इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) सीजन 9 और 10 के लिए दो नई टीमें राजकोट और पुणे होंगी। राजकोट को मोबाइल फोन बनाने वाली कंपनी इंटेक्स ने 10 करोड़ में और पुणे को आरपी-संजीव गोयनका ग्रुप ने 16 करोड़ में खरीदा। संजीव गोयनका की कंपनी न्यू राइजिंग के पास पुणे टीम का मालिकाना हक होगा। लेकिन पिछले पांच साल का औसत खर्च और राजस्व के आंकड़ों पर अनुमान लगाएं तो दोनों टीम मालिकों को 50 से 80 करोड़ रुपए का सालाना घाटा उठाना पड़ सकता है।
आंकड़े ये कह रहे हैं-
सालाना राजस्व (करोड़ रुपए में)
सेंट्रल पूल: इससे कुछ भी नहीं। इंटेक्स और संजीव गोयनका ने आईपीएल रेवेन्यू के सेंट्रल पूल में नेगेटिव क्लेम सबमिट किया है। यह दोनों ही टीमों के बीच बराबर बंटेगी। पिछले साल सेंट्रल पूल में हर टीम के लिए राजस्व 65 करोड़ रुपए था।
टिकट सेल्स: नॉकआउट से पहले खेले जाने वाले सात मैचों के लिए 20 करोड़ रुपए
प्राइज मनी: नहीं के बराबर। 70 फीसदी प्राइज मनी टीम के खिलाड़ियों के बीच बंटता है। विजेता बनने पर कुल 15 करोड़ रुपए प्राइज मनी मिलता है। दूसरे नंबर पर आए तो यह रकम 7 करोड़ रुपए है।
स्पॉन्सरशिप: 30 करोड़। जर्सी में आगे और पीछे, पैड्स आदि पर स्पॉन्सरशिप के जरिए नई टीमें 20 से 30 करोड़ रुपए जुटा सकती हैं।
कुल अनुमानित रेवेन्यू: करीब 55 करोड़ रुपए
सालाना खर्चा (करोड़ रुपए में)
खिलाड़ियों की सैलरी: 65 करोड़
फ्रेंचाइजी फी: 16 करोड़ रुपए पुणे टीम के संजीव गोयनका के लिए और 10 करोड़ रुपए राजकोट की ओनर कंपनी इंटेक्स के लिए
यात्रा और रहने आदि पर खर्च: 6 करोड़ रुपए
सपोर्ट स्टाफ का खर्च: 4 करोड़ रुपए
मार्केटिंग पर खर्च: 3 से 10 करोड़ के बीच
अन्य खर्चे: 10 करोड़ रुपए
इस तरह पुणे/संजीव गोयनका कुल खर्च 136 करोड़ और इंटेक्स के लिए यह रकम 125 करोड़ रुपए बनती है।
इन आंकडों के आधार पर अनुमान है कि अगर ये टीमें सेमीफाइनल तक पहुंचती हैं तो इन्हें 80 करोड़ रुपए का सालाना घाटा हो सकता है।
सेंट्रल पूल क्या है
बीसीसीआई ने एक सेंट्रल रेवेन्यू पूल बनाया है। इसमें टेलीविजन राइट्स से होने वाली कमाई और स्पॉन्सरशिप से मिलने वाला पैसा जोड़ा जाता है। इस पूल से बीसीसीआई हर टीम को बराबर रकम बांटता है। पिछले साल इस पूल से हर फ्रेंचाइजी टीम को करीब 65 करोड़ रुपए मिले थे। संजीव गोयनका और इंटेक्स ने नेगेटिव बिड्स भरी हैं, इसलिए सेंट्रल पूल के रेवेन्यू में उन्हें कोई हिस्सा नहीं मिलेगा। इसका मतलब यह हुआ कि मौजूदा टीमों को सेंट्रल पूल से ज्यादा हिस्सेदारी मिलेगी।
ऐसा हो सकता है कि नई टीमें राजस्व जुटाने के लिए कुछ उन तरीकों को आजमाएं जो अब तक नहीं अपनाए गए हैं। वे खिलाड़ियों को खरीदने पर भी 65 करोड़ रुपए की अधिकतम लिमिट से कम रकम खर्च कर सकती हैं। यहां ये आंकड़े पिछले कुछ सालों में बाकी टीमों की वित्तीय हालत को ध्यान में रखते हुए अनुमानित किए गए हैं।