भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के मुद्दे पर सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं। विपक्ष के भारी विरोध और सदन से वाकआउट के बीच मंगलवार को सरकार ने यह विधेयक लोकसभा में पेश कर दिया। चौतरफा विरोध के मद्देनजर सरकार अब इस मामले में बचाव की मुद्रा में नजर आ रही है। राज्यसभा में केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के बयान से इसके संकेत साफ दिखे। उन्होंने कहा कि सरकार इस मामले में विपक्ष के साथ वार्ता के बाद ही आगे बढ़ेगी। मंगलवार सुबह खुद प्रधानमंत्री का रुख अड़ियल था। पार्टी सांसदों की हर हफ्ते होने वाली बैठक में मोदी ने सांसदों से कहा कि विपक्ष इस मुद्दे पर भ्रम फैला रहा है। पर सरकार पीछे नहीं हटेगी।
पार्टी सांसदों को विपक्ष के प्रचार का खुल कर मुकाबला करना चाहिए। दूसरी ओर विधेयक के खिलाफ सामाजिक कार्यकर्ता अण्णा हजारे के विरोध प्रदर्शन के दूसरे दिन मंगलवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी जंतर मंतर पहुंच कर उसमें शामिल हो गए और उनके साथ मंच साझा किया। हालांकि अण्णा ने पहले किसी भी नेता के साथ मंच साझा करने से इनकार किया था। लेकिन जो नेता मंच पर बैठे थे, उनमें केजरीवाल के अलावा भाकपा के अतुल अंजान और एमडीएमके के वाइको भी शामिल थे।
विपक्ष के भारी विरोध और वाकआउट के बीच सरकार ने लोकसभा में भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक पेश कर दिया। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह ने जैसे ही ‘भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकार और पारदर्शिता का अधिकार संशोधन विधेयक 2015’ को पेश करने की अनुमति मांगी, पूरा विपक्ष खड़े होकर इसका विरोध करने लगा। कांग्रेस, सपा, तृणमूल कांग्रेस, राजद, आम आदमी पार्टी सहित कई विपक्षी दलों के सदस्य अध्यक्ष के आसन के पास आ गए और विधेयक को पेश किए जाने का विरोध करने लगे।
संसदीय कार्य मंत्री एम वेंकैया नायडू ने विपक्षी सदस्यों को राजी कराने का प्रयास करते हुए कहा कि भाजपा सरकार पूरी तरह से किसानों के हित में है और वह इस विधेयक के प्रावधानों पर चर्चा के लिए तैयार है। लेकिन विपक्षी सदस्यों पर इसका असर नहीं हुआ। कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने विधेयक को किसान विरोधी और गरीब विरोधी बताया।
तृणमूल कांग्रेस के स्वागत राय ने भी विधेयक को किसान विरोधी करार देते हुए कहा कि इससे किसान खस्ताहाल हो जाएंगे। उन्होंने विधेयक को पेश किए जाने का पुरजोर विरोध करते हुए कहा कि पूरे देश इसके खिलाफ है। बीजू जनता दल के भृतुहरि महताब ने कहा कि कहा कि इससे देश का बड़ा तबका प्रभावित होगा। राजग सरकार को समर्थन दे रहे स्वाभिमानी शेतकरी संगठन के राजू शेट्टी ने भी इसका विरोध किया।
सरकार की तरफ से विधेयक का बचाव करते हुए नायडू ने कहा कि 32 राज्य सरकारों व केंद्र शासित क्षेत्रों ने केंद्र को ज्ञापन देकर कानून में संशोधन की मांग की थी और कहा था कि इस कानून के चलते विकास कार्य असंभव हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार किसानों के कल्याण को सर्वोच्च प्राथमिकता देती है। सरकार सभी बिंदुओं पर चर्चा के लिए तैयार हैं।
भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को किसान विरोधी करार देते हुए एकजुट विपक्ष ने राज्यसभा में भी सरकार पर चौतरफा हमला किया। उच्च सदन में कांगे्रस, वाम, जद (एकी), सपा, तृणमूल कांगे्रस सहित विभिन्न दलों के नेताओं ने भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को किसानों और कृषि क्षेत्र के हितों को तबाह करने वाला व कारपोरेट समूहों के हितों वाला करार देते हुए इसके विवादास्पद प्रावधानों को वापस लेने की मांग की। इस पर वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि वे इस मुद्दे पर विभिन्न पार्टियों के साथ बातचीत के संबंध में दिए गए सुझाव से संबद्ध मंत्री को अवगत कराएंगे। सदन के नेता के इस आश्वासन के बाद सदन में सामान्य ढंग से कामकाज होने लगा।
इस मुद्दे को अन्य नेताओं द्वारा उठाए जाने की मांग किए जाने पर उपसभापति पीजे कुरियन ने कहा कि जब सदन के नेता जेटली यह कह चुके हैं कि सरकार इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ बातचीत करेगी तो फिर इस पर सदन में अभी चर्चा की जरूरत नहीं है।
इस बीच कांग्रेस के शशि थरूर ने कहा कि भूमि अधिग्रहण विधएक को महज डेढ़ साल पहले पारित किया गया था और इसे भाजपा सहित सभी दलों द्वारा स्वीकार किया गया था। उन्होंने कहा कि अब यह उन पर है कि वे संशोधन पेश करें जो बुनियादी रूप से विधेयक की मूल भावना को बदलता हो। साफ तौर पर इसे पूरे देश में किसान विरोधी कार्रवाई के रूप में देखा जाएगा।
उधर, अण्णा ने कहा कि राजनीतिक पार्टियों के लोगों का आंदोलन में शामिल होने के लिए स्वागत है, लेकिन वे उनके साथ मंच साझा नहीं करेंगे। उन्होंने साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि वे आंदोलन को कोई राजनीतिक रंग देने की इजाजत नहीं देंगे।
अण्णा ने राजग सरकार पर किसानों के हितों का ध्यान नहीं रखने का आरोप लगाया। सोमवार को उन्होंने कहा था कि देश भर में तीन-चार महीने पदयात्रा करने के बाद रामलीला मैदान से जेल भरो आंदोलन शुरू किया जाएगा। अण्णा ने सरकार पर केवल औद्योगिक घरानों का ध्यान रखने का आरोप लगाते हुए कहा कि जब तक सरकार विवादित अध्यादेश वापस नहीं लेती है तब तक वे नहीं मानेंगे। उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि राजनीतिक दल देश के ही हैं और सरकार चलाने वाले लोग भी देश के हैं। जो लोग नाइंसाफी झेल रहे हैं वे भी इसी देश के हैं। इसलिए किसानों के साथ अगर अन्याय हुआ है और अगर सभी अन्याय से लड़ने के लिए साथ आते हैं तो क्या परेशानी है।
करीब तीन साल के दुराव के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मंगलवार को अण्णा के साथ मंच साझा करते हुए भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ गांधीवादी नेता के आंदोलन का पूरा समर्थन किया और कहा कि इस कानून से केंद्र सरकार औद्योगिक घरानों के लिए प्रॉपर्टी डीलर की तरह काम करने लगेगी। मेल-मिलाप का संकेत देते हुए अण्णा ने प्रदर्शन स्थल पर अरविंद केजरीवाल का स्वागत किया। आंदोलन में आम आदमी पार्टी (आप) के सभी विधायकों और वरिष्ठ नेताओं ने शिरकत की। अपने संक्षिप्त संबोधन में केजरीवाल ने विवादास्पद विधेयक को लेकर केंद्र की जम कर आलोचना की और कहा कि गरीब विरोधी नीतियों के कारण दिल्ली विधानसभा चुनावों में जनता ने भाजपा को दंडित किया। जबकि इसी जनता ने लोकसभा चुनावों में उन्हें भारी जीत दिलाई थी।
केजरीवाल ने कहा कि अगर देश में कोई भी सरकार गरीबों और किसानों के खिलाफ कानून बनाएगी तो जनता उसे नहीं टिकने देगी। उन्होंने कहा- दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में मैं घोषणा करना चाहता हूं कि महानगर में किसी को भी जबरन जमीन लेने की अनुमति नहीं होगी।