सुप्रीम कोर्ट ने 2002 के सनसनीखेज नीतीश कटारा हत्याकांड में दोषी विकास यादव, उसके चचेरे भाई विशाल यादव और सुखदेव पहलवान की दोषसिद्धि बरकरार रखते हुए कहा है कि इस देश में सिर्फ अपराधी ही न्याय की गुहार लगाते हैं। शीर्ष अदालत ने विकास और सुखदेव की अपील पर नोटिस जारी किए बगैर ही निचली अदालत और दिल्ली हाईकोर्ट के निष्कर्षो को बरकरार रखा। लेकिन वह इन तीनों की सजा की अवधि बढ़ाने संबंधी हाईकोर्ट के निर्णय पर विचार करने के लिए सहमत हो गया।

हाईकोर्ट ने इन दोषियों के लिए उम्रकैद की सजा को साधारण करार देते हुए उनकी सजा की अवधि बढ़ा दी थी। अदालत ने इन तीनों अपराधियों की सजा में बगैर किसी छूट के विकास और विशाल की सजा बढ़ाकर 30 साल और सुखदेव यादव उर्फ पहलवान की सजा की अवधि बढ़ाकर 25 साल कर दी थी। न्यायमूर्ति जेएस खेहड़ और न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल के पीठ ने करीब दो घंटे तक वरिष्ठ अधिवक्ता यूआर ललित सहित वरिष्ठ अधिवक्ताओं की दलीलों को सुनने के बाद कहा कि हाईकोर्ट के आदेश में किसी प्रकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।

हालांकि अदालत ने तीनों मुजरिमों को दिए गए दंड के दायरे के मामले में दिल्ली सरकार को नोटिस जारी कर छह सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है। सुनवाई शुरू होते ही ललित ने कहा कि तीनों दोषियों को मृतक के सिर पर लगी चोट के जुर्म में उम्रकैद की सजा सुनाई गई है, इस पर पीठ ने टिप्पणी की कि आॅनर किलिंग्स में यह सब होता है। पीठ ने इसके बाद निचली अदालत में अभियोजन के लगभग सभी गवाहों के अपने बयानों से मुकर जाने का जिक्र किया और कहा कि इससे पता चलता है कि आपकी कितनी ताकत है।

अदालत ने इस दलील को अस्वीकार कर दिया कि अभियोजन का मुख्य गवाह अजय कटारा एक मनगढंÞत गवाह था। अजय कटारा ने ही गाजियाबाद में हापुड़ चुंगी पर 16-17 फरवरी, 2002 की रात में टाटा सफारी कार में तीनों अभियुक्तों के साथ पीड़ित को अंतिम बार जीवित देखा था। पीठ ने कहा कि सभी गवाह अपने बयान से मुकर गए थे और सिर्फ इसी व्यक्ति ने अभियुक्तों के खिलाफ बयान दर्ज कराया था और आप इसकी गवाही को चूर-चूर करना चाहते हैं। आप हमें कुछ सुस्पष्ट दिखाइए। अन्यथा हम आपके पक्ष में नहीं हैं।

अदालत ने कटारा की गवाही को भरोसेमंद बताते हुए कहा कि इस व्यक्ति ने जबरदस्त साहस दिखाया और अगर आप अजय कटारा की गवाही को काट नहीं सकते हैं तो हम आपके साथ नहीं हैं। हालांकि ललित ने जजों को संतुष्ट करने का भरसक प्रयास किया कि इस गवाह का (जो शाहदरा में रहता है) स्कूटर हापुड़ चुंगी के निकट देर रात 12.30 बजे के आसपास बीच सड़क पर खराब हो गया था, जिस वजह से टाटा सफारी को उसके पीछे रुकना पड़ा था।

ललित ने कहा कि एक व्यक्ति, जिसे अपने किराए के मकान का पता भी याद नहीं, इस घटना के एक महीने बाद पुलिस के पास पहुंचता है और बयान देता है कि वह तीनों अभियुक्तों को पहचानता है जिनकी तस्वीरें टेलीविजन चैनलों सहित हर जगह थीं। उन्होंने दलील दी कि अजय भेजा हुआ गवाह था। उन्होंने अजय के झूठ बोलने के अपने तर्क के समर्थन में जांच अधिकारी अनिल समानिया की गवाही का भी हवाला दिया। लेकिन अदालत ने इन दलीलों को ठुकरा दिया।

निचली अदालत में अजय कटारा की नजर के बारे में महत्त्वपूर्ण सवाल पूछने की अनुमति नहीं दिए जाने के आरोप के बारे में उसने टिप्पणी की कि अगर वह आधी रात में स्कूटर चला सकता है, अगर वह सड़क पर देख सकता है तो वह आप सबको भी देख सकता है। इससे कुछ हल नहीं होता । पीठ ने दोषियों पर न्यायिक समय बरबाद करने का आरोप लगाते हुए कहा कि हाईकोर्ट ने उन्हें पर्याप्त अवसर प्रदान किया है। पीठ ने कहा कि यह अजीबोगरीब मामला है जिस वजह से हम आपको सुन रहे हैं। अन्यथा हमने आधे घंटे पहले ही इसे अस्वीकार कर दिया था।

जजों ने कहा कि आपने सभी गवाहों को मुकरने के लिए बाध्य किया। यह आदमी डटा रहा। आप इसे भी तोड़ना चाहते हैं। यहां तक कि लड़की ने भी तस्वीरें और ई-मेल सामने आने से पहले तक हर बात से इनकार किया था। कल्पना कीजिए, खौफ के पैमाने की, आपने पैदा किया। इस देश में ऐसे ही हो रहा है। सिर्फ अपराधी ही न्याय के लिए शोर कर रहे हैं। वे दोषी किस किस्म की निष्पक्षता की अपेक्षा करते हैं। सुनवाई के दौरान जजों ने दोषियों के वकील से कई बार कहा कि हाईकोर्ट के आदेश और रिकार्ड में कोई तो त्रुटि दिखाए।

अदालत ने सुखदेव पहलवान की दलील अस्वीकार करते हुए कहा कि आप तो अपने मालिक (यादव) के ईमानदार सेवक हैं। परंतु आपकी समस्या यह है कि आपने अपराध में उनकी मदद की। आपका हश्र भी वही होगा। आप साथ ही तैरेंगे या डूबेंगे। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि घर की शान के खातिर विकास की बहन से प्रेम करने वाले नीतीश कटारा की हत्या की गई थी। यह अपराध ही सुनियोजित तरीके से और अत्यधिक प्रतिशोधात्मक तरीके से किया गया था।

अदालत ने विकास और विशाल पर जुर्माने की राशि भी बढ़ाकर 54-54 लाख रुपए कर दी थी जिसे छह सप्ताह के भीतर निचली अदालत में जमा कराना था। हाईकोर्ट ने इस राशि में से 50 लाख रुपए दिल्ली सरकार और 10 लाख रुपए उप्र सरकार में वितरित करने और 40 लाख रुपए नीतीश कटारा की मां नीलम कटारा को देने का निर्देश दिया था। विकास और विशाल और सुखेदव को निचली अदालत ने मई, 2008 में कटारा के अपहरण और हत्या के जुर्म में उम्रकैद की सजा सुनाई थी।