प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्वच्छ भारत योजना के तहत खुले में शौच से मुक्ति को लेकर दिए गए आंकड़े पर सवाल उठ गए हैं। यह सवाल NSO द्वारा जारी आंकड़े सामने आने के बाद उठे हैं। 2 अक्टूबर, 2019 को प्रधानमंत्री ने घोषणा की थी कि देश के ग्रामीण इलाकों का 95 फीसदी हिस्सा “खुले में शौच” से मुक्त कर दिया गया है। लेकिन, NSO के मुताबिक उस अवधि के लिए यह आंकड़ा 71 फीसदी था।

यही नहीं, एक अखबार में खबर यह भी छपी है कि हाल ही में जब स्वच्छ भारत मिशन की समीक्षा के लिए बड़े अफसरों के साथ प्रधानमंत्री ने बैठक की थी, तो उसमें योजना की सुस्त रफ्तार पर उन्होंने नाराजगी जताई थी। उनका कहना था कि अपेक्षित काम नहीं हुआ है। अफसरों का मानना है कि इस योजना के लिए आवंटित बजट का बड़ा हिस्सा योजना का प्रचार करने में खर्च हुआ है। हालांकि, अफसरों ने मीटिंग में यह सच बोला नहीं।

एनएसओ का सर्वे जुलाई से दिसंबर 2018 के बीच किया गया था। एनएसओ के अनुसार उस समय तक झारखंड में करीब 42 फीसदी परिवारों के पास शौचालय की सुविधा उपलब्ध नहीं थी। वही, तमिलनाडु में यह अंतर 37 फीसदी जबकि राजस्थान में 34 फीसदी था। गुजरात जिसे पहले ही खुले में शौच मुक्त घोषित किया जा चुका था।

अक्टूबर 2017 में गुजरात के ग्रामीण इलाकों में करीब 25 फीसदी लोगों को शौचालय की सुविधा उपलब्ध नहीं थी।  अन्य बड़े राज्यों जिनका जिक्र किया गया था उनमें भी बड़ा अंतर था। कर्नाटक में 30 फीसदी, मध्यप्रदेश में 29 फीसदी, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में 22-22 फीसदी लोगों के पास शौचालय की सुविधा उपलब्ध नहीं थी।

खुले में शौच मुक्त घोषित होने से आशय है कि उस राज्य में 100 फीसदी लोगों के पास शौचालय सुविधा उपलब्ध है और वे सभी लोग इसका इस्तेमाल करते हैं। एनएसओ का सर्वे शुरू होने से पहले आंध्र प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान को खुले में शौच मुक्त घोषित किया जा चुका था। वहीं, सर्वे की अवधि के दौरान ही झारखंड, कर्नाटक, मध्यप्रदेश और तमिलनाडु को खुले में शौच मुक्त घोषित किया गया था।

स्वच्छ भारत मिशन के लिए साल 2018-19 में 15,343 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था। इससे पहले 2017-18 के बजट में स्वच्छ भारत मिशन के लिए 16,248 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे। साल 2016-17 में यह राशि पहले 9000 करोड़ रुपये थी जिसे बाद में संशोधित कर 12800 करोड़ रुपये कर दिया गया था।