जम्मू-कश्मीर के उरी में हुे आतंकी हमले में 18 सैनिकों के मारे जाने के बाद भारतीय सेना और अन्य जांच एजेंसियों ने मामले की जांच शुरू कर दी है। सूत्रों के अनुसार आंतकियों को किसी “अंदरूनी भेदिए” से मदद मिलने की भी जांच की जा रही है। सेना को संदेह है कि 12 इन्फैंट्री ब्रिगेड मुख्यालय पर हुए हमले के लिए आतंकियों को किसी ऐसे व्यक्ति ने मदद की हो जिसे कैम्प के बारे में अंदरूनी जानकारी रही हो। सूत्रों के अनुसार आतंकियों को ये तक पता था कि कैम्प के अंदर ब्रिगेड कमांडर का दफ्तर और कार्यालय किस जगह पर स्थित है। सूत्रों के अनुसार सेना आतंकियों के नियंत्रण रेखा (एलओसी) से सुखदर से होते हुए उरी पहुंचने के रास्ते की भी पड़ताल कर रही है। करीब 500 आबादी वाला सुखदर गांव ब्रिगेड मुख्यालय से महज चार किलोमीटर दूर है। गांव और ब्रिगेड मुख्यालय के बीच स्थित जंगल की वजह से आंतकियों को मदद मिली होगी।

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सूत्रों के अनुसार आंतकियों ने जैसा घातक हमला किया उससे प्रतीत होता है कि उन्हें किसी ऐसे व्यक्ति की मदद मिली थी जिसे न केवल इस इलाके की बल्कि सैनिक टुकड़ियों की आवाजाही की भी पूरी जानकारी थी। सूत्रों के अनुसार आतंकियों ने पहले एलओसी पर लगी बाड़ को पार किया और उसके बाद ब्रिगेड मुख्यालय पर लगी बाड़ को, फिर सेना और सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के पिकेट और चेकपोस्ट को।

एक सूत्र ने कहा, “ब्रिगेड मुख्यालय के अंदर घुसना बहुत मुश्किल है क्योंकि उसके चारों तरफ कड़ी सुरक्षा है, वो किले जैसा परिसर है। मुख्यालय से पूरी तरह परिचित आदमी ही किसी की नजर में आए बिना अंदर घुस सकता है। इसीलिए जांचकर्ता संभावित “अंदरूनी भेदिए” की पड़ताल कर रहे हैं। जांच के दायरे में कुलियों और टेरिटोरियल आर्मी के जवानों को भी शामिल किया गया है। ”

एजाज़ अहमद की दुकान ब्रिगेड मुख्यालय के पास ही है। अहमद कहते हैं कि बिना किसी की “मदद” के ऐसा हमला संभव नहीं। अहमद कहते हैं, “ब्रिगेड मुख्यालय के इतने करीब रहने के बावजूद हमें इसके बारे में कुछ नहीं पता तो एओसी के पार से आने वाले ऐसा हमला कैसे कर सकते हैं? उन्हें इस जगह के बारे में पूरी सूचना रही होगी।” हमले के बाद स्थानीय कुली घर वापस नहीं गए। आम तौर पर वो शाम को घर लौट जाते हैं। उरी ब्रिगेड में करीब 500 कुली काम करते हैं। ज्यादातर कुली एओसी के करीबी गांवों के रहने वाले हैं।

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