नई शिक्षा नीति में एमफिल पाठ्यक्रम को बंद करने का निर्णय किया गया है। इसमें एमफिल पाठ्यक्रम को लेकर सिर्फ एक ही पंक्ति लिखी गई है और वह है, ‘एमफिल पाठ्यक्रम को बंद कर दिया जाएगा।’
नीति में यह नहीं बताया गया है कि जो विद्यार्थी यह पाठ्यक्रम कर चुके हैं या कर रहे हैं, वे आगे क्या करेंगे। सरकार ने देश भर के ऐसे हजारों विद्यार्थियों के भविष्य को लेकर कोई योजना नहीं बताई है। ऐसे में इन विद्यार्थियों का भविष्य अंधकार में पहुंच गया है। एमफिल कर चुके या कर रहे विद्यार्थी इस फैसले पर ही सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है कि एमफिल विद्यार्थियों को पीएचडी के लिए तैयार करता है। इसलिए इस पाठ्यक्रम को जारी रखना चाहिए। वहीं, विभिन्न विश्वविद्यालयों के पूर्व कुलपतियों का कहना है कि एमफिल पाठ्यक्रम की कोई जरूरत नहीं है। उनका कहना है कि कुलपति रहते हुए उन्होंने कई बार सरकार को इस पाठ्यक्रम को बंद करने के लिए लिखा लेकिन सरकार ने उनकी नहीं सुनी।
दिल्ली विश्वविद्यालय के दिल्ली स्कूल ऑफ से समाजशास्त्र में एमफिल कर रहीं सरगम का कहना है कि नई शिक्षा नीति में एमफिल पाठ्यक्रम को खत्म करने का निर्णय बिलकुल गलत है और यह पाठ्यक्रम जारी रहना चाहिए था। उन्होंने पिछले साल ही इस पाठ्यक्रम में दाखिला लिया था। उनका कहना है कि इस पाठ्यक्रम को करके विद्यार्थी बेहतर तरीके से पीएचडी कर पाते हैं। अन्य देशों की तरह हमारे देश में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में विद्यार्थी को शोध के लिए तैयार नहीं किया जाता है। ऐसे में हमारे देश में तो एमफिल जारी रहना ही चाहिए। इसके अलावा उन्होंने कहा कि कुछ लोग पीएचडी में न जाकर भी शोध करना चाहते हैं। पीएचडी में तो पांच साल तक का समय चाहिए लेकिन ऐसे विद्यार्थी एमफिल करके ही अपने शोध की इच्छा का पूरा कर सकते थे।
उनका कहना है कि पीएचडी से ड्रॉपआउट रोकने के लिए एमफिल का होना बहुत जरूरी है। एमफिल कर रहे कौशल ने बताया कि पिछले साल ही एमफिल को बंद करने की बात शुरू हो गई थीं लेकिन फिर भी उन्होंने एमफिल में ही दाखिला लिया। उनका कहना है कि हमारे जैसे देश में जहां शोध के लिए संसाधनों की बहुत कमी है। वहां पर एमफिल जैसे शोध पाठ्यक्रमों की बहुत जरूरत है। कौशल कहते हैं कि हमारे समाज में बहुत सारी असमानताएं हैं। ऐसे में एमफिल पाठ्यक्रम उन वंचित और पिछड़े इलाके से आने वाले विद्यार्थियों को शोध को समझने का समय देता है। कौशल का कहना है कि जब तक देश में स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर पर शोध का माहौल तैयार न हो तब तक एमफिल जारी रहना चाहिए।
डीयू से एमफिल कर चुके विकास ने बताया कि सामाजिक विज्ञान विषयों के लिए पीएचडी से पहले एमफिल बहुत जरूरी है। उन्होंने बताया कि एमफिल के दौरान उन्हें स्रोत का परीक्षण करना, संग्रहों का इस्तेमाल और थिसिस लिखना बताया जाता है। विद्यार्थी इनका इस्तेमाल पीएचडी के दौरान करता है। विकास ने बताया कि एमफिल करके ज्यादातर विद्यार्थी अपनी पीएचडी पूरी कर लेते हैं जबकि सीधे पीएचडी में दाखिले लेने वालों को इस पाठ्यक्रम को पूरा करने में बहुत परेशानियां होती हैं। विकास ने कहा कि हालांकि भविष्य में विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शिक्षकों की भर्ती में एमफिल का कोई मूल्य नहीं रहने वाला है क्योंकि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने नियुक्ति के नए नियम तय किए हैं और अगले साल से ये नियम लागू होंगे।
डीयू से हिंदी में एमए कर रहे पृथ्वीराज का कहना है कि मैं एमफिल को बंद करने के निर्णय से थोड़ा घबरा गया हूं। उन्होंने कहा कि मैंने कई विश्वविद्यालयों में एमफिल के लिए फॉर्म भरा था। उन्होंने कहा कि एमफिल करने के बाद पीएचडी में दाखिला आसान हो जाता है लेकिन अब हमें परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि दुनिया में जब शोध बढ़ रहा है, वैसे में हमारे देश में शोध आधारित पाठ्यक्रमों को कम किया जा रहा है।
शिक्षाविदों ने कहा, विद्यार्थियों का समय बचेगा
दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर दिनेश सिंह ने कहा कि एमफिल को बंद करने का फैसला अच्छा है। उन्होंने कहा कि यह बेकार की डिग्री है और मैं हमेशा से इस पक्ष का रहा हूं कि एमफिल को बंद किया जाना चाहिए। इससे विद्यार्थियों का समय खराब होता है। उन्होंने कहा कि हमने कई बार सरकार को कहा था कि इस पाठ्यक्रम को बंद किया जाना चाहिए। लेकिन सरकार ने तब हमारी बात नहीं सुनी। प्रोफेसर सिंह ने कहा कि पीएचडी करने के लिए एमफिल के ठप्पे की कोई आवश्यकता नहीं होती है जिन्हें पीएचडी करना है, वे एमए के बाद सीधे दाखिला ले सकते हैं।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर एसके सपोरी ने एमफिल पाठ्यक्रम को बंद करने के निर्णय का समर्थन करते हुए कहा कि इससे विद्यार्थियों के कई साल बचेंगे। उन्होंने कहा कि कई देशों में यह एमफिल पाठ्यक्रम नहीं है और वहां पर भी स्नातकोत्तर के बाद विद्यार्थी सीधे पीएचडी में दाखिला लेते हैं। उन्होंने कहा कि जब मैंने पीएचडी की थी तब भी एमफिल नहीं होता था। इस पाठ्यक्रम को बाद में शुरू किया गया। प्रोफेसर सपोरी ने कहा कि अधिकतर विश्वविद्यालयों में एमफिल और पीएचडी पाठ्यक्रम जुड़े हुए हैं। ऐेसे में एमफिल पाठ्यक्रम को बंद करने से विद्यार्थियों को भी नुकसान नहीं।

