इस साल अक्टूबर-नवंबर के बीच होने वाले बिहार चुनाव से पहले एक बार फिर से अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के क्रीमी लेयर की वार्षिक आय सीमा का मुद्दा उठ सकता है। बिहार चुनाव के समय इस मुद्दे के बड़े मायने हैं। बिहार में ओबीसी की आबादी लगभग 40 फीसदी है।
खबर है कि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) ओबीसी के बीच ‘क्रीमी लेयर’ निर्धारित करने के लिए वार्षिक आय सीमा की मांग उठा सकता है। दिप्रिंट ने सूत्रों के हवाले से खबर दी है कि पैनल, ओबीसी की क्रीमी लेयर के लिए आय सीमा निर्धारित करने के लिए के वेतन को शामिल करने के सरकार के विवादास्पद प्रस्ताव से सहमत होगा। इस साल मार्च में इसका विरोध किया गया था।
खबर में आयोग के एक वरिष्ठ पदाधिकारी के हवाले से बताया गया कि ‘लॉकडाउन शुरू होने के बाद से हमारी कोई आंतरिक बैठक या चर्चा नहीं हुई है। इसलिए अब तक, आयोग का रुख पहले जैसा ही है। चूंकि सरकार ने कैबिनेट नोट फिर से आयोग को भेजा है इसलिए हम वेतन के इसमें शामिल होने के लिए सहमत हो सकते हैं।
आयोग का कहना है कि वर्तमान आया सीमा को 8 लाख से बढ़ाकर 16 लाख कर दिया जाए। इससे पहले आयोग ने सरकार के 12 लाख रुपये करने के प्रस्ताव का विरोध किया था। मालूम हो कि अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों को शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण पाने के योग्य हैं, बशर्ते वे क्रीमी लेयर की श्रेणी में ना आते हों।
अधिकारी ने क्रीमी लेयर की आय सीमा 8 लाख रुपये से बढ़ाकर 16 लाख रुपये करने के लिए आयोग की तरफ से दबाव डालने की बात स्वीकार की। पदाधिकारी का कहना था कि अगर 1993 के बाद से आय सीमा की सही समीक्षा की जाती तो, यह आज लगभग 20 लाख रुपये होता।
यही वजह है कि हम प्रस्ताव देंगे कि इसे बढ़ाकर कम से कम 16 लाख रुपये किया जाए। 1993 में जब पहली बार लागू किया गया था, तो ओबीसी के बीच क्रीमी लेयर का निर्धारण करने की आय सीमा 1 लाख रुपये थी।
मालूम हो कि आयोग ने मार्च में सरकार से कहा था कि उसे ओबीसी आरक्षण में इस तरह से फेरबदल नहीं करना चाहिए कि वह भारत में आरक्षण के नियमों को मानने वाले मूल सिद्धांत को ठुकरा दे। खबर के अनुसार आयोग 10 जुलाई को एक पूर्ण-आयोग की बैठक में अपने रुख की समीक्षा करने के लिए तैयार है।
मौजूदा नियमों के तहत, 8 लाख रुपये या उससे अधिक की वार्षिक आय वाले घर को ओबीसी के बीच ‘क्रीमी लेयर’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इसलिए यह सरकारी नौकरियों और सरकार द्वारा वित्तपोषित शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण के लिए योग्य नहीं है।