ओबीसी आरक्षण के वर्गीकरण को लेकर जो कमेटी बनाई गई थी, उसने अपनी रिपोर्ट पूरे 6 साल बाद राष्ट्रपति द्रौपदी को सौंप दी है। जिस समय देश में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, जब अगले साल लोकसभा चुनाव है, उसे देखते हुए इस एक रिपोर्ट को काफी अहम माना जा रहा है। दो अक्टूबर, 2017 को ओबीसी आयोग का गठन किया गया था। मामला इतना संवेदनशील था कि इसके कार्यकाल को 14 बार बढ़ाना पड़ गया।
क्या है ये ओबीसी वर्गीकरण?
अभी तक रिपोर्ट को लेकर औपचारिक तौर पर तो कुछ भी नहीं कहा जा सकता, लेकिन अटकलें हैं कि 27 फीसदी आरक्षण को तीन या चार श्रेणियों में बांटा जा सकता है। तर्क दिया जा रहा है कि ऐसा करने से जो लाभ अभी तक सिर्फ ओबीसी की ऊंची जातियों को मिल रहा था, उसका लाभ छोटे तबके तक भी पहुंच पाएगा। अब इसकी जरूरत इसलिए पड़ी है क्योंकि कई अध्ययन किए गए हैं जो बताते हैं कि सालों से ओबीसी के कुछ वर्ग आरक्षण से वंचित चल रहे हैं।
किसे नहीं मिला आरक्षण का लाभ?
बताया जा रहा है कि ओबीसी की ही एक हजार की करीब ऐसी जातियां है जिन्हें पिछले तीन दशक से आरक्षण का कोई लाभ नहीं मिला है। जो 48 जातियां बची हैं, उन्हें ही आरक्षण का 50 प्रतिशत वाला फायदा मिला है। लेकिन इतने सालों बाद अब जब इसमें बदलाव की बात हो रही है तो इसके सियासी मायने बड़े हैं। मोदी सरकार के लिए इस पर कोई भी फैसला लेना आसान नहीं रहने वाला है।
बीजेपी को क्यों डरना चाहिए?
2014 के बाद से ओबीसी वोटबैंक में बीजेपी ने जिस तरह से सेंधमारी की है, वहीं कारण है कि क्योंकि उसे दो बार से लगातार लोकसभा में प्रचंड बहुमत मिला है। लेकिन अब जिस ओबीसी वर्गीकरण की बात की जा रही है, उससे सबसे ज्यादा नुकसान भी बीजेपी को ही उठाना पड़ सकता है। ये सारा खेल जातियों का ही है जो किसी ना किसी पार्टी की समर्थक मानी जाती है।
जातियों का सारा खेल समझ लीजिए
इसे ऐसे समझिए- वर्तमान में ओबीसी व्यवस्था के तहत यादव, कुर्मी, जाट, गुर्जर जैसी जातियों को आरक्षण का सबसे ज्यादा लाभ मिलता है। अब ये सारी वो जातिया हैं जो अलग-अलग राज्यों में बीजेपी के पक्ष में जबरदस्त वोटिंग करती है। उत्तर प्रदेश में भी यादव को छोड़ बाकी जातियां मजबूती से भाजपा के साथ खड़ी हैं। हरियाणा में भी गुर्जर से लेकर जाट ने बीजेपी को वोट दिया है। लेकिन अब जब ओबीसी आरक्षण का वर्गीकरण कर दिया जाएगा, इन जातियों का हिस्सा कुछ कम हो सकता है। उस स्थिति में सियासी नुकसान बीजेपी को ही उठाना पड़ेगा।
जातिगत जनगणना को लेकर भी दबाव?
बड़ी बात ये भी है कि अगर बीजेपी ओबीसी वर्गीकरण को करवा देती है, उस स्थिति में दूसरे राज्य जातीगत जनगणनाो लेकर भी दबाव बनाना शुरू कर देंगे। बिहार में पहले ही इसे हरी झंडी दिखाई जा चुकी है, अब दूसरे राज्य भी अपनी आवाज बुलंद कर सकते हैं। चुनावी मौसम में बीजेपी अपने लिए इस स्थिति को अनुकूल नहीं मानती है। इसी वजह से ओबीसी वर्गीकरण को लेकर कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई गई। अब 6 साल बाद रिपोर्ट जरूर सौंप दी गई है, लेकिन आगे का रास्ता केंद्र सरकार के फैसले पर ही निर्भर करने वाला है।