Aurangzeb Debate in Maharashtra Politics: महाराष्ट्र की राजनीति में मुगल शासक औरंगजेब को लेकर पिछले कई दिनों से अच्छी-खासी बहस चल रही है। यह बहस महाराष्ट्र से निकलकर राजनीतिक लिहाज से देश के सबसे बड़े प्रांत उत्तर प्रदेश के अलावा बाकी हिंदी राज्यों में भी फैल गयी है। टीवी चैनल और सोशल मीडिया पर भी औरंगजेब के शासन को लेकर इतिहास के पन्नों को पलट-पलट कर तमाम तरह के तर्क दिए जा रहे हैं।

औरंगजेब को लेकर यह बहस फिल्म ‘छावा’ के बड़े पर्दे पर आने के बाद शुरू हुई। लेकिन महाराष्ट्र में सपा के अध्यक्ष अबु आजमी के मुगल शासक औरंगजेब को क्रूर नहीं बताने के बाद मानो आग में घी पड़ गया।

आजमी के बयान को बीजेपी के नेताओं ने लपक लिया और अब इसके विरोध में पूरे महाराष्ट्र के अंदर जोरदार प्रदर्शन हो रहे हैं। हालात यह हैं कि बीजेपी के कई नेताओं ने मांग की है कि महाराष्ट्र में औरंगजेब की कब्र को तोड़ दिया जाना चाहिए। लगभग 12 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले महाराष्ट्र में औरंगजेब को लेकर बीते कई दशकों से बहस चल रही है। ऐसा नहीं है कि औरंगजेब को लेकर पहली बार महाराष्ट्र या इसके बाहर बड़ी राजनीतिक बहस हुई हो लेकिन इस बार यह मामला काफी आगे बढ़ गया है।

आइए, थोड़ा समझने की कोशिश करते हैं कि औरंगजेब का महाराष्ट्र से क्या रिश्ता है और महाराष्ट्र की राजनीति में इस मुगल शासक को लेकर कब से विवाद चल रहा है।

49 साल तक शासक रहा औरंगजेब

औरंगजेब का पूरा नाम मुही अल-दीन मुहम्मद है। औरंगजेब ने भारत पर 49 साल तक शासन किया और अपने जीवन के अंतिम 25 साल उन इलाकों में बिताए जो मौजूदा वक्त में महाराष्ट्र में आते हैं। महाराष्ट्र में जब औरंगजेब का शासन था, उस वक्त मुगलों और मराठाओं के बीच जबरदस्त युद्ध हुआ था। मराठा साम्राज्य के सैनिकों ने मुगल बादशाह औरंगजेब को आगे बढ़ने से रोक दिया था इसलिए महाराष्ट्र के इतिहास में मराठा शासकों और मराठा गौरव को बहुत सम्मान दिया जाता है जबकि औरंगजेब को खलनायक माना जाता है।

कैसा था औरंगजेब का शासन, भारत और पाकिस्तान में इस मुगल शासक के बारे में इतिहासकारों ने क्या कहा?

Chhava movie Aurangzeb controversy, Abu Azmi Aurangzeb statement, Chhava film Abu Azmi remarks
छावा फिल्म के बाद शुरू हुई औरगंजेब को लेकर बड़ी बहस। (Photo/Instagram/@maddockfilms)

1689 में मुगलों ने छत्रपति शिवाजी महाराज के बेटे छत्रपति संभाजी महाराज को पकड़ लिया था और यातनाएं दिए जाने के बाद उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया था। इस वजह से मराठा समुदाय के बीच औरंगजेब की पहचान एक कट्टर दुश्मन की बन गई है। ‘छावा’ फिल्म के आने के बाद इसमें इजाफा हुआ है। समाज सुधारक ज्योतिबा फुले ने शिवाजी की प्रशंसा में जो गीत लिखा था उसमें औरंगजेब की आलोचना की थी।

दक्षिणपंथी विचारधारा का समर्थन करने वाले और हिंदू संगठनों के कार्यकर्ता लगातार औरंगजेब को अत्याचारी शासक बताते रहे हैं। महाराष्ट्र ऐसा राज्य है जहां पर मराठा और मुगलों की लड़ाई से जुड़ी कहानियां यहां के लोगों के बीच में आम हैं।

शिवसेना के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे ने पहली बार मराठों और मुगलों के बीच हुई लड़ाइयों को लोगों के सामने राजनीतिक रूप से रखा और मुसलमानों की तुलना औरंगजेब से की। इसके बाद जिस तरह की सांप्रदायिक राजनीति महाराष्ट्र में हुई, उसका असर यह हुआ कि औरंगाबाद नगर निगम की सत्ता पर शिवसेना को काबिज होने का मौका मिला।

…औरंगजेब को औरंगाबाद की मिट्टी में दफना दिया

बालासाहेब ठाकरे ने 1988 में औरंगाबाद नगर निगम चुनाव में शिवसेना की जीत के बाद लिखा था, ‘300 सालों से औरंगजेब का भूत इस देश को सताता रहा… 300 साल बाद इतिहास ने खुद को दोहराया है और ‘मर्द मराठों’ ने औरंगजेब को उसी औरंगाबाद की मिट्टी में दफना दिया है।’

शिवसेना ने उठाई थी औरंगाबाद का नाम बदलने की मांग

औरंगाबाद का नाम बदले जाने को लेकर भी लंबे वक्त तक महाराष्ट्र में राजनीति गर्म रही। शिवसेना ने सबसे पहले औरंगाबाद का नाम बदलकर संभाजी नगर रखने की मांग उठाई थी और वह लगातार इस मांग को उठाती रही। 1995 में शिवसेना जब औरंगाबाद नगर निगम में सत्ता में थी तो उसने इसका नाम बदलने का प्रस्ताव पारित किया था लेकिन इसे लागू होने में काफी वक्त लग गया।

2022 में कांग्रेस-एनसीपी और शिवसेना की महा विकास अघाड़ी की सरकार गिरने से ठीक पहले उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री के तौर पर जो कुछ अंतिम फैसले लिये थे, उनमें से एक औरंगाबाद का नाम बदलकर संभाजी नगर करना था लेकिन बीजेपी की अगुवाई वाली महायुति की सरकार ने उद्धव ठाकरे के फैसले को रद्द करके फिर से औरंगाबाद का नाम बदलकर संभाजी नगर रखने का ऐलान किया था।

करनाल के युद्ध में नादिर शाह की जीत ने कैसे भारत में मुगल साम्राज्य का हमेशा के लिए अंत कर दिया?

Nadir Shah Battle of Karnal 1739, Mughal Empire decline, Nadir Shah invasion of India, Nadir Shah vs Mughal Empire,
नादिर शाह ने मोहम्मद शाह ‘रंगीला’ को हराया था करनाल की लड़ाई में। (Wikimedia Commons/Indian Express)

अकबरुद्दीन ओवैसी आए थे औरंगजेब की कब्र पर

‘छावा’ फिल्म ने तो औरंगजेब को लेकर चल रहे विवाद को तेज किया ही है। इससे पहले भी औरंगजेब को लेकर बहस किसी न किसी वजह से हो चुकी है। 2022 में जब AIMIM के नेता अकबरुद्दीन ओवैसी औरंगजेब की कब्र पर आए थे तब भी इसे लेकर विवाद भड़क गया था। 2023 में औरंगजेब की तस्वीर और वीडियो अपलोड करने के मामले में महाराष्ट्र पुलिस ने कई मुस्लिम युवकों को गिरफ्तार कर लिया था।

जून, 2023 में जब देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री थे तब कोल्हापुर में हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद उन्होंने कुछ लोगों को ‘औरंगजेब की औलाद’ बताया था और कहा था कि हिंसा वाले हालात इसलिए बने क्योंकि ‘एक खास समुदाय के कुछ लोग औरंगज़ेब का महिमामंडन करते हैं।’

पाकिस्तान के इस मदरसे को क्यों कहा जाता है ‘यूनिवर्सिटी ऑफ जिहाद’? आत्मघाती हमले में हुई थी छह लोगों की मौत

Pakistan Darul Uloom Haqqania blast, University of Jihad bombing, Pakistan madrasa Darul Uloom Haqqania explosion,
पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में है दारुल उलूम हक्कानिया। (Photo: Reuters)

महाराष्ट्र में ऐसे भी नेता हैं जो खुलकर औरंगजेब की तारीफ करते हैं। वंचित बहुजन अघाड़ी के अध्यक्ष प्रकाश अंबेडकर 2023 में औरंगजेब की कब्र पर गए थे और वहां फूल चढ़ाए थे। अंबेडकर ने तब कहा था, ‘औरंगजेब की कब्र पर जाने में क्या गलत है? वह एक मुगल सम्राट था, जिसने यहां 50 साल तक शासन किया। क्या हम इतिहास को मिटा सकते हैं?’

कुल मिलाकर छावा फिल्म और अबु आजमी की टिप्पणियों के बाद न सिर्फ महाराष्ट्र बल्कि इसके बाहर भी औरंगजेब को लेकर चल रही बहस का अंत होता नहीं दिखता। खासतौर पर तब जब बीजेपी के नेताओं ने औरंगजेब की कब्र को तोड़ने की मांग उठा दी है। बीजेपी के अलावा हिंदू संगठनों ने भी औरंगज़ेब के मुद्दे पर जिस तरह का तगड़ा विरोध प्रदर्शन किया है, उससे ऐसा नहीं लगता कि यह विवाद जल्दी खत्म होगा। ऐसे में इस विवाद का असर न सिर्फ महाराष्ट्र बल्कि उत्तर भारत के हिंदी राज्यों में भी बड़े पैमाने पर होने से इनकार नहीं किया जा सकता।

महाकुंभ में क्यों नहीं गए बड़े विपक्षी नेता, क्लिक कर जानिए क्या इससे कांग्रेस को राजनीतिक नुकसान होगा?