-हरिकिशन शर्मा
मोदी सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट ‘नमामि गंगे’ पर सरकारी खर्च में 15 गुना वृद्धि हुई है। इस योजना के तहत गंगा सफाई में खर्च होने वाला फ़ंड चालू वित्त वर्ष के अंत तक सभी उच्च स्तर पर पहुंच सकता है। स्वच्छ गंगा के लिए राष्ट्रीय मिशन (एनएमसीजी) के महानिदेशक राजीव रंजन मिश्रा ने कहा “वर्तमान देनदारियों और स्वीकृत परियोजनाओं के आधार पर हमें नमामि गंगे के तहत वास्तविक व्यय 3,000 करोड़ रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है। यह गंगा को साफ करने के लिए एक साल में खर्च की जाने वाली उच्चतम राशि होगी।”
मिश्रा ने कहा कि यह राशि गंगा और उसकी सहायक नदियों की योजनाओं और परियोजनाओं पर खर्च की जाएगी, जिसमें नए एसटीपी के कमीशन के अलावा मौजूदा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) का पुनर्वास और उन्नयन शामिल है। नमामि गंगे योजना 2014-15 में मोदी सरकार द्वारा लॉंच की गई थी। पहले वर्ष में वास्तविक व्यय 170.99 करोड़ रुपये से बढ़कर 2018-19 में 2,626.54 करोड़ रुपये हो गया। इस योजना के तहत अबतक 298 प्रोजेक्ट सैंक्शन हुए हैं जिसमें 40 एसटीपी से संबंधित हैं। केंद्र सरकार ने 2015-2020 के बीच में गंगा की सफाई पर खर्च करने के लिए 20,000 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं।
इस बीच, केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने सोमवार को कहा कि 2021 तक गंगोत्री और हरिद्वार के बीच गंगा स्वच्छ हो जाएगी। उन्होंने कहा कि 2021 में हरिद्वार में आयोजित होने वाले कुंभ से पहले सभी घरेलू सीवेज और साथ ही औद्योगिक अपशिष्टों पर पूरी तरह से रोक लगा दी जाएगी। शेखावत ने ‘गंगा आमरण अभियान’ शुरू करने के बाद एक महीने तक नदी में राफ्टिंग और कयाकिंग अभियान चलाया,“ एक धारणा है कि गंगा देश की सबसे प्रदूषित नदी है। यह सच नहीं है। हमें उम्मीद है कि इस अभियान से इस धारणा को गलत साबित करने में मदद मिलेगी।’
मंत्री ने कहा कि सरकार गंगा की पूरी सफाई के लिए प्रतिबद्ध है। हालांकि, उन्होंने संकेत दिया कि इसमें तोड़ा समय लग सकता है। जर्मनी में राइन नदी को साफ करने में 30 साल लगे थे।

