‘टूल किट’ मामले में एक्टिविस्ट दिशा रवि को पटियाला हाउस कोर्ट ने जमानत दे दी है। पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने इसपर कहा कि इस केस में देशद्रोह का मुकदमा गलत था। रोहतगी ने कहा कि असहमति को दबाने की इस ट्रिक को संविधान में अधिकार नहीं है।

पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने दिशा रवि केस जमानत के जजमेंट पर कहा, ”यह डिस्ट्रिक्ट जज का साहसी कदम है। उच्च न्यायलय को इससे सीखना चाहिए। पूरे सम्मान के साथ कहना चाहता हूं कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट इस मामले में पिछड़ रही है। इस प्रकार के केस में ऊंची अदालतों ने जमानत को नकारा है। पिछले कुछ सालों में हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट द्वारा मुवक्किल को जमानत देने में अनिच्छुक दिखी है। निचली अदालतों ने दूसरे कोर्ट के लिए उदाहरण तय किया है।

रोहतगी ने कहा “दिशा रवि के केस में देशद्रोह का मुकदमा पूरी तरह से गलत था। मैंने उनके केस के सभी पेपर पढ़े हैं। सेडिशन का इस्तेमाल अंग्रेज करते थे स्थानीय लोगों की आवाज़ दबाने के लिए। सेडिशन का मतलब होता है हिंसा और हथियार की मदद से सरकार को उखाड़ फेंकना। लेकिन दिशा के केस में ऐसा कुछ नहीं था। ऐसा कोई सबूत नहीं था जिससे यह साबित किया जा सके कि उसने हिंसा को भड़काया है। असहमति को दबाने और बोलने की स्वतंत्रता को खत्म करने के लिए इस ट्रिक का इस्तेमाल किया गया है। इसका संविधान में अधिकार नहीं है।

पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी से पूछा गया कि इन दिनों कंटेप्ट ऑफ कोर्ट के कई मामले सामने आ रहे हैं। ऐसे में आप आलोचना और न्यायालय की अवमानना ​​के बीच अंतर कैसे करते हैं? इसपर रोहतगी ने कहा “सरल भाषा में कहूं तो कंटेप्ट वो है जहां आप एक ऐसा वातावरण बनाते हैं कि न्यायालय के लिए न्यूट्रल और स्वतंत्र रूप से कार्य करना असंभव हो। यदि आप अपने कार्य से, लिखित रूप से या किसी और तरीके से ऐसा माहौल बनाते हैं या ऐसी स्थिति पैदा करते हैं जहां लोग संस्थान में विश्वास खो देते हैं, तो वह अवमानना ​​होगी।”

मुकुल रोहतगी ने कहा “लेकिन अदालती प्रक्रियाओं की आलोचना, अदालत की देरी की आलोचना, इस तथ्य की आलोचना कि गरीब और निम्न मध्यम वर्ग को त्वरित न्याय नहीं मिलता है, लेकिन बड़े उद्योगपति और संस्थाओं को आसानी से इंसाफ मिल जाता हैं क्योंकि वहां बहुत कुछ दांव पर लगा होता है। इस तरह की आलोचना मान्य है।”