इस साल माउंट एवरेस्ट चढ़ाई सीजन में पहली बार दो पर्वतारोहियों की मौत की खबर सामने आई है। मरने वालों में एक भारत के पश्चिम बंगाल से हैं और दूसरे फिलीपींस के नागरिक हैं। समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, यह घटना गुरुवार को हुई जब दोनों पर्वतारोही दुनिया की सबसे ऊंची चोटी फतह करने की कोशिश कर रहे थे।

भारतीय पर्वतारोही की पहचान

मृत भारतीय पर्वतारोही की पहचान 45 वर्षीय सुभ्रता घोष के रूप में हुई है। वह पश्चिम बंगाल के निवासी थे। द हिमालयन टाइम्स के मुताबिक, सुभ्रता एवरेस्ट की चोटी (29,032 फीट) तक पहुंच चुके थे, लेकिन उसके बाद हिलेरी स्टेप के नीचे उनकी मौत हो गई।

नेपाल की ट्रेकिंग कंपनी स्नोई होराइजन ट्रेक्स एंड एक्सपेडिशन के बोधराज भंडारी ने बताया कि, “सुभ्रता ने हिलेरी स्टेप के नीचे से नीचे उतरने से मना कर दिया था।” फिलहाल पर्वत से उनके शव को नीचे लाने की कोशिश की जा रही है। मृत्यु का सही कारण पोस्टमॉर्टम के बाद ही पता चलेगा।

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हिलेरी स्टेप एक खतरनाक जगह मानी जाती है, जो 8,000 मीटर (26,250 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है। इस क्षेत्र को “डेथ ज़ोन” कहा जाता है क्योंकि यहां ऑक्सीजन की मात्रा बहुत कम होती है और इंसान लंबे समय तक जीवित नहीं रह सकता।

फिलीपींस के पर्वतारोही की मौत टेंट में हुई

दूसरे पर्वतारोही की पहचान फिलीपींस के 45 वर्षीय फिलिप II सैंटियागो के रूप में हुई है। वे बुधवार देर रात दक्षिण कोल (South Col) में चढ़ाई करते समय थक गए थे और चौथे कैंप में आराम करते हुए उनकी मौत हो गई।

सुभ्रता घोष और सैंटियागो दोनों स्नोई होराइजन ट्रेक्स की एक अंतरराष्ट्रीय पर्वतारोहण टीम का हिस्सा थे।

एवरेस्ट सीजन क्या है?

नेपाल में मार्च से मई के बीच पर्वतारोहण सीजन होता है। इस साल नेपाल सरकार ने 459 पर्वतारोहण परमिट जारी किए हैं और इस हफ्ते करीब 100 पर्वतारोही एवरेस्ट की चोटी तक पहुंच चुके हैं।

मई महीना एवरेस्ट चढ़ाई के लिए सबसे अनुकूल माना जाता है क्योंकि तब मौसम शांत, साफ और अपेक्षाकृत गर्म होता है। इसी वजह से इस समय को “वेदर विंडो” कहा जाता है।

इतिहास के अनुसार, 23 मई को सबसे ज्यादा लोग एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचे हैं — 1950 से अब तक इस दिन 1,712 चढ़ाइयाँ दर्ज की गई हैं। उसके बाद 21 मई का नंबर आता है, जब 1,487 लोगों ने शिखर फतह किया।

जून से भारी मानसूनी बर्फबारी और तेज़ हवाओं के कारण चढ़ाई खतरनाक हो जाती है, वहीं सर्दियों में अत्यधिक ठंड और बर्फीले तूफान के चलते पर्वतारोहण लगभग असंभव हो जाता है। हालांकि कुछ पर्वतारोहियों ने पतझड़ (सितंबर–अक्टूबर) में भी प्रयास किए हैं, लेकिन उस समय मौसम की अनिश्चितता अधिक होती है और वेदर विंडो बहुत छोटी होती है।

(इनपुट: रॉयटर्स, पीटीआई, द हिमालयन टाइम्स, आउटसाइड मैगजीन)