दुनिया के सबसे ताकतवर मुल्क अमेरिका में एक बार फिर नए राष्ट्रपति के लिए चुनाव होने जा रहा है। इस बार के चुनाव में 5 नवंबर को मतदान होगा। चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार कमला हैरिस और रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप आमने-सामने हैं। दोनों के बीच मुकाबला बेहद कड़ा माना जा रहा है।
अमेरिका के चुनाव में प्रेसिडेंशियल डिबेट का काफी महत्व होता है। प्रेसिडेंशियल डिबेट में दोनों पार्टियों के नेता मंच पर आकर देश में चल रहे तमाम मुद्दों पर सवालों के जवाब देते हैं और अपनी राय भी लोगों के सामने रखते हैं।
अमेरिका में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों द्वारा नेशनल टेलीविजन पर एक-दूसरे से बहस करने की परंपरा पुरानी है। ऐसा माना जाता है कि उम्मीदवारों के बीच होने वाली इस प्रेसिडेंशियल डिबेट का चुनाव में असर होता है।
आईए आपको बताते हैं कि अमेरिका के इतिहास में पांच सबसे प्रभावशाली प्रेसिडेंशियल डिबेट्स कौन-कौन सी हैं।
निक्सन बनाम कैनेडी, 1960
अमेरिका में पहली बार टेलीविजन चैनल पर राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों के बीच बहस 26 सितंबर 1960 को हुई। तब जॉन एफ कैनेडी और रिचर्ड निक्सन आमने-सामने थे। इस डिबेट के बाद कैनेडी काफी पॉपुलर हो गए थे और निक्सन के राजनीतिक करियर को झटका लगा था।
कहा जाता है कि निक्सन इस चुनाव में इसलिए हार गए थे क्योंकि वह प्रेसिडेंशियल डिबेट के दौरान काफी थके हुए और ज्यादा उम्र के लग रहे थे जबकि कैनेडी मेकअप करके आए थे और वह यंग और आकर्षक दिख रहे थे।
ब्रॉडकास्टिंग कंपनी सीबीएस के उस वक्त अध्यक्ष रहे फ्रैंक स्टैंटन ने कहा था कि कैनेडी काफी खुश दिख रहे थे और ऐसा लग रहा था कि निक्सन की मौत हो गई हो।
ऐसा माना जाता है कि इस बहस का चुनाव पर कितना असर पड़ा, इस कुछ ज्यादा ही बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया है हालांकि इस बात को लेकर कोई विवाद नहीं है कि इस डिबेट की वजह से जॉन एफ कैनेडी की राजनीति में एक बड़ी इमेज बनी।
कार्टर बनाम फोर्ड, 1976 की डिबेट
इसके बाद दूसरी डिबेट जिसकी काफी चर्चा होती है, वह 1976 में हुई कार्टर बनाम फोर्ड की डिबेट है। वॉटरगेट स्कैंडल के बाद निक्सन का इस्तीफा हुआ था और फोर्ड राष्ट्रपति बने थे। यह कहा जाता है कि एक बयान की वजह से शायद गेराल्ड आर. फोर्ड को चुनाव में हार मिली थी।
फोर्ड से हेलसिंकी समझौते के बारे में एक सवाल पूछा गया था। इसके जवाब में फोर्ड ने कहा था कि पूर्वी यूरोप पर सोवियत का कब्जा नहीं है और फोर्ड के रहते हुए भी ऐसा कभी नहीं होगा।
अपने बयानों की वजह से फोर्ड को काफी नुकसान हुआ और विशेषकर ऐसे लोगों ने उन्हें वोट नहीं दिया जो यूरोप के कम्युनिस्ट रूल से भाग कर अमेरिका आए थे। इलेक्टोरल कॉलेज में दोनों के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिला और चुनाव का अंतिम फैसला ओहयो में हुआ। अंत में फोर्ड सिर्फ 11 हजार वोटों के अंतर से चुनाव हार गए।
बुश सीनियर बनाम क्लिंटन बनाम पेरोट, 1992
1992 में बुश सीनियर बनाम क्लिंटन बनाम पेरोट की प्रेसिंडेशियल डिबेट कई मायनों में अलग थी। इस चुनाव में तीन बहस सिर्फ 9 दिनों के अंदर हुई और लोगों के बीच इसे लेकर दिलचस्पी भी पैदा हुई।
इस चुनाव में एक बात और भी थी कि डिबेट के अलग-अलग फ़ॉर्मेट थे। पहली बार टाउन हॉल स्टाइल डिबेट को भी प्रेसिडेंशियल डिबेट में शामिल किया गया था। डिबेट्स के दौरान उम्मीदवार लेक्ट्रन के पीछे खड़े होने के बजाय स्टूल पर बैठे रहे या मंच पर घूमते रहे और उनके तीनों ओर दर्शक थे।
अहम बात यह थी कि इस बार प्रेसिडेंशियल डिबेट में दो के बजाय तीन उम्मीदवार थे। इनमें रिपब्लिकन बुश सीनियर, डेमोक्रेट क्लिंटन और रिफॉर्म पार्टी के उम्मीदवार रॉस पेरोट भी थे।
पेरोट को इस चुनाव में पॉपुलर वोट में से 18.9% वोट मिले थे। बुश सीनियर का चुनाव प्रचार संभालने वाले लोगों का मानना था कि पेरोट की वजह से बुश सीनियर दूसरी बार राष्ट्रपति का चुनाव नहीं जीत पाए। हालांकि कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि पेरोट की वजह से शायद ही चुनाव के नतीजे पर कोई असर पड़ा हो।
बुश जूनियर बनाम गोर, 2000
21वीं सदी के पहले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में जॉर्ज डब्ल्यू बुश जो कि पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज एच.डब्ल्यू. बुश के बड़े बेटे थे को उपराष्ट्रपति अल गोर से पॉपुलर वोट में हार मिली थी लेकिन इलेक्टोरल कॉलेज में वह बहुमत से एक वोट ज्यादा हासिल कर राष्ट्रपति बन गए थे।
प्रेसिडेंशियल डिबेट के दौरान गोर को टीवी स्क्रीन पर कई बार आंखें घुमाते हुए और हताशा में सिर हिलाते हुए देखा गया। तीसरी बहस के दौरान गोर अपने प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार के लेक्ट्रन के पास चले गए और उन्हें डराने की कोशिश की। जब यह प्रेसिडेंशियल डिबेट खत्म हुई तो कई एक्सपर्ट्स को ऐसा लगा कि गोर को जीत मिली है लेकिन नतीजे इसके बिलकुल उलट थे।
बाइडेन को हटना पड़ा दौड़ से
पिछला अमेरिकी चुनाव भी यादगार था जब बाइडेन और ट्रंप एक-दूसरे के आमने-सामने थे। उस चुनाव में बाइडेन को जीत मिली थी। इस बार के चुनाव में भी बाइडेन ही डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार थे तब इस साल जून में एक डिबेट में उनके प्रदर्शन को बेहद शर्मनाक माना गया। इसे लेकर नेटफ्लिक्स के को-फाउंडर रीड हेस्टिंग्स ने द इकोनॉमिस्ट में लिखा था- बाइडेन को क्यों हट जाना चाहिए? उन्होंने लिखा था कि यह देखना दुखद था कि एक बुजुर्ग व्यक्ति शब्दों और फैक्ट्स को याद करने के लिए संघर्ष कर रहा है।
इसके बाद जो बाइडेन ने ऐलान कर दिया था कि वह अगला राष्ट्रपति चुनाव नहीं लड़ेंगे। बाइडेन ने राष्ट्रपति पद की रेस से हटने के बाद डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रेसिडेंशियल कैंडिडेट के तौर पर उपराष्ट्रपति कमला हैरिस का नाम आगे बढ़ाया था।