दुनिया को सिजोफ्रेनिया नाम की बीमारी के बारे में ज्यादा नहीं पता। विशेषज्ञों का कहना है कि हम वास्तव में नहीं जानते कि किसी के दिमाग के भीतर क्या चल रहा होता है। दुनिया को बस यह पता है कि सिजोफ्रेनिया एक गंभीर मानसिक बीमारी है। इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति काल्पनिक और वास्तविक बातों के बीच के अंतर को नहीं समझ पाता है। उसे ऐसी आवाजें सुनाई देती हैं जो वास्तव में होती ही नहीं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि दुनिया में हर तीन सौ में से एक व्यक्ति सिजोफ्रेनिया से प्रभावित होता है। बर्लिन के चैरिटी मेडिकल कालेज के शोधकर्ता और विज्ञान पत्रिका नेचर में प्रकाशित दो आलेखों में से एक के सह-लेखक स्टीफन रिप्के कहते हैं कि सिजोफ्रेनिया के बारे में हम बिल्कुल ही कम जानते हैं, नहीं के बराबर।

शोधकर्ताओं की दो अंतरराष्ट्रीय टीम ने ऐसे जीन म्यूटेशन की खोज की है, जिनके बारे में उनका कहना है कि वे किसी व्यक्ति में इस बीमारी के विकास की संभावना को प्रभावित करते हैं। करीब 120 और भी ऐसे जीन म्यूटेशन हो सकते हैं, जिनकी इस बीमारी में भूमिका हो सकती है। इस मौलिक शोध का मौजूदा मरीजों को तुरंत फायदा नहीं होगा, लेकिन शोधकर्ताओं का मानना है कि इससे इलाज को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी।

दो आनुवंशिक अध्ययनों में से पहला अध्ययन ब्रिटेन की कार्डिफ यूनिवर्सिटी के ‘साइकियाट्रिक जीनोमिक्स कंसोर्टियम- पीजीसी’ ने किया है। उन्होंने सिजोफ्रेनिया का खतरा पैदा करने वाले विशेष आनुवंशिक भिन्नता की खोज के लिए पूरे जीनोम की जांच की। इसी विशेष आनुवंशिक भिन्नता की वजह से व्यक्ति में सिजोफ्रेनिया विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है।

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) का कहना है कि दक्षिण एशियाई देशों में कोरोना विषाणु महामारी के बढ़ने से इसका असर यहां रहने वाले बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। यूनिसेफ का कहना है कि ऐसा संकट पहले कभी नहीं देखने में आया। वैज्ञानिकों ने 2,44,000 सामान्य लोगों और सिजोफ्रेनिया से पीड़ित 77,000 लोगों के डीएनए का विश्लवेषण किया।

इस दौरान उन्होंने पाया कि जीनोम के 300 हिस्से सिजोफ्रेनिया के खतरे वाले आनुवंशिक के साथ जुड़े हुए हैं। उन हिस्सों के भीतर, उन्होंने 120 जीन की खोज की जो मानसिक विकार पैदा करने में भूमिका निभा सकते हैं। दूसरा अध्ययन एमआइटी के ब्राड इंस्टीट्यूट और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं से बनी स्किमा टीम ने किया। उन्होंने जीन के 10 ऐसे दुर्लभ म्यूटेशनों का पता लगाया जो लोगों में सिजोफ्रेनिया का खतरा बढ़ाते हैं।

साथ ही, 22 और ऐसे जीन की खोज की जो सिजोफ्रेनिया विकसित करने में भूमिका निभा सकते हैं। स्किमा के सह-लेखक और पीजीसी के सदस्य बेंजामिन नेले ने कहा, सामान्य तौर पर इंसान में पूरी जिंदगी के दौरान सिजोफ्रेनिया विकसित होने की संभावना करीब एक फीसद होती है। लेकिन अगर आपमें इनमें से कोई एक म्यूटेशन है, तो यह संभावना 10, 20, और यहां तक कि 50 फीसद तक बढ़ जाती है।

आम तौर पर सिजोफ्रेनिया के लक्षण इंसान में किशोरावस्था में दिखने लगते हैं। पिछले शोध में पाया गया है कि किशोरों की परवरिश, मादक द्रव्यों का सेवन या गर्भ के दौरान मां का खान-पान सिजोफ्रेनिया का जोखिम बढ़ा सकता है। सिजोफ्रेनिया 60 से 80 फीसद अनुवांशिक है। ये कुछ दूसरे मानसिक रोगों के लिए भी लागू होता है। रिप्के का कहना है कि सिजोफ्रेनिया का शोध जानवरों के ऊपर नहीं किया जा सकता, क्योंकि वे शोधकर्ताओं के साथ अपनी भावनाओं को साझा नहीं कर सकते। इंसानों पर शोध जैविक शोध पर नैतिक सवालों के साथ जुड़ी है।