नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार की महागठबंधन सरकार ने जनवरी 2016 से राज्य के मंदिरों के बाहर बाड़ा लगवाने का फैसला किया है। मूर्तियों की चोरी, अतिक्रमण और जमीन पर कब्जे आदि को रोकने के मकसद से सरकार ने यह फैसला लिया है। इसके अलावा, राज्य सरकार यह भी संदेश देना चाहती है कि वो हिंदू और मुसलमानों के साथ बराबर का बर्ताव कर रही है। राज्य सरकार पर मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोप लगते रहे हैं। बता दें कि हाल ही में सरकार ने राज्य के कब्रिस्तानों के चारों ओर बाड़ा लगवाने का भी फैसला किया था। बता दें कि बीते एक दशक में 200 से ज्यादा महंगी मूर्तियां मंदिरों से चोरी हो चुकी हैं।
बिहार स्टेट रिलीजियस ट्रस्ट काउंसिल में 4000 से ज्यादा मंदिर रजिस्टर्ड हैं। हालांकि, बाड़ा लगवाने के लिए सरकार से पैसा पाने के लिए वे सभी मंदिर या मठ अर्ह होंगे, जो कम से कम साठ साल पुराने होंगे और उनकी अपनी जमीन हो। इसके अलावा, वहां कीमती मूर्तियां, छत्र जैसी चीजें होने चाहिए। इस मकसद के लिए राज्य सरकार 2 करोड़ रुपए से ज्यादा की रकम भी खर्च कर सकती है। इन बाड़ों की ऊंचाई आठ फीट तक होगी। स्कीम के तहत डीएम 50 लाख तक, कमिश्नर 2 करोड़ तक और लॉ सेक्रेटरी 2 करोड़ रुपए से ज्यादा का फंड जारी कर सकते हैं। मंदिर का बाड़ा बनवाने के लिए दी जाने वाली रकम की कोई ऊपरी लिमिट नहीं है। कैबिनेट की ओर से इस प्रपोजल को मंजूरी दे दी गई है। सीएम नीतीश कुमार के इस कदम को विपक्षी बीजेपी को चुप कराने की दिशा में एक राजनीतिक मास्टरस्टोक के तौर पर देखा जा रहा है। उधर, राज्य के कानून मंत्रालय ने हाल ही में एक प्रपोजल पास करके मंदिरों के बाहर बाड़ा लगाने से संबंधित ‘बिहार टेंपल कंस्ट्रक्शन फंड स्कीम 2015’ के नियम कायदों की रुपरेखा तैयार कर दी है। राज्य सरकार अब इस स्कीम के जरिए पर्यटन को बढ़ावा देने की कोशिश में भी है।