आपने सोचा होगा, कल सुबह चार बजे जागना है, बिना अलार्म लगाए आप सो गए और सुबह ठीक चार बजे फोन का अलार्म बजने लगा, आप उठ कर खड़े हो गए। दफ्तर से घर आते वक्त रास्ते में याद आया कि अपने अधिकारी को एक जरूरी मेल भेजना तो भूल ही गए, लेकिन जब आप इसी काम के लिए मेलबाक्स खोलते हैं तो पाते हैं कि अधिकारी को मेल जा चुका है। यह कैसे हो रहा है? आप जो भी काम सोच रहे हों, बिना कोई कमांड दिए यह काम हो कैसे रहा है? हम किसी फिल्म का दृश्य नहीं बता रहे, बल्कि अगले कुछ सालों में इंसानी जीवन-शैली की झलकियां दे रहे हैं।

इस नई तकनीक में आपका दिमाग और मशीन एक-दूसरे के साथ सीधा संबंधित होकर बिना कोई कमांड दिए सोचने भर से काम शुरू कर देंगे। एलन मस्क ने पिछले साल ऐसी घोषणा की, जिसने सबको चैंका दिया। मस्क ने कहा कि उनकी कंपनी न्यूरालिंक ने एक ऐसा ‘न्यूरल इम्प्लांट’ विकसित किया है, जो बिना किसी बाहरी हार्डवेयर के दिमाग के अंदर चल रही गतिविधि को वायरलेस से प्रसारित कर सकेगा।

मस्क ने इस तकनीक का सबके सामने प्रदर्शन भी किया। घोषणा करते हुए कुछ ऐसे सुअरों को दिखाया, जिनके दिमाग में न्यूरालिंक के डिवाइस को प्रत्यारोपित किया गया था। ये सुअर जो भी हरकतें कर रहे थे, उनके दिमाग के भीतर की सारी गतिविधियां एक स्क्रीन पर दिखाई दे रही थीं।

न्यूरालिंक कंपनी की घोषणा करते हुए मस्क ने बताया कि इसका लक्ष्य एक ऐसे ‘न्यूरल इंप्लांट’ को विकसित करने का है, जो इंसानी दिमाग को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से ‘सिंक्रोनाइज’ कर कंप्यूटर, कृत्रिम शारीरिक अंग और दूसरी मशीनों को केवल विचारों के माध्यम से चला सके। न्यूरालिंक जिस उपकरण को बना रहा है, वह एक उंगली के नाखून के बराबर बैटरी से चलने वाली और इंसानी बाल से भी कई गुना पतले तारों से लैस छोटी-सी मशीन होगी, जो दिमाग के अंदर प्रत्यारोपित कर दी जाएगी।

न्यूरालिंक के इंप्लांट में बैटरी, प्रोसेसिंग चिप और ब्लूटूथ रेडियो सहित सभी आवश्यक चीजें होंगी। साथ ही इस डिवाइस में लगभग एक हजार इलेक्ट्रोड होंगे। हर इलेक्ट्रोड दिमाग में शून्य और चार के न्यूरान्स (दिमाग के अंदर संदेशवाहक कोशिकाओं) के बीच की गतिविधि को रिकार्ड करता है।

हालांकि वैज्ञानिकों के लिए यह तकनीक नई नहीं है, विश्व स्तर पर शोधकर्ताओं की टीम करीब पंद्रह सालों से मनुष्यों में ‘सर्जिकली इंप्लांटेड चिप (ब्रेन कंप्यूटर इंटरफेस) सिस्टम’ पर काम कर रही है। एलन मस्क की कंपनी केवल इस डिवाइस को बनाने में ही काम नहीं कर रही, बल्कि इस डिवाइस को दिमाग के भीतर लगाने की तकनीक पर भी काफी हद तक सफलता पा चुकी है।

न्यूरालिंक ने एक ऐसा सर्जिकल रोबोट विकसित किया है, जो दिमाग में बेहद संवेदनशील गहराई तक प्रत्यारोपित करने पर दिमाग के तंतुओं को कम से कम नुकसान पहुंचाता है। कालांतर में अगर यह तकनीक संपूर्ण रूप से विकसित हो गई तो इसका सबसे ज्यादा लाभ उन लोगों को होगा, जो रीढ़ की हड्डी, चोट, पक्षाघात, या अन्य किसी शारीरिक या मानसिक अक्षमता से गुजर रहे हैं।