अप्रैल का महीना कई सारी परेशानियां लेकर आया है। एक तरफ दिल्ली में अप्रैल की गर्मी ने 72 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। वहीं अब बिजली संकट भी नए कीर्तिमान कायम करने की तरफ तेजी से कदम आगे बढ़ा रहा है। यूपी, महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में कोयले की भारी किल्लत हो गई है, जिसके चलते बिजली की कटौती पहले से बहुत ज्यादा बढ़ गई है। महाराष्ट्र में तो बिजली संकट सिर चढ़कर बोल रहा है। उद्धव सरकार की समझ में नहीं आ रहा कि इस संकट से कैसे निपटा जाए।

भारत में 70 फीसदी से अधिक बिजली कोयले से उत्पादित होती है, ऐसे में ये चिंता का विषय है क्योंकि इससे महामारी के बाद पटरी पर लौट रही अर्थव्यवस्था फिर से पटरी से उतर सकती है। भारत हर साल 779 मिलियन टन कोयले का उत्पादन कर चीन के बाद दूसरे नंबर पर है। भारत ने हाल के सालों में पर्यावरण के लिए अपनी प्रतिबद्धताएं पूरी करने के लिए कोयले पर अपनी निर्भरता कम करने की कोशिश की है जिसकी वजह से भारत में कोयला उत्पादन भी कम हुआ है।

देश में पैदा होने वाली 70 फीसदी बिजली थर्मल पावर प्लांट से आती है। कुल पावर प्लांट में से 137 पावर प्लांट कोयले से चलते हैं। भारत में 80 फीसदी कोयला कोल इंडिया लिमिटेड मुहैया कराती है। इसके बावजूद भारत को अपनी जरूरत का 20 से 25 फीसदी कोयला दूसरे देशों से इम्पोर्ट करना पड़ता है, क्योंकि भारत में बनने वाले कोयले में कैलोरिफिक वैल्यू कम होती है। इससे कोयले की मांग हमेशा ज्यादा बनी रहती है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक गर्मी शुरू होने के साथ ही देश के ज्यादातर बिजली संयंत्रों में कोयला भंडार नौ साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया है। उधर, गर्मी बढ़ने के साथ बिजली की मांग बढ़नी लाजिमी है। मौसम विभाग के मुताबिक उत्तर एवं मध्य भारत के अधिकतर इलाके में अप्रैल में अधिकतम तापमान सामान्य से अधिक रहने वाला है। कोयला न होने की वजह से पॉवर प्लांट अपनी क्षमता से काम नहीं कर पा रहे हैं। यही वजह है कि देश के कई हिस्सों में तो बिजली की कटौती शुरू हो चुकी है। सबसे ज्यादा असर बढ़े राज्यों पर पड़ रहा है।

मामले से जुड़े लोगों के मुताबिक बिजली संकट को बढ़ाने में कोरोना भी खासा जिम्मेदार है। कोरोना लॉकडाउन के बाद पटरी पर लौट रही औद्योगिक गतिविधियों के चलते फैक्टरियों और उद्योगों में बिजली की खपत बढ़ी है। महाराष्ट्र और यूपी जैसे सूबों में बुरा हाल है। महाराष्ट्र 4,700 मेगावाट बिजली की कमी का सामना कर रहा है। जबकि यूपी में 21 से 22 हजार मेगावाट बिजली की मांग है। जबकि सिर्फ 19 से 20 हजार मेगावाट बिजली ही मुहैया हो पा रही है। महाराष्ट्र सरकार ने कृषि उपभोक्ताओं को बिजली कटौती से अलग रखा है।

आंकड़ों के मुताबिक देश में कोयला आधारित बिजली संयंत्रों की कुल क्षमता 203167 मेगावाट बिजली बनाने की है। लेकिन इन बिजली संयंत्रों के पास 12 अप्रैल, 2022 को कोयले की आपूर्ति घट कर महज 8.4 दिनों के लिए रह गई है। नियमों के मुताबिक संयंत्रों के पास 24 दिनों का स्टाक रहना चाहिए। केंद्र भी मान रहा है कि संकट बढ़ा है। इस साल जितनी तेज़ी से मांग बढ़ी है, उतनी पहले कभी नहीं देखी गई। फिलहाल कोयले का रिजर्व आज 9 दिन का है जबकि पहले 14 दिन का रहता था।

रूस-यूक्रेन वॉर से हालात और खराब

अंतरराष्ट्रीय बाजार में यूक्रेन-रूस युद्ध की वजह से कोयले की कीमतें आसमान छू रही हैं। कोयले की कीमत कुछ समय पहले 400 डॉलर प्रति टन तक हो गई थी। अभी ये 300 डॉलर पर है। केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने बताया कि पिछले एक सप्ताह में 1.4% मांग बढ़ने से बिजली संकट गहराया है। उन्होंने कहा कि कोयले का स्टाक पहले की तरह 17 दिन का नहीं है लेकिन 4 दिन से ज्यादा है। उनका कहना है कि हमने थोड़ा आयात कम किया है, जिससे हमारी मांग बढ़ी है। फिलहाल उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए तेजी से काम किया जा रहा है।

मांग 25 हजार की मिल रही है केवल 16- राउत

महाराष्ट्र के ऊर्जा मंत्री नितिन राउत ने शनिवार को कहा कि कोयले की कमी से राज्य में बिजली कटौती जरूरी हो गई है। लेकिन कृषि उपभोक्ताओं को रोजाना दिन में आठ घंटे और रात को आठ घंटे निर्बाध बिजली आपूर्ति की जा रही है। उन्होंने कहा कि अब अधिकतम मांग बढ़कर 25,144 मेगावाट तक पहुंच गई है। लेकिन कोयले की कमी की वजह से मांग का केवल 78 प्रतिशत, यानी 16,487 मेगावाट ही उपलब्ध है।