नोबल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी ने कहा है कि उन्हें ‘न्यूनतम आय योजना’ (NYAY) पर कांग्रेस पार्टी को सलाह देने का अफसोस नहीं है। ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ को दिए इंटरव्यू में बनर्जी ने कहा कि अगर उनसे बीजेपी के लोगों ने भी पूछा होता तो उनकी भी मदद करते। बनर्जी का बयान ऐसे वक्त में आया जब भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेताओं ने उनके नोबल प्राइस की सराहना करने की जगह ‘न्याय’ स्कीम और उनके राजनीतिक झुकाव को लेकर सवाल उठाना शुरू कर दिया। गौरतलब है कि शुक्रवार को केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा था कि बनर्जी के राजनीतिक विचार लेफ्ट से प्रभावित है और लोगों ने उनके ‘न्याय’ योजना को खरिज कर दिया है। दरअसल कांग्रेस को बनर्जी ने लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान ‘न्याय’ स्कीम का सुझाव दिए था। जिसे पार्टी ने अपने घोषणा-पत्र में शामिल किया था।
TOI के इंटरव्यू में बनर्जी ने कहा, “उन्होंने (कांग्रेस ने) मुझसे पूरी तरह से वैध सवाल पूछा- एक गारंटी वाली आय को लागू करने में कितना पैसा लगेगा… यदि बीजेपी ने भी मुझसे यही कहा कहा होता, तो मैं उन्हें दे देता। मैं पूरी तरह से राजनीतिक पूर्वाग्रह से मुक्त अच्छी नीति को प्रतिबंधित करने में विश्वास नहीं करता। वहीं, बनर्जी के साथ अर्थशास्त्र पुरस्कार हासिल करने वाली उनकी पत्नी एस्थर डुफ्लो ने कहा कि वह, बनर्जी और माइकल क्रेमर अलग-अलग राज्य सरकारों; गुजरात, हरियाणा, पंजाब और तमिलनाडु के साथ राजनीतिक स्पेक्ट्रम पर काम कर रहे हैं।” डुफ्लो ने बताया कि वे लोग अपने में वैचारिक लड़ाई को आड़े नहीं आने देते।
बनर्जी ने कहा कि भारत में आर्थिक मंदी एक वास्तविकता है और सरकार धीरे-धीरे इसे स्वीकार कर रही है। उन्होंने कहा, “पांच प्रतिशत अब अच्छा है और जल्द ही इससे भी कम हो जाएगा। पहले कोर मैसेज होता था कि भारत बहुत अच्छा कर रहा है। अभी हम साफ तौर पर अच्छा नहीं कर रहे हैं। ऐसे में खतरा यह है कि सरकार आर्थिक संदेशों (आर्थिक परिस्थिति से उपजे परिणाम) को नहीं बेच सकती। लेकिन अन्य चीजें ऐसी हैं, जिन्हें बेचकर चुनाव जीता जा सकता है।” हालांकि, उनके साथ साक्षात्कार में उनकी पत्नी डुफ्लो ने कहा कि आर्थिक मंदी सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं है। यहां तक कि इसकी चपेट में चीन भी है। उन्होंने कहा कि आर्थिक मंदी के यूरोप और अमेरिका में पहुंचने का भी डर है।
बनर्जी ने कहा कि भारतीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के कॉर्पोरेट टैक्स दरों को 35% से घटाकर 22% करने के निर्णय से वृद्धि पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसके बजाय, सरकार को गरीबों के हाथों में पैसा भेजने पर काम करना चाहिए।