देश के प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर ने शनिवार (8 अप्रैल) को कहा कि चुनावी वायदे आमतौर पर पूरे नहीं किये जाते हैं और घोषणा पत्र सिर्फ कागज का एक टुकडा बन कर रह जाता है, इसके लिये राजनीतिक दलों को जवाबदेह बनाया जाना चाहिए। प्रधान न्यायाधीश ने यहां ‘‘चुनावी मुद्दों के संदर्भ में आर्थिक सुधार’’ विषय पर एक संगोष्ठी को संबोधित करते हुये यह टिप्पणी की। उन्होंने कहा, ‘‘आजकल चुनावी घोषणा पत्र महज कागज के टुकडे बन कर रहे गये हैं, इसके लिये राजनीतिक दलों को जवाबदेह बनाया जाना चाहिए।’’
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के सानिध्य में संगोष्ठी को संबोधित करते हुये न्यायमूर्ति खेहर ने कहा कि चुनावी वायदे पूरे नहीं करने को न्यायाचित ठहराते हुये राजनीतिक दलों के सदस्य आमसहमति का अभाव जैसे बहाने बनाते हैं। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि नागरिकों की याददाश्त अल्पकालिक होने की वजह से ये चुनावी घोषणा पत्र कागज के टुकडे बनकर रह जाते हैं परंतु इसके लिये राजनीतिक दलों को जवाबदेह बनाया जाना चाहिए।
Gap between electoral promises & fulfilment does not become an electoral issue, process of winning elections takes toll: CJI Khehar (2/2) pic.twitter.com/B10d06w4Mf
— ANI (@ANI_news) April 8, 2017
वर्ष 2014 में हुये आम चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों के घोषणा पत्रों के बारे में प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि इनमें से किसी में भी चुनाव सुधारों और समाज के सीमांत वर्ग के लिये आर्थिक्-सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के सांविधानिक लक्ष्य के बीच किसी प्रकार के संपर्क का संकेत ही नहीं था।
उन्होंने कहा कि इस तरह से रेवड़ियां देने की घोषणाओं के खिलाफ दिशानिर्देश बनाने के लिये निर्वाचन आयोग को उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के बाद से आयोग आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के लिये राजनीतिक दलों के खिलाफ कार्रवाई कर रहा है।
प्रधान न्यायाधीश के बाद दूसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा ने भी चुनाव सुधारों पर जोर देते हुये कहा कि ‘‘खरीदने की ताकत का चुनावों में कोई स्थान नहीं है’’ और प्रत्याशियों को यह ध्यान में रखना चाहिए कि ‘‘चुनाव लडना किसी प्रकार का निवेश नहीं है।’’
उन्होंने कहा कि चुनाव अपराधीकरण से मुक्त होने चाहिए और जनता को चाहिए कि प्रत्याशियों की प्रतिस्पर्धात्मक खामियों की बजाये उनके उच्च नैतिक मूल्यों के आधार पर ही उन्हें मत दे।