बिहार में इस वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राज्य के लोगों से जातिवाद से ऊपर उठकर ‘गुणवान का आदर करने’ का आह्वान करते हुए आगाह किया कि ऐसा नहीं होने से इस प्रदेश का सार्वजनिक जीवन गल जाएगा।

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की कुछ कृतियों के स्वर्ण जयंती वर्ष पर आयोजित एक समारोह को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि वह बिहार को प्रगति और समृद्धि की सोच के साथ आगे ले जाने को प्रतिबद्ध हैं और इस राज्य की प्रगति के बिना भारत का विकास अधूरा है।

प्रधानमंत्री ने दिनकर के शब्दों का ही प्रयोग करते हुए अपनी बात रखी। दिनकर द्वारा 1961 में लिखे एक पत्र का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, ‘‘उस समय भी दिनकरजी की सोच कितनी सटीक थी। वो स्वयं राज्यसभा में थे राजनीतिक को निकटता से देखते थे, अनुभव करते थे, लेकिन उस माहौल से अपने आप को परे रखते हुए, उन्होंने मार्च 1961 को चिट्ठी लिखी थी। उस चिट्ठी में लिखा गया है कि बिहार को सुधारने का सबसे अच्छा रास्ता ये है, कि लोग जातिओं को भूलकर गुणवान के आदर में एक हों।’’

उन्होंने कहा कि दिनकरजी ने लिखा, ‘‘याद रखिए कि एक या दो जातियों के समर्थन से राज्य नहीं चलता। वो बहुतों के समर्थन से चलता है, यदि जातिवाद से हम ऊपर पर नहीं उठें, तो बिहार का सार्वजनिक जीवन गल जाएगा।’’

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘मार्च 1961 में लिखी ये चिट्ठी बिहार के लिए आज भी उतना ही जागृत संदेश है।’’ प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘बिहार को आगे ले जाना है, बिहार को आगे बढ़ाना है और ये बात मान कर चलिए हिंदुस्तान का पूर्वी हिस्सा अगर आगे नहीं बढ़ेगा, तो ये भारत माता कभी आगे नहीं बढ़ सकती।’’

उल्लेखनीय है कि स्वतंत्रतापूर्व एक व्रिदोही कवि और स्वतंत्रता के बाद राष्ट्रकवि के रूप में विख्यात रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय में हुआ था और उनका निधन 24 अप्रैल 1974 को हुआ।

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत के पश्चिमी छोर पर लक्ष्मी की वर्षा होती है जबकि पूरब में सरस्वती का प्रभाव है। पर दोनों का मेल नहीं हो पाता है। और इसलिए हमारा सपना है कि पूर्वी हिन्दुस्तान कम से कम पश्चिम की बराबरी में तो आ जाएं।

उन्होंने कहा कि अगर बिहार आगे बढ़ता है, बंगाल आगे बढ़ेगा, असम आगे बढ़ेगा, पूर्वी उत्तर प्रदेश आगे बढ़ेगा, नॉर्थ-ईस्ट आगे बढ़ेगा, सारी दुनिया देखती रह जाएगी, हिन्दुस्तान किस तरह आगे बढ़ रहा है।

मोदी ने कहा कि राष्ट्रकवि का यह मत था कि बिहार को जातपात को भूलकर गुणवान के लिए एक होना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘ये किसी राजनीति से परिचित के शब्द नहीं हैं, ये किसी शब्द-साधक के शब्द नहीं हैं, ये किसी साहित्य में रुचि रखने वाले सृजक के शब्द नहीं हैं, एक रिषी तुल्य के शब्द हैं जिसको आने वाला कल दिखाई देता था और जिसके दिल में बिहार के आने वाले कल की चिंता सवार थी।’’

प्रधानमंत्री ने कहा कि बिहार को तेज और ओज किसी से किराए पर लेने की जरूरत नहीं। यह उसके पास है। उसे संपन्नता के अवसर चाहिए, उसको आगे बढ़ने का अवसर चाहिए और बिहार में वो ताकत है कि अगर एक बार अवसर मिल गया, तो बिहार औरों को पीछे छोड़कर आगे निकल जाएगा।

मोदी ने कहा कि जय प्रकाश नारायण ने इस देश को आंदोलित किया है । उनकी उम्र और युवा पीढ़ी के बीच बहुत फासला था, लेकिन जयप्रकाश जी की उम्र और युवा पीढ़ी की शक्ति को आंदोलन में जोड़ने में सेतु का काम दिनकर जी की कविताएं करती थीं।

उन्होंने कहा कि हर किसी को मालूम है भ्रष्टाचार के खिलाफ जब लड़ाई चली, तो दिनकर जी की कविताएं ही थी, जो नौजवानों को जगाती थीं, पूरे देश को उसने जगा दिया था और उस अर्थ में वे समाज को हर बार चुप बैठने नहीं देते थे।

प्रधानमंत्री ने कहा कि और जब तक समाज सोया है वो चैन से सो नहीं सकते थे। वे समाज को जगाये रखना चाहते थे। समारोह में प्रधानमंत्री की उपस्थिति में सरकार से दिनकर को भारत रत्न देने की मांग की गई।

छायावादेत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि दिनकर की कविताओं में व्रिदोह, क्रांति के साथ ही श्रृंगार की अभिव्यक्ति कुरूक्षेत्र और उर्वशी में मिलती है। रश्मिरथी उनकी रचनाओं में बेमिसाल है।

दिनकरजी की ये पंक्तियां ‘‘सिंहासन खाली करो, कि जनता आती है’’ आज भी युवाओं को उद्वेलित करती है। रामधारी सिंह दिनकर की दो महत्वपूर्ण कृतियों ‘संस्कृति के चार अध्याय’ और ‘परशुराम की प्रतीक्षा’ के स्वर्ण जयंती वर्ष के अवसर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिनकर के परिवार के सदस्यों को शॉल भेंटकर उनका सम्मान किया।

प्रधानमंत्री ने कहा कि दिनकरजी का पूरा साहित्य खेत और खलिहान से निकला है। गांव और गरीब से निकला है। मोदी ने कहा कि लेकिन बहुत कम ऐसी रचनाएं होती हैं, जो अबाल-वृद्ध सबको स्पर्श करती हो। जो कल, आज और आने वाली कल को भी स्पर्श करती है। वो न सिर्फ उसको पढ़ने वाले को स्पर्श करती है, लेकिन उसकी गूंज आने वाली पीढ़ियों के लिए भी स्पर्श करने का सामर्थ्य रखती है। दिनकर जी कि ये सौगात, हमें वो ताकत देती है।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं सरस्वती का पुजारी हूं। इसलिए शब्द के सामर्थ्य को अनुभव करता हूं, कोई शब्द किस प्रकार से जीवन को बदल देता है, उस ताकत को भली-भांति अनुभव कर सकता हूं। एक पुजारी के नाते मुझे मालूम है कि उस अर्थ में दिनकर जी ने हमें अनमोल-अनमोल सौगात दी हैं, इस सौगात को आने वाले समय में, हमारी नई पीढ़ी को हम कैसे पहुंचाएं?

प्रधानमंत्री ने कहा कि किसी रचना के 50 वर्ष इसलिए नहीं मनाये जाते कि रचना को 50 साल हो गये हैं, लेकिन 50 साल के बाद भी उस रचना ने हमें जिंदा रखा है। 50 साल के बाद उस रचना ने हमें प्रेरणा दी है और 50 साल के बाद भी हम आने वाले युग को उसी नजरिये से देखने के लिए मजबूर होते हैं, तब जा करके उसका सम्मान होता है।