पिछले दिनों पाए जा रहे संक्रमण के मामलों से यह साफ हुआ है कि कोरोना के नमूनों में से ओमीक्रान की पहचान के लिए विशेष जांच जरूरी है। लेकिन हर दिन सभी संक्रमितों के नमूनों को जीनोम अनुक्रमण के लिए नहीं भेजा जाता है। इनमें से कुछ ही नमूनों को जीनोम अनुक्रमण के लिए प्रयोगशालाओं में भेजा जाता है। यह बात अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) कम्युनिटी मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर संजय राय ने कही।
उन्होंने उदाहरण देकर बताया कि मान लिया जाए कि किसी दिन देश में कुल 40,000 मामले आए।

इनमें से 400 नमूनों को जीनोम अनुक्रमण के लिए भेजा गया हो सकता है, जिसमें से 300 नमूने ओमीक्रान से संक्रमित पाए गए। इस स्थिति में यह माना जाएगा कि 75 फीसद नमूनों में ओमीक्रान पाया गया। परिणामस्वरूप ओमीक्रान के कुल मामले 300 ही दर्ज होंगे, लेकिन कुल मामलों में 75 फीसद संक्रमितों को ओमीक्रान बहुरूप का बताया जाएगा। उन्होंने बताया जीनोम अनुक्रमण जांच के नतीजे दो से चार दिन में आते हैं। इसलिए जिस दिन जीनोम अनुक्रमण जांच के नतीजे आते हैं, वे वर्तमान दिन को नहीं, बल्कि पुरानी स्थिति को दर्शाते हैं। पूरी दुनिया में ब्रिटेन और डेनमार्क सबसे अधिक नमूनों का जीनोम अनुक्रमण कर रहे हैं।

उन्होंने बताया कि दो साल में भारत ने भी इस मोर्चे पर तेजी से कार्य किया है और पहले जहां सिर्फ तीन प्रयोगशालाओं में जीनोम अनुक्रमण की सुविधा थी, अब प्रयोगशालाओं की संख्या बढ़कर 28 हो गई है। यह बड़ी उपलब्धि है, लेकिन भारत जैसी जनसंख्या के लिए बहुत कम है। राय ने बताया कि जीनोम अनुक्रमण की प्रयोगशाला के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित जांचकर्ताओं और उपकरणों की आवश्यकता होती है, इसलिए इसे स्थापित करना आसान नहीं होता है। एक महीने पहले तक ब्रिटेन में 98 फीसद मामले डेल्टा बहुरूप के थे, लेकिन अब 93 फीसद मामले ओमीक्रान के हैं।

टीकाकरण के राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह (एनटैगी) के प्रमुख एनके अरोड़ा ने सोमवार को कहा कि देश के महानगरों में दर्ज हो रहे कोरोना संक्रमण के कुल मामलों में करीब 75 फीसद मामले ओमीक्रान बहुरूप के हैं।