योजना आयोग के नए स्वरूप का नाम बदलकर ‘नीति आयोग’ कर दिया गया है। गौरतलब है कि इस संस्था की स्थापना 1950 के दशक में हुई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के योजना आयोग की जगह नई संस्था की स्थापना की घोषणा के कुछ महीनों बाद यह पहल हुई है। मोदी की मुख्यमंत्रियों के साथ हुई बैठक के करीब तीन हफ्ते के बाद यह फैसला आया। इसमें ज्यादातर समाजवादी दौर की इस संस्था के पुनर्गठन के पक्ष में थे, लेकिन कुछ कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों ने मौजूदा ढांचे को खत्म करने का विरोध किया था।

मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में घोषणा की थी कि योजना आयोग की जगह पर एक नई संस्था बनाई जाएगी। जो समकालीन आर्थिक दुनिया के अनुरूप हो। मुख्यमंत्रियों को सात दिसंबर को संबोधित करते हुए उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का हवाला दिया था। जिन्होंने पिछले साल 30 अप्रैल को कहा था कि सुधार प्रक्रिया शुरू होने के बाद के दौर में मौजूदा ढांचे का कोई अत्याधुनिक नजरिया नहीं है। उन्होंने ऐसे प्रभावी ढांचे की बात की थी जिससे ‘सहयोगी संघ’ और ‘टीम इंडिया’ की अवधारणा मजबूत होती हो।

योजना आयोग के स्थान पर नीति आयोग यानी ‘नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ट्रांसफार्मिंग इंडिया’ बनेगा। जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री होंगे। नीति आयोग में एक संचालन परिषद होगी जिसमें सभी मुख्यमंत्री और उप-राज्यपाल शामिल होंगे। योजना आयोग का पुनर्गठन करके इसे नीति आयोग का नया नाम दिए जाने को सतही और दिखावटी बताते हुए विपक्ष ने गुरुवार को इसकी आलोचना की और आशंका जताई कि इससे राज्यों के साथ भेद-भाव होगा व नीति बनाने में कारपोरेट की चलेगी। माकपा नेता सीताराम येचुरी ने योजना आयोग का नाम बदले जाने को दुर्नीति बताया। उन्होंने कहा कि अगर सरकार 2015 के पहले दिन जनता का सतही और दिखावटी बातों से अभिनंदन करना चाहती है तो कुछ नहीं कहा जा सकता है।

उन्होंने कहा कि सरकार के इस कदम से पता चलता है कि प्रधानमंत्री कार्यालय और वित्त मंत्रालय की राजकोषीय और मौद्रिक उद्देश्यों के लिए दृष्टि बहुत छोटी है। येचुरी ने कहा कि ऐसी आशंका है कि नीति आयोग राज्यों और केंद्र के बीच विवाद की स्थिति में अंतिम फैसला करेगा और इससे राज्यों के साथ भेदभाव होगा। कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी ने भी कहा कि अंतत: नीति आयोग की ही चलेगी और इससे राज्यों के साथ भेदभाव हो सकता है।

तिवारी ने कहा कि आखिर योजना आयोग क्या कर रहा था? वह योजनाएं बनाता था। ऐसे में योजना आयोग का नाम बदल कर नीति आयोग करके यह सरकार क्या संदेश देने का प्रयास कर रही है। योजना आयोग के पुनर्गठन का विरोध कांग्रेस ने सैद्धांतिक आधार पर किया था। कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि यह लड़ाई लड़ने का सवाल नहीं था, बल्कि यह सिद्धांतों की बात थी। विपक्ष में रहते भाजपा संघवाद की बढ़-चढ़ कर बात करती थी और अब सत्ता में आने पर वह इसके एकदम उलट कर रही है।

1950 में बने योजना आयोग को अब नीति आयोग के तौर पर जाना जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में यह संकेत दिया था। इस बारे में प्रधानमंत्री ने तीन महीने पहले राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाकर उनसे चर्चा की थी। जिसमें कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने इसके पुनर्गठन का विरोध किया था।

भाकपा के वरिष्ठ नेता गुरुदास दासगुप्ता ने कहा कि योजना आयोग को समाप्त करके नीति आयोग नामक नई इकाई गठित करने से अनियमित अर्थव्यवस्था का मार्ग प्रशस्त होगा। दासगुप्ता के मुताबिक यह नाम बदलने का मामला नहीं है। उन्होंने (सरकार ने) योजना आयोग को समाप्त कर दिया क्योंकि वे योजना में यकीन ही नहीं रखते हैं।

तृणमूल कांग्रेस के नेता सौगत राय ने कहा कि अचानक योजना आयोग को खत्म किए जाने से अर्थव्यवस्था आयोजित हो जाएगी और इससे कारपोरेट की चलेगी। उन्होंने कहा- मैं योजना आयोग को खत्म किए जाने के खिलाफ हूं, जो इतने सालों से काम कर रहा था। हम योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था में विश्वास रखते हैं। सरकार के इस कदम से देश की अर्थव्यवस्था अनियोजित हो जाएगी।