केंद्रीय मंत्रिमंडल ने विवादास्पद भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को फिर से लागू किए जाने की शनिवार को सिफारिश की है। इसके साथ ही भूमि अध्यादेश तीसरी बार प्रख्यापित किए जाने का रास्ता साफ हो गया है। हालांकि एक दिन पहले ही इस बारे में संसद की संयुक्त समिति की पहली बैठक में विपक्षी दलों के सदस्यों ने 2013 के भूमि कानून के प्रावधान में बदलाव की पहल किए जाने के औचित्य पर सवाल उठाए थे।
भूमि अध्यादेश पहली बार पिछले साल दिसंबर में लागू किया गया था ताकि 2013 के भूमि कानून में संशोधन किया जा सके। इस अध्यादेश के बदले संबंधित विधेयक लोकसभा में पारित होने के बावजूद सरकार संख्याबल की कमी के कारण उसे राज्यसभा में नहीं ला सकी। यह अध्यादेश इस साल मार्च में दोबारा लागू किया गया था और चार जून को इसकी समय-सीमा खत्म हो जाएगी।
केंद्रीय मंत्रिमंडल की इस सिफारिश को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पास मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। सरकार भूमि विधेयक के संबंध में दो बार अध्यादेश ला चुकी है और उसे इससे संबंधित विधेयक पर राज्यसभा में खासतौर से लगातार विरोध का सामना करना पड़ा है जहां वह अल्पमत में है। सरकार हालांकि हाल ही में संपन्न संसद के बजट सत्र के दौरान संबंधित विधेयक को संसदीय समिति को भेजने पर राजी हुई।
इस विषय पर संसद की संयुक्त समिति की पहली बैठक में शनिवार को कई विपक्षी दलों के सदस्यों ने 2013 के भूमि कानून के प्रावधान में बदलाव के सरकार की पहल के औचित्य पर सवाल उठाए थे। विधेयक के पक्ष में सरकार की दलील पर असंतोष जताते हुए सदस्यों ने इस मुद्दे पर समग्र अंतरमंत्रालयी जवाब मांगा था। बैठक में ग्रामीण विकास मंत्रालय और विधि मंत्रालय के विधायी विभाग ने सदस्यों के समक्ष 2013 के भूमि कानून में संशोधन के बारे में अपनी प्रस्तुति दी। दोनों मंत्रालय के अधिकारियों ने संशोधन का ब्योरा दिया और कांग्रेस, बीजद, तृणमूल और वाम दलों समेत विपक्षी दलों के सदस्यों ने भूमि अधिग्रहण के बारे में सहमति के उपबंध को खत्म करने के औचित्य पर सवाल उठाए।
बैठक के बाद केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने पत्रकारों को बताया कि कैबिनेट ने निरंतरता बनाए रखने के लिए भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को फिर से लागू किए जाने को मंजूरी दे दी है। संबंधित विधेयक संसद की संयुक्त समिति के पास विचाराधीन है और पुराने अध्यादेश की मियाद तीन जून को खत्म हो जाएगी। सरकार ने अध्यादेश के बारे में बयान भी जारी किया।
प्रसाद ने कहा कि अध्यादेश को फिर से प्रख्यापित किया जाना जरूरी था क्योंकि 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून में 13 केंद्रीय अधिनियम शामिल किए गए हैं जिससे कि कुछ खास तरह की परियोजनाआें के लिए जिन किसानों की भूमि अधिग्रहित की जाती है, उन्हें उनकी भूमि का मुआवजा देना तय किया जा सके। उन्होंने कहा कि किसानों को मुआवजा मिलने में कोई समस्या नहीं हो इसके लिए हमने अध्यादेश को पुन: प्रख्यापित करने को मंजूरी दी है। यह किसानों के प्रति हमारी प्रतिबद्धता दिखाता है।