मोहम्मद अली जिन्ना इतिहास में दर्ज एक ऐसा नाम है जिसे आजाद हिंदुस्तान का हर बाशिंदा नफरत के साथ याद करता है और देश विभाजन की बहुत ही कडवी यादें जेहन में आ जाती हैं। लेकिन हाल की एक किताब में दावा किया गया है कि अगर जिन्ना मुसलमानों के लिए एक अलग राष्ट्र की मांग पर अड़े नहीं रहते तो साल 2050 तक अविभाजित हिंदुस्तान में मुसलमानों की आबादी 75 करोड़ हो जाती और यह विश्व में सबसे बड़ा मुस्लिम देश होता। इस लिहाज से जिन्ना एक महान हिंदुस्तानी थे जिन्होंने हिन्दुस्तान को हिन्दुस्तान ही रहने दिया, उसे मुस्लिम देश होने से बचा लिया। ये दावे चौंका सकते हैं और साथ ही संशय भी पैदा करते हैं लेकिन हिंदुस्तान के इतिहास पर लिखी गयी एक किताब में ऐसा ही कुछ सोचने को मजबूर करने वाले दावे किए गए हैं।
‘‘रिटर्न आफ दी इन्फिडेल’’ में हिंदुस्तान के इतिहास को आइने के दूसरी ओर से देखने की कोशिश की गयी है और यही कोशिश इतिहास की एक नयी तस्वीर पेश करती है जो उस तस्वीर से एकदम अलहदा है जिसे हम आज तक देखने के आदी रहे हैं। अंग्रेजी समाचार पत्र ‘द हिंदू’ के कंसल्टिंग एडिटर और वरिष्ठ पत्रकार वीरेन्द्र पंडित द्वारा लिखी गयी किताब कहती है, ‘‘गांधी नहीं, जिन्ना आधुनिक भारत के राष्ट्रपिता थे। यह जिन्ना ही थे जो प्रसिद्ध लोकथा ‘‘बांसुरीवाला’’ की तरह अपना ‘पाइड पाइपर’ बजाते हुए हिंदुस्तान से एकेश्वर वाद की अवधारणा को देश से बाहर ले गए थे। मुसलमानों के लिए एक अलग राष्ट्र की मांग पर जिन्ना के डटे रहने के कारण ही लाखों मुसलमान दुनिया के एक नए भूगौलिक क्षेत्र और राजनीतिक सचाई से रूबरू हुए थे जिसे पाकिस्तान नाम दिया गया था।’’
वीरेन्द्र पंडित लिखते हैं, ‘‘यदि लाखों मुसलमान अपने नए देश पाकिस्तान नहीं जाते तो , कल्पना करिए , साल 2050 तक अविभाजित हिंदुस्तान में मुसलमानों की आबादी 75 करोड़ हो जाती और यह विश्व में सबसे बड़ा मुस्लिम देश होता । इस लिहाज से , जिन्ना, गौतम बुद्ध, चाणक्य और आदिशंकर के बाद सबसे महान हिंदुस्तानी थे।’’ लेखक का कहना है कि महात्मा गांधी ने यह दिखावा किया था कि वह बंटवारे के हक में नहीं थे लेकिन कहीं गहराई में उन्हें इस बात को लेकर संतोष था कि बंटवारे के बाद हिंदु्स्तान एक ऐसा देश होगा जो अपनी हिंदू विरासत और मूल्यों के अनुसार जीवन जी सकेगा। वह कहते हैं, ‘‘गांधी ने जिन्ना को पाकिस्तान की मांग करने के लिए प्रोत्साहित किया और इसके गठन के साथ ही हिंदुस्तान का मध्ययुगीन काल समाप्त हो गया।’’
‘‘रिटर्न आफ दी इन्फिडेल’’एक कहानी है जो बताती है कि हिंदुस्तान ने किस तरह ईसाइयत और इस्लाम को भारतीय उप महाद्वीप से बाहर का रास्ता दिखाया। यह किताब मुख्य रूप से सभ्यताओं के विकास और विनाश की कहानी है। किताब में कहा गया है कि भारत, चीन और जापान के प्राचीन धर्मों में आस्था रखने वालों को ईसाइयत और इस्लामी काफिर मानते हैं। इन दोनों धर्मौं ने पिछले दो हजार साल में या तो धर्मांतरण से या फिर दूसरे जरिए से इन्हें मिटाने की कोशिश की। लेखक के मुताबिक यह कालखंड विश्व पटल पर उन्हीं काफिरों की वापसी का है। इसकी शुरुआत 1904 में जापान के हाथों रूस की शिकस्त से हुई।
यह किताब बताती है कि किस तरह से प्राचीन सभ्यताओं और संस्कृतियों ने अपनी केंचुली उतारी और खुद को नया जीवन प्रदान किया। 19वीं और 20वीं शताब्दी में, विश्व यूरोपीय और जापानी शक्तियों के उत्थान, पतन और विनाश का गवाह बना और उधर, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद वैश्विक शक्ति का पलड़ा अमेरिका और उसके समकालीन सोवियत संघ की ओर झुक गया और अब 21वीं सदी में यह धीरे धीरे ब्राजील, रूस, भारत, चीन तथा दक्षिण अफ्रीका (ब्रिक्स) की ओर करवट ले रहा है।
किताब के एक अध्याय ‘‘द पाइप्ड पाइपर’’ में कहा गया है कि जिन्ना में हर वो खूबी थी जो उनके अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी महात्मा गांधी में नहीं थीं। हालांकि जिन्ना और गांधी का समीकरण एक और एक, दो का था, दोनों मिलकर एक दूसरे को पूरा करते थे और वो उस कहानी के प्रमुख किरदार थे जिसमें हिंदुस्तान में इस्लाम का उत्थान और पतन हुआ।
इसमें कहा गया है, ‘‘एक दूसरे के बिना जिन्ना और गांधी शून्य होते, वो बारी बारी से एक दूसरे के कंधे पर पैर रखकर ऊपर चढ़े। गांधी को यह कला आती थी कि वह खुद जो चाहते थे, उसे जिन्ना से कैसे करवाना है। उदाहरण के लिए, जनवरी 1940 में गांधी ने जिन्ना को ‘‘देशभक्त ’’ कहा, जिस पर जिन्ना ने इस आरोप को नकारते, ‘‘मैं यह बता दूं कि हिंदुस्तान एक राष्ट्र नहीं है, एक देश नहीं है। यह विभिन्न राष्ट्रीयताओं से मिलकर बना एक महाद्वीप है – जिसमें हिंदु और मुस्लिम दो प्रमुख राष्ट्र हैं।’’ ऐसे दर्जनों उदाहरण मिल जाएंगे जब महात्मा गांधी ने केवल उकसावे मात्र से जिन्ना से अपनी मन की बात मनवाई और इसी उकसावे में ‘‘बांसुरी वाले’’ की तरह जिन्ना खुद और साथ ही अपने समुदाय के लोगों को लेकर एक नई दुनिया बसाने चले गए -ठीक उसी तरह से, जैसे मोजेस ने जीसस से पहले मिस्र से यहूदियों को ललचाया था।
इसी पृष्ठभूमि में ये सवाल उठना लाजिमी है -गांधी ने पाकिस्तान की मांग करने के लिए जिन्ना को कैसे अपने जाल में फंसाया? कैसे केरल के मालाबार में हिंदुओं के नरसंहार को बांबे के मालाबार हिल्स स्थित जिन्ना के बंगले से नियंत्रित किया गया, जो कि 1947 के बंटवारे के दौरान मची मार काट से कहीं अधिक बड़े पैमाने पर हुआ था? और कैसे 1906 में बंगाल का विफल विभाजन प्रयास, 1947 के हिंदुस्तान के सफल विभाजन का आधार बना? यह किताब इन्हीं तमाम सवालों के जवाब तलाश करती है और वह भी बिना आलोचनात्मक हुए।
किताब कई रोचक तथ्य समेटे हुए है कि किस प्रकार जिन्ना का असली नाम ‘‘मामदभाई जिनियाभाई ठक्कर’’ यानि एम जे ठक्कर था। जिन्ना अपनी जन्मतिथि 20 अक्तूबर 1875 से संतुष्ट नहीं थे और उन्होंने बाद में इसे बदलकर 25 दिसंबर 1876 कर लिया, और ऐसा उन्होंने अपनी जन्मतिथि को जीसस क्राइस्ट के जन्म की तारीख के बराबर करने के लिए किया।
वितास्ता प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किताब के इस अध्याय के अंत में कहा गया है, ‘‘चाणक्य के बाद, यह जिन्ना थे जिन्होंने हिंदुस्तान को असली राजनीति सिखाई कि – समाज के मंथन से एक राष्ट्र जन्म लेता है और अक्सर शांति और सर्वप्रियता जैसे जुमलों को छोड़कर उसे रक्त सागर से बाहर निकलना पड़ता है।’’ गांधी और जिन्ना के साथ ही हिंदुस्तान का 711 में शुरू हुआ मध्ययुगीन काल समाप्त होता है।