कोरोना के कारण सरकार ने संसद कवरेज के लिए पत्रकरों की संख्या सीमित कर दी थी। एक नए आदेश के तहत एक मीडिया ग्रुप से सिर्फ एक ही पत्रकार संसद की कार्यवाही को कवरेज कर सकता था।
हालांकि, सरकार के आलोचकों का मानना है कि सांसदों और प्रेस के बीच न्यूनतम संपर्क सुनिश्चित करने के लिए पत्रकारों की सूची में भारी कटौती की गई है। सरकार के नए नियम बाकि सब पर तो लागू हुआ लेकिन एक चैनल को इसके लिए भी पास नहीं मिला। टीवी चैनल एनडीटीवी के राजनीतिक मामलों के संपादक सुनील प्रभु को संसद कवरेज के लिए पिछले 2 सत्रों से पास नहीं मिला।
एनडीटीवी ने लोकसभा अध्यक्ष को पत्र लिखकर आपत्ति जताई कि उसके राजनीतिक मामलों के संपादक सुनील प्रभु को पिछले दो सत्रों से संसदीय पास नहीं दिया जा रहा है। पास जारी ना करके के लिए कोई कारण नहीं बताया गया है। सुनील प्रभु ने दो दशकों से अधिक समय तक लोकसभा को कवर किया है और सांसदों से निकटता के कारण उन्होंने कई महत्वपूर्ण खबरें ब्रेक की है। यदि अधिकारियों को यह चुनने के लिए अधिकृत किया जाता है कि कौन से पत्रकार संसद को कवर कर सकते हैं, तो यह एक खतरनाक प्रवृत्ति स्थापित कर सकता है।
बता दें कि मानसून सत्र के दौरान सत्तापक्ष और विपक्ष में जमकर तनातनी रही। पेगासस जासूसी कांड और किसानों के मुद्दों पर चर्चा करने के लिए विपक्ष अड़ा रहा। इसी बीच हंगामे के बीच में ही सरकार ने कई महत्वपूर्ण बिल भी पास कराए। विपक्ष ने सरकार पर जहां आवाज दबाने और संसद नहीं चलाने की मंशा का आरोप लगाया तो वहीं सरकार विपक्ष को हंगामा कर सदन बाधित करने का आरोप लगाती रही।
सत्र के अंतिम दिन तो राज्यसभा में गजब ही स्थिति देखने को मिली। सभापति वैंकया नायडू विपक्ष की हरकतों से जहां भावुक होते दिखे, वहीं विपक्ष ने मार्शलों के जरिए सदस्यों को पिटवाने का आरोप लगाया। संसद में सरकार की कार्रवाई से नाराज विपक्ष जहां सड़कों पर उतरा वहीं सरकार की ओर से मंत्रियों ने प्रेस कांफ्रेस कर विपक्ष पर हमला बोला। अब सत्र समय से पहले समाप्त हो चुका है, लेकिन विवाद है कि सरकार का पीछा ही नहीं छोड़ रहा है।