इंदिरा गांधी की सरकार इमरजेंसी के दौर में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जापान में रखी अस्थियां भारत वापस नहीं लाना चाहती थी। शनिवार को मोदी सरकार की ओर से सार्वजनिक की किए गए नेताजी से जुड़े दस्‍तावेजों के जरिए यह खुलासा हुआ है। केंद्रीय गृह मंत्रालय, खुफिया विभाग और विदेश मंत्रालय के बीच हुए पत्राचार से पता चलता है कि टोक्यो स्थित भारतीय दूतावास ने रेन्‍कोजी मंदिर के मुख्य पुजारी के पास रखी उन अस्थियों को भारत लाने का प्रस्ताव दिया था।

दो सौ पन्नों की इस फाइल से साफ है कि तत्कालीन केंद्र सरकार उन अस्थियों को भारत लाने की इच्छुक नहीं थी। फाइल में मौजूद पत्रों में कहा गया है कि नेताजी के परिजनों और कुछ लोगों की ओर से संभावित विरोध की आशंका के चलते ही सरकार इसे लाने से कतरा रही है।

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इंदिरा गांधी सरकार को डर था कि अगर नेताजी की अस्थियां भारत लाई गईं तो ‘फॉरवर्ड ब्‍लॉक’ को ताकत मिल जाएगी। ‘फॉरवर्ड ब्‍लॉक’ उस समय बड़ी राजनीतिक शक्ति था। विदेश मंत्रालय में उत्तर व पूर्वी एशिया मामलों के तत्कालीन संयुक्त सचिव एनएन झा ने जुलाई 1976 में अस्थियों को लाने की स्थिति में प्रतिकूल प्रतिक्रिया का अंदेशा जताया था। उस समय देश में आपातकाल लागू था। उसके बाद अगस्त, 1976 में खुफिया विभाग के संयुक्त निदेशक टीवी तेजेश्वर ने अपने सहयोगियों को सलाह दी थी कि अस्थियों को भारत नहीं लाना चाहिए क्योंकि उससे जटिलताएं पैदा होंगी।

उन्होंने अपने नोट में कहा है कि बोस के परिजन और उनकी ओर से स्थापित फॉरवर्ड ब्लॉक इन अस्थियों को नेताजी की नहीं मानते। ऐसे में उनको वापस लाने पर सरकार पर झूठी कहानी गढ़ने का आरोप लगेगा और चुनावों के समय यह एक अहम मुद्दा बन जाएगा।

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