त समिति ने विधि मंत्रालय से कहा है कि वह ‘‘एक ऐसे विधेयक का मसौदा तैयार करे जिसमें स्पष्ट रूप से उन निकायों: कार्यालयों की स्पष्ट सूचना हो जिसके पदों पर आसीन होने से सांसद अयोग्य हो जाएंगे, ऐसे कार्यालय, निकाय जिसमें छूट दिए जाने की जरूरत है और ऐसे कार्यालय और निकाय जिनके पदों पर रहने से सांसद अयोग्य घोषित नहीं किए जाएंगे।’’ समिति ने इस बात को रेखांकित किया कि संसद: अयोग्यता निवारण: अधिनियम के भाग एक और भाग दो में उन निकायों की सूची है जिसके पद पर रहने वाले को अयोग्यता का सामना करना पड़ेगा।

समिति ने कहा है, ‘संयुक्त समिति का यह विचार है कि बहुत से ऐसे निकाय या कार्यालय हो सकते हैं जिन्हें संभवत: इस सूची में शामिल नहीं किया गया हो और इसके परिणामस्वरूप, इससे यह संदेश जाता है कि ‘नकारात्मक सूची’ से बाहर के निकायों या कार्यालयों की सदस्यता सुरक्षित है और इससे सांसदों की सदस्यता बाधित नहीं होगी जो कि निश्चित ही कोई सही स्थिति नहीं है। क्योंकि नकारात्मक सूची से बाहर के सभी निकायों कार्यालयों की इस मकसद के लिए तय किए गए दिशा निर्देशों के तहत जांच किए जाने की जरूरत है।’’