दिल्ली में 9 और 10 सितंबर को होने वाली जी-20 बैठक को लेकर सुरक्षा एजेंसियां अलर्ट पर है। जमीन से लेकर आसमान तक पैनी नजर रखी जा रहा है। HIT कमांडो के अलावा बैठक में आने वाले वीवीआईपी मेहमानों की सुरक्षा के लिए एनएसजी का K-9 स्क्वाड भी तैनात होगा। एनएसजी के इस खास डॉग स्क्वाड में करण, गूगल और ज़ोरो के अलावा बाकी साथियों को नाइट विज़न ग्लास, क्यूटली डॉगल्स और वॉकी टॉकी जैसे खास उपकरणों से लैस किया गया है। ये सभी डॉग किसी भी तरह के विस्फोटक का पता लगाने और बंधक बनाने वाले को मार गिराने में माहिर होते हैं।
कहां तैनात की जाएगी के-9 यूनिट
के-9 डॉग यूनिट को बंधक ऑपरेशन के दौरान हाउस इंटरवेंशन टीमों के साथ जाने के अलावा राजघाट, आईटीपीओ और पूसा परिसर जैसे प्रमुख शिखर स्थानों पर रणनीतिक रूप से तैनात किया जाएगा। इस यूनिट में लैब्राडोर, जर्मन शेफर्ड, बेल्जियन मैलिनोइस और कॉकर स्पैनियल जैसे डॉग्स शामिल हैं। एनएसजी कमांडो की तरह इनकी भी ट्रेनिंग सुबह 4 बजे से शुरू हो जाती है। इन डॉग्स को शहरी इलाकों में नेविगेट करना सिखाया गया है। इन्हें जी-20 जैसे खास मौके के लिए एलईडी से भी निर्देश देने के लिए ट्रेनिंग दी गई है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक के-9 सेंटर के ऑफिसर कमांडिंग लेफ्टिनेंट कर्नल राज भरत शर्मा ने बताया कि कार्यस्थलों के आसपास बड़े पैमाने पर स्क्रीनिंग के लिए, कुत्तों को गंध और वेपोर वेक डिटेक्शन के प्रति संवेदनशील बनाया गया है। इन डॉग्स को’जैमिंग तकनीक’ में भी प्रशिक्षित किया गया है जो तात्कालिक विस्फोटक उपकरणों का पता लगाने में काम आएगी।
इन डॉग्स द्वारा ले जाए जाने वाले उपकरण का अपना एक एन्क्रिप्टेड नेटवर्क होगा। एक बार जब कोई आईईडी देखा जाता है, तो कुत्ते को उस स्थान पर निर्देशित किया जाएगा और डिवाइस से आने वाले संकेतों को रोकने के लिए एक जैमर छोड़ा जाएगा। यह डॉग्स संदिग्धों से राइफल और हथियार भी छीन सकते हैं और उन्हें हैंडलर तक ले जा सकते हैं। इनमें बम को सूंघकर पता लगाने की क्षमता होती है। K-9 यूनिट के सभी डॉग्स में विस्फोटक प्रणालियों के साथ-साथ जैविक और रासायनिक पदार्थों का पता लगाने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। इसमें ऊंचाई पर स्थित वस्तुओं के अलावा छिपी हुई और गहराई में दबी वस्तुओं का पता लगाना शामिल है।
क्या होती है खासियत?
इन डॉग्स में किसी भी इलाके कंक्रीट, पहाड़ी और जंगल में काम करने की क्षमता होती है। इन्हें जी-20 सम्मेलन जैसे कार्यक्रमों के लिए भी खास तौर पर ट्रेंड किया गया है। यह वाहनों की स्क्रीनिंग के अलावा आयोजन स्थलों की टोह लेने और रिमोट ट्रैकिंग का भी काम करते हैं। पिछले 18 महीनों में तैनात किए जाने योग्य कुत्तों की संख्या तीन गुना हो गई है।