नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 70 साल पहले मौत होेने या उनके लापता होने से जुड़ी सारी फाइलों को सार्वजनिक किए जाने की संभावना पर गौर करने के लिए सरकार ने कैबिनेट सचिव अजीत सेठ की अध्यक्षता वाली अंतरमंत्रालयी समिति गठित की है। समिति की बैठक गुरुवार को होने की संभावना है। इसमें गृह एवं विदेश विभाग, रॉ और खुफिया विभाग के प्रतिनिधि शामिल होंगे।
अब तक गोपनीय रखी गई करीब 90 फाइलों को सार्वजनिक किए जाने की बढ़ती मांग के बीच राजग सरकार ने यह कदम उठाया है। दिलचस्प यह है कि नेताजी के पोते सूर्य कुमार बोस ने बर्लिन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी और 18 अगस्त 1945 को ताईवान में नेताजी की मौत होने या उनके लापता होने से जुड़े घटनाक्रमों की सभी फाइलें सार्वजनिक किए जाने का उनसे अनुरोध किया।
नेताजी से जुड़ी फाइलों का मुद्दा पिछले हफ्ते सामने आया, जब 20 साल तक उनके परिवार को खुफिया विभाग द्वारा निगरानी में रखे जाने की खबरों से विवाद पैदा हुआ। इसमें ज्यादातर अवधि प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल की है। बोस से जुड़ी करीब 90 गोपनीय फाइलें हैं, जिनमें करीब 27 विदेश मंत्रालय के पास जबकि शेष प्रधानमंत्री कार्यालय के पास हैं। हालांकि, स्वतंत्रता सेनानियों से जुड़ी कोई भी फाइल गृह मंत्रालय के पास नहीं है क्योंकि सभी को सार्वजनिक किया जा चुका है और उन्हें राष्ट्रीय अभिलेखागार को सौंप दिया गया है।
सूत्रों ने बताया कि समिति इस बात की छानबीन करेगी कि इन फाइलों को सार्वजनिक किए जाने से विदेशी मुल्कों के साथ भारत के संबंध किसी भी तरह से प्रभावित होंगे या नहीं। साथ ही, यह सरकारी गोपनीयता अधिनियम के कुछ प्रावधानों की समीक्षा भी करेगी। बर्लिन में मोदी से मुलाकात के बाद नेताजी के पोते ने दावा किया कि उन्हें भरोसा दिलाया गया है कि स्वतंत्रता सेनानी से जुड़ी सभी गोपनीय फाइलें सार्वजनिक किए जाने की उनकी मांग पर गौर किया जाएगा।
कोलकाता में बोस के परिवार के सदस्यों ने सड़कों पर उतर कर स्वतंत्रता सेनानी के बारे में सभी फाइलें सार्वजनिक किए जाने की मांग की थी। राजनीतिक विवाद शुरू करने वाले पुरातात्विक दस्तावेजों के मुताबिक नेताजी के करीबी परिजनों की 1948 से लेकर 1968 तक जासूसी की गई। इस 20 साल की अवधि में 16 साल नेहरू प्रधानमंत्री थे। करीबी परिजनों में नेताजी के भाई शरत चंद्र बोस के बेटे शिशिर बोस और अमिय नाथ बोस शामिल थे। ये फाइलें राष्ट्रीय अभिलेखागार में निगरानी में रखी गई हैं।
आइबी अधिकारियों ने बोस के परिवार द्वारा लिखे गए पत्रों को बीच में ही हासिल कर लिया और उसकी प्रतियां करा लीं। यहां तक कि विदेश यात्राओं पर उनका पीछा तक किया।
देश को स्वतंत्रता मिलने से पहले नेहरू और महात्मा गांधी के साथ मतभेदों को लेकर नेताजी ने कांग्रेस छोड़ दी थी और अंग्रेजों के खिलाफ सैन्य प्रतिरोध शुरू किया था। उन्होंने इसके लिए आजाद हिंद फौज का गठन किया था।
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