जम्मू कश्मीर के नगरोटा में हुए आतंकी हमले से एक दिन पहले ही यानी 28 नवंबर को सरकार द्वारा देश की सुरक्षा में लगे जवानों के लिए कुछ गाइडलाइंस भेजी गई थीं। उन्हें थल, जल और वायू तीनों सेना को भेजा गया था। वे गाइडलाइन लेफ्टिनेंट फिलिप कंमोज कमेटी द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के आधार पर थीं जिसमें बताया गया था कि मिलिट्री कैंप और सेना के बाकी प्रतिष्ठानों की रक्षा और सुरक्षा कैसे करनी है और उसे ज्यादा बेहतर बनाने के लिए क्या किया जाना चाहिए। लेफ्टिनेंट फिलिप कंमोज की कमेटी इस साल जनवरी में पठानकोट एयरबेस पर हुए हमले के बाद बनाई गई थी। रिपोर्ट मई में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर को जमा कर दी गई थी। जिसमें तीन पेजों की सेट में गाइडलाइन तैयार की गई थीं। मनोहर पर्रिकर ने आदेश दिए थे कि एक महीने के अंदर वे गाइडलाइन आर्मी, एयरफोर्स और नेवी को इशू कर देनी हैं। लेकिन फिर भी गाइडलाइन भेजे जाने में छह महीने की देरी हो गई। इंडियन एक्सप्रेस को जानकारी मिली है कि वह वक्त सेना के लोगों से बातचीत और ड्राफ्ट को तैयार करने में लग रहा था। लेकिन 18 सितंबर को उरी में सेना के कैंप पर हुए हमले के बाद रिपोर्ट फिर चर्चा में आ गई।

रिपोर्ट में विस्तारपूर्वक सेना की सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर बात की गई है। इंडियन एक्सप्रेस को मिली जानकारी के मुताबिक, छह खंड की उस रिपोर्ट के पहले हिस्से में पठानकोट एयरबेस पर हुए हमले का जिक्र था। बताया गया था कि कहां-कहां कमियां थीं। दूसरे अध्याय में मिलिट्री की उन सब तकनीकों का जिक्र था जो कि मौजूदा दौर में उसके पास हैं। इसके अलावा साफ किया गया था कि मिलिट्री युनिट की सुरक्षा की जिम्मेदारी उसके कमांडिंग ऑफिसर और उसके बाकी साथियों की होगी। तीसरा खंड सेना के प्रतिष्ठानों में मॉर्डन टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल के ऊपर था। साथ ही उसके ऊपर खर्च होने के लिए ज्यादा फंड चाहिए उसका भी जिक्र था।

हालांकि, सेना के कुछ लोगों ने इस बात को दोहराया कि किसी भी खुफिया एजेंसी से उन्हें हमले के बारे में पहले से चेतावनी नहीं दी गई थी। यह भी कहा गया कि इस तरह के हमले के लिए सिर्फ सेना को जिम्मेदार बताना गलत है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर की सुरक्षा का जिम्मा सुरक्षा एजेंसियों का होता है।