भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने रविवार को संसदीय बहस में गिरते मानकों और विधायिका द्वारा बनाए गए कानूनों पर यह कहते हुए अफसोस जताया कि कानून बनाने वाली संस्था द्वारा बनाए गए कानूनों में स्पष्टता का अभाव है।

सीजीआई ने अफसोस जताते हुए कहा कि इससे सरकार को नुकसान हो रहा है और जनता को बहुत असुविधा हो रही है, साथ ही मुकदमेबाजी भी बढ़ रही है। पहले, संसद कानूनों को पारित करने से पहले बहस और चर्चा करती थी। इसका मतलब था कि अदालतों के लिए कानूनों की व्याख्या करना आसान था। उन्होंने कहा कि इसका एक कारण यह भी है कि कानून बनाने में योगदान देने के लिए अच्छे वकील सार्वजनिक जीवन में नहीं आ रहे हैं।

सीजीआई ने कहा-  “पहले अलग-अलग, संसद में विभिन्न कानूनों पर चर्चा किया जाता था। इसलिए कानून की व्याख्या या क्रियान्वयन करते समय अदालतों का बोझ कम होता है। इसलिए विधायी हिस्सा स्पष्ट था कि वे हमें क्या बताना चाहते हैं। वे ऐसा कानून क्यों बना रहे हैं। अब यह खेदजनक स्थिति है, अब हम कानून को खेदजनक स्थिति के साथ देखते हैं। अब हम ऐसे कानूनों को देखते हैं जिनमें बहुत सी कमियां हैं, और कानून बनाने में बहुत अस्पष्टता है। कानूनों में स्पष्टता नहीं है। हमें नहीं पता कि किस उद्देश्य से ऐसे कानून बनाए जा रहे हैं जो बहुत अधिक मुकदमेबाजी, असुविधा और सरकार को नुकसान और जनता को असुविधा पैदा कर रहे हैं। जब सदन में बुद्धिजीवी और वकील नहीं होते तो यही होता है।

सीजीआई सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) द्वारा आयोजित स्वतंत्रता दिवस समारोह में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के बाद के शुरुआती वर्षों में भारत के अधिकांश स्वतंत्रता सेनानी और सांसद वकील थे। हमारे स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व वकीलों ने किया था। महात्मा गांधी, सरदार पटेल, जवाहरलाल नेहरू, बाबू राजेंद्र प्रसाद सभी वकील थे। उन्होंने न केवल अपने पेशे बल्कि अपने परिवारों और संपत्तियों का भी त्याग कर दिया था। इसलिए उन्होंने वकीलों को सामाजिक और सार्वजनिक जीवन में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया। CJI ने कहा, “खुद को पैसा कमाने और आराम से जीने तक सीमित न रखें। मुझे उम्मीद है कि आप देश के लिए अपने ज्ञान और अनुभव का योगदान देंगे।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि भारत एक युवा लोकतंत्र है। पड़ोसी देशों के चारों ओर देखें, वे खुद को लोकतंत्र कहते हैं और यह कैसे आंशिक रूप से विफल रहा है। हम इसे बनाए रखने में सक्षम हैं, जिस तरह से भारतीय संविधान निर्माताओं द्वारा इसकी कल्पना की गई थी।