“देश में पिछले तीन सालों से कितने किसानों ने खुदकुशी है, इसकी जानकारी केंद्र सरकार के पास नहीं है।” संसद भवन में यह बात मंगलवार (18 दिसंबर) को केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने कही। उनके मुताबिक, नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) ने साल 2016 से किसानों की खुदकुशी से जुड़े आंकड़े जारी नहीं किए। कृषि मंत्री की यह टिप्पणी तब आई, जब तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के नेता दिनेश त्रिवेदी ने उनसे 2016 से अब तक किसानों की खुदकुशी की संख्या के बारे में पूछा था। उन्होंने यह भी सवाल किया था कि क्या सरकार ने उन किसानों के पीड़ित परिवारों को मुआवजा या फिर मदद करने की कोई योजना बनाई है?
मंत्री ने लिखित जवाब में कहा, “गृह मंत्री के अंतर्गत आने वाला एनसीआरबी खुदकुशी से संबंधित आंकड़े सहेजता है और जारी करता है। इस संबंध में 2015 तक की जानकारी उसकी वेबसाइट पर उपलब्ध है, जबकि 2016 के बाद से कुछ भी वहां अपलोड नहीं किया गया।”
कृषि मंत्रालय से जुड़े सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट्स में बताया गया कि किसानों की खुदकुशी से जुड़ा आंकड़ा राज्य सरकारें एनसीआरबी को भेजती हैं, जो कि उसे एक जगह जुटाकर जारी करता है। ऐसे आंकड़े सिर्फ 2015 तक ही जारी हुई हैं। ये आंकड़े ‘एक्सिडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड्स इन इंडिया’ (भारत में दुर्घटनात्मक मौतें व खुदकुशी) नाम की रिपोर्ट में हर साल जारी किए जाते हैं।

साल 2015 के आंकड़ों के अनुसार, तकरीबन आठ हजार किसानों ने खुदकुशी कर ली थी। महाराष्ट्र ऐसा राज्य था, जहां सबसे अधिक किसानों (3030) ने जान ली थी। दूसरे नंबर पर तेलंगाना था। वहां कुल 1358 किसानों ने आत्महत्या की थी, जबकि तीसरे नंबर पर 1197 किसानों की खुदकुशियों के साथ कर्नाटक का नाम था। वहीं, कृषि क्षेत्र से जुड़े 4500 श्रमिकों की आत्महत्या करने की बात भी आंकड़ों में सामने आई। किसानों ने उस दौरान कर्ज के बोझ और तंगी के चलते जान ली थीं।