केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) के खिलाफ शिकायतों के लिए कोई भी व्यवस्था नहीं है। ऐसा कोई तंत्र नहीं है जिसके मार्फत सीवीसी की कार्रवाई या उसके फैसलों पर सवाल खड़ा किया जा सके। केंद्र सरकार का कहना है कि सीवीसी के खिलाफ शिकायतों पर कार्रवाई निश्चित दिशा निर्देश के बाद ही अमल में लाई जा सकती है। डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग (DoPT) ने मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित नौकरशाह संजीव चतुर्वेदी की एक आरटीआई के जवाब में दिशा-निर्देश तय करने की जानकारी दी है। DoPT ने अपने जवाब में कहा है, “मुख्य सतर्कता आयुक्त और सतर्कता आयुक्त के खिलाफ शिकायत पर दिशानिर्देश जारी किया जा चुका है।”
गौरतलब है कि 2003 से सीवीसी एक्ट में शिकायतों को लेकर कोई दिशानिर्देश नहीं बनाया गया है। यानी पिछले 15 सालों में सीवीसी की कार्रवाई पर उठने वाले सवालों को लिए कोई भी तंत्र मौजूद नहीं है।
संजीव चतुर्वेदी ने 14 जनवरी को राष्ट्रति को लिखे अपने ताजा पत्र में कहा, “यह प्रक्रिया (सीवीसी के खिलाफ शिकायतों के लिए दिशानिर्देश तय करना) कब तक चलेगी? क्योंकि, DoPT का अक्टूबर 2018 और फिर जनवरी 2019 की स्थिति में कोई अंतर नहीं है। वास्तव में सीवीसी को दी गई यह छूट सीवीसी-एक्ट 2003 के प्रवाधानों के न सिर्फ खिलाफ है, बल्कि देश के सबसे महत्वपूर्ण सार्वजिनक संस्थान के कामकाज के संबंध में ‘कानून का शासन’ और ‘जवाबदेही’ के आधारभूत सिद्धातों के भी विपरीत है।”
संजीव चतुर्वेदी द्वारा सीवीसी के खिलाफ लगाए गए आरोपों में एम्स में भ्रष्टाचार के मामलों की देखरेख के लिए चीफ विजिलेंस अधिकारी की नियुक्ति नहीं करने की तरफ भी इशारा है। चतुर्वेदी ने सीवीसी के खिलाफ शिकायत 15 जुलाई, 2017 में की थी। इसके बाद अगस्त 2017 और जनवरी 2018 को उन्होंने राष्ट्रपति को दोबारा ध्यान दिलाने के साथ ही इसे DoPT को आगे की कार्रवाई के लिए भेज दिया। गौरतलब है कि पिछले साल 23 अक्टूबर को तत्कालीन सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा और स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना के खिलाफ कार्रवाई के बाद सीवीसी काफी चर्चा में रही है। सीवीसी की रिपोर्ट के आधार पर ही केंद्र सरकार ने वर्मा के खिलाफ कार्रवाई की थी और उनका बतौर डीजी फायर सर्विस में तबादला कर दिया था। हालांकि, वर्मा ने इस नियुक्त से इनकार कर दिया और खुद को सेवा-मुक्त कर लिया।