दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश में टाइपिंग की गलती के कारण दोषमुक्त करार दिये गए एक व्यक्ति को पुन: गिरफ्तार करने के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई से पहले सुप्रीम कोर्ट ने उसे समर्पण करने का निर्देश दिया है। जस्टिस ए.के सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण की पीठ ने दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र को कोई भी राहत देने से इनकार कर दिया जिसे हत्या के एक मामले में एक निचली अदालत ने 30 साल जेल की सजा सुनाई थी।
अदालत ने लापता दोषी के वकील से साफ कहा है कि पहले उसे समर्पण करना चाहिए और जमानत अर्जी देनी चाहिए, तभी उसकी याचिका पर विचार किया जाएगा। शीर्ष अदालत ने दोषी को वापस जेल भेजने का निर्देश देने की मांग वाली पीड़ितों के परिजनों की एक अलग याचिका पर दिल्ली सरकार को भी नोटिस भेजा। पीठ ने कहा, ‘‘जहां तक 14 फरवरी और 22 मार्च के आदेशों की बात है तो हम इस स्तर पर स्थगन आदेश नहीं दे रहे। पहले याचिकाकर्ता समर्पण करे और जमानत अर्जी दे, जिस पर उनके गुण-दोषों के आधार पर विचार किया जाएगा।’’
शीर्ष अदालत जितेंद्र की रिहाई को ‘टाइपोग्राफिकल त्रुटि’ बताने और उसकी पुन: गिरफ्तारी का आदेश देने के हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ जितेंद्र की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। हाई कोर्ट ने 24 दिसंबर, 2016 को जितेंद्र की रिहाई का आदेश दिया था। बाद में 14 फरवरी, 2017 को आदेश को बदलकर उसकी गिरफ्तारी का निर्देश दिया गया।