West Bengal: पश्चिम बंगाल के पूर्व बर्धमान जिले के गिधाग्राम गांव के दासपारा इलाके में एक शिव मंदिर है। इसमें दलित परिवारों के प्रवेश पर बैन है। 130 दलित परिवारों के लगभग 550 पुरुषों, महिलाओं और बच्चों ने अपने अधिकारों के लिए लड़ाई छेड़ी हुई है। ऐसा तब है जब जिला प्रशासन और पुलिस से अस्पृश्यता और भेदभाव को उजागर करने की अपील की गई थी। इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए 28 फरवरी को एक बैठक हुई थी।

अधिकारियों का कहना है कि कानून को व्यवस्था की स्थिति को ध्यान में रखते हुए नाजुक स्थिति से निपटने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन परिवारों के लिए प्रशासन अपने कदम पीछे खींच रहा है। गिधाग्राम गिधेश्वर शिव मंदिर करीब 200 साल पुराना माना जाता है। मंदिर पर लगी हुई पट्टी पर लिखा हुआ है कि 1997 में इसका जीर्णोद्धार किया गया था।

अपनी बीवी और बच्चों के साथ रहने वाले किसान एककोरी ने कहा, ‘सालों से हमें सीढ़ियां चढ़ने और मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी गई है। वे हमें ‘छोटो जाट और ‘मुची जाट’ कहते हैं या तो मंदिर समिति या स्थानीय लोग हमें रोकते हैं।’ दासपारा की एक महिला कल्याणी दास ने कहा कि पिछले साल मैं पूजा करने के लिए फल और फूल लेकर गई थी, लेकिन मंदिर समिति के सदस्यों ने मुझे वहां से जाने पर मजबूर कर दिया।

वे हमें मंदिर में अंदर नहीं जाने देते

सुभाष दास पेशे से एक किसान हैं। उन्होंने कहा, ‘जब वे हर साल मंदिर में पूजा के लिए पैसे इकट्ठा करते हैं, तो हम सभी पैसे देते हैं। लेकिन वे हमें अंदर नहीं जाने देते। हमारे माता-पिता पूजा नहीं कर सकते थे, लेकिन समय बदल गया है।’ 24 फरवरी को शिव रात्रि से पहले दासपारा के लोगों ने परंपरा को तोड़ने का फैसला किया और बीडीओ, एसडीओ और पुलिस को एक पत्र लिखा। फिर भी शिवरात्रि के दिन उन्हें एंट्री नहीं दी गई।

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एसडीओ ने बुलाई थी मीटिंग

28 फरवरी को एसडीओ ने मंदिर समिति के सदस्यों, लोगों, विधायक, बीडीओ और पुलिस की एक मीटिंग बुलाई थी। इसके बाद पारित एक प्रस्ताव में कहा गया, ‘हमारे संविधान के जरिये नस्लीय भेदभाव पर रोक लगाई गई है। सभी को पूजा करने का अधिकार है। इसलिए दास परिवारों को गिधग्राम के गिधवार शिव मंदिर में एंट्री की इजाजत दी जाएगी।’

दासपारा के रहने वाले लक्खी दास ने कहा कि हमें बताया गया था कि 1 मार्च से हमारे समुदाय के दो सदस्यों को पुलिस सुरक्षा के साथ मंदिर में एंट्री करने की इजाजत दी जाएगी। लेकिन 28 फरवरी की रात को स्थानीय पुलिस ने हमें बताया कि कानून-व्यवस्था बिगड़ जाएगी और हम मंदिर नहीं जा सकते। यहीं के एक शख्स सुकांत दास ने कहा कि हम उनसे नहीं लड़ सकते। गांव में 1,800 से ज्यादा परिवार हैं और हम सिर्फ 130 हैं। हम प्रशासन से कुछ करने और इस भेदभाव को खत्म करने का इंतजार कर रहे हैं। अगर ऐसा नहीं हुआ तो हम बड़े अधिकारियों या कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे। समय बदल गया है। हम अपने अधिकारों के लिए लड़ेंगे।

मंदिर समिति ने पुरानी परंपराओं का दिया हवाला

मंदिर समिति ने सदियों पुरानी परंपराओं का हवाला दिया। मंदिर समिति के एक सदस्य राम प्रसाद चक्रवर्ती ने कहा, ‘मैं इस मुद्दे पर बात नहीं करना चाहता। गांव के बहुसंख्यकों की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचानी चाहिए।’ कटवा के एसडीओ अहिंसा जैन ने फोन पर इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि हम 21वीं सदी में इसकी इजाजत नहीं दे सकते। सभी के पास समान अधिकार हैं, जिसमें पूजा करने का अधिकार भी शामिल है। हमने सभी जनप्रतिनिधियों, पुलिस और दासपारा के लोगों से मुलाकात की। उन्हें मंदिर में प्रवेश की अनुमति देने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया। हालांकि, कानून और व्यवस्था की स्थिति को ध्यान में रखते हुए हम इस मुद्दे को शांतिपूर्ण तरीके से हल करने की कोशिश कर रहे हैं और सभी से बात कर रहे हैं।

गिधाग्राम ग्राम पंचायत के उपप्रधान पुलक चंद्र कोनार ने कहा, ‘लोग कहते हैं कि स्थानीय जमींदारों ने करीब 200 साल पहले इस मंदिर की स्थापना की थी। बाद में इसे चलाने के लिए एक समिति बनाई गई। दासपारा के लोग अनुसूचित जाति के हैं, जो मोची समुदाय से आते हैं। उन्हें मंदिर में जाने की अनुमति नहीं है। वे पूजा करना चाहते हैं, दूसरे लोग उन्हें अनुमति नहीं देते। हम बीच में फंस गए हैं। हम टकराव और कानून-व्यवस्था की समस्या से बचना चाहते हैं। हम शर्मिंदा हैं। जनप्रतिनिधि होने के नाते हम भेदभाव जारी नहीं रहने दे सकते।’ इस पार्टी के विधायक ने की अपने राज्य के लिए अलग झंडे की मांग