राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने वाद-विवाद और परिचर्चा के मुद्दे पर शनिवार (1 अप्रैल) को छात्र समुदाय का आह्वान किया कि वे तर्क-वितर्क करने वाले बनें, लेकिन असहनशील नहीं बनें। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को आधुनिक भारत का निर्माता बताते हुए प्रणव ने कहा कि उन्होंने संघर्ष और टकराव का माहौल नहीं बनाकर खुली बहस और परिचर्चा का माहौल बनाने में मदद की।

भारतीय प्रबंध संस्थान (आईआईएम) कलकत्ता के 52वें दीक्षांत समारोह में प्रणव ने कहा, ‘‘जैसा कि अमर्त्य सेन ने कहा था, कोई भारतीय तर्क-वितर्क करने वाला तो हो सकता है, लेकिन असहनशील नहीं हो सकता।’’

राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘भारत सहनशीलता, बुद्ध की भूमि, चैतन्य की भूमि है, लेकिन असहनशीलता की भूमि नहीं है। अगर ऐसा कहकर मैंने किसी की भावनाएं आहत कर दी हों, तो मुझे माफ करें।’’

प्रणव ने यह भी कहा कि प्रबंधन शिक्षा को विश्व स्तरीय बनाने के लिए अलग-अलग शैक्षणिक तौर-तरीकों, बहुविषयक चीजों और समकालीन कौशलों एवं क्षमताओं को अपनाने की जरूरत है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘शिक्षा में विचार के नेतृत्व के स्तर पर बहुलता से उत्कृष्टता के कई रास्ते एक साथ खुल जाते हैं ।’’ उन्होंने कहा कि आईआईएम-कलकत्ता की प्राथमिकताओं और कदमों से यह स्पष्ट है। राष्ट्रपति ने कहा कि संस्थान ने राह दिखाई है और शिक्षा के स्तर में नवोन्मेषी सुधार लाने में वह नेतृत्वकर्ता की भूमिका निभाएगा।

उन्होंने कहा, ‘‘विश्वविद्यालयों में सैकड़ों तरह के विचार पनपने दें और वाद-विवाद होने दें, लेकिन टकराव मोल नहीं लें। आलोचना को तर्क के तौर पर स्वीकार करें, असहनशीलता के तौर पर नहीं।’’

प्रणव ने छात्रों में सामाजिक-आर्थिक परिवेश के प्रति संवेदनशीलता पैदा करने के लिए प्रबंधन शिक्षा को समग्र बनाने की वकालत भी की।