NCB के पूर्व डायरेक्टर समीर वानखेड़े की मुश्किलें खत्म होने का नाम नहीं ले रहीं। वानखेड़े ने कलेक्टर के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी, जिसे कोर्ट ने रद्द कर दिया है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने वानखेड़े की याचिका पर तत्काल सुनवाई से इनकार कर कर प्रक्रिया पूरी करने को कहा।

हाईकोर्ट के जस्टिस गौतम पटेल की बेंच ने कहा कि याचिका मेंशन किए बिना ही लिस्ट कैसे हो गई। प्रभावशाली व्यक्ति ऐसा कैसे कर सकता है। कोर्ट का कहना था कि तुरंत नहीं सुना तो क्या आसमान टूट जाएगा। कोर्ट का कहना था कि महज इस वजह से केस की सुनवाई तत्काल नहीं की जा सकती कि याचिकाकर्ता प्रभावशाली शख्स है और मामले को मीडिया ने काफी तवज्जो दी। कोर्ट ऐसा करने को बाध्य नहीं है। वानखेड़े ने बार लाइसेंस को रद्द करने के आदेश को चुनौती दी थी।

हालांकि, हाईकोर्ट की दूसरी बेंच से उन्हें राहत मिली है। बॉम्बे हाईकोर्ट की ही जस्टिस एसएस शिंदे और एनआर बोर्कर की बेंच ने मंगलवार को वानखेड़े पर धोखाधड़ी में दर्ज एफआईआर मामले में सुनवाई करते हुए 28 फरवरी तक उनके खिलाफ पुलिस कार्रवाई रोक लगा दी है। अदालत ने वानखेड़े को 23 फरवरी को थाणे पुलिस के सामने पेश होकर जांच में सहयोग करने को कहा है।

ध्यान रहे कि इससे पहले बार लाइसेंस बनवाने के आरोप में दर्ज FIR को कैंसिल कराने के लिए एनसीबी के पूर्व डायरेक्टर समीन वानखेड़े ने अनोखी दलील दी है कि मां ने जिन कागजात पर दस्तखत करने के लिए कहा उन्होंने कर दिए। जस्टिस एसएस शिंदे की कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया कि उस दौरान वो कॉलेज में पढ़ते थे। उनकी उम्र महज 17 साल की थी। वानखेड़े की मां की 2015 में मृत्यु हो चुकी है।

वानखेड़े ने जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत अपने ऊपर दर्ज केस की सुनवाई जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के समक्ष करने की मांग की है। उनकी दलील है कि आरोप के मुताबिक वो 17 साल के थे। वानखेड़े के खिलाफ उम्र छिपाकर बार लाइसेंस बनवाने के आरोप में FIR दर्ज की गई है। आरोप है कि वानखेड़े ने 1997 में एक रेस्त्रा और बार का लाइसेंस हासिल किया था। लाइसेंस लेने के लिए न्यूनतम आयु 21 वर्ष होती है।