वामपंथी उग्रवाद प्रभावित सुदूरवर्ती क्षेत्रों से अपने घायल सैनिकों की हवाई रास्ते से निकासी केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के लिए अब भी चुनौती बना हुआ है। ऐसे में बल रात में लैंंिडग की सुविधा वाले और अधिक हेलिपैड बनाने पर विचार कर रहा है। अर्धसैनिक बल ने विभिन्न राज्यों में नक्सल विरोधी अभियानों के लिए अपनी कुल ताकत (1.20 लाख कर्मियों) का 40 फीसद तैनात किया है। बल ने अपने जवानों और विशेष जंगल युद्ध इकाइयों जैसे कमांडो बटालियन फार रेसोल्यूट एक्शन (कोबरा) को एक निर्णायक लड़ाई के लिए छत्तीसगढ़, झारखंड और बिहार के कुछ सबसे अधिक हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में तैनात किया है।

वरिष्ठ अधिकारियों पास उपलब्ध दस्तावेजों के मुताबिक बल छत्तीसगढ़ (दक्षिण बस्तर) के घने जंगलों में 30 नए अग्रिम संचालन अड्डे (एफओबी) स्थापित कर रहा है, जबकि झारखंड और बिहार में ऐसे छह स्थानों की तलाश ‘माओवादियों के गढ़ में गहरी पैठ बनाने और उन्हें कड़ी टक्कर देने’ की रणनीति के तहत की जा रही है।

सरकार ने कहा है कि कुछ वर्षों में देश में वामपंथी उग्रवाद (एलडब्लूई) जिलों की संख्या 126 से घटकर 70 हो गई है और वह इस संख्या को और कम करने के लिए काम कर रही है। एलडब्लूई अभियान ग्रिड में तैनात एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘सरकार की इलाके में गहरी पैठ बनाने की रणनीति को लागू करते समय किसी भी आकस्मिक चुनौती को पूरा करने के लिए हेलिपैड एक पूर्व आवश्यकता है।

इन दूरदराज के इलाकों में एक मुठभेड़ या आइईडी विस्फोट के दौरान, घायल सैनिकों की हवाई निकासी सबसे महत्वपूर्ण है ताकि उन्हें त्वरित चिकित्सा देखभाल मिल सके और उनकी जान बचाई जा सके।’ उन्होंने कहा, अब, यहां एक समस्या है। ‘ऐसे कई उदाहरण हैं जब एक अभियान में शामिल सैनिकों ने अपने पास एक लैंंिडग स्थल को सुरक्षित कर लिया, लेकिन हेलिकाप्टरों के आने में देरी हुई या कई तकनीकी कारणों से पायलटों ने उड़ान भरने से इनकार कर दिया तो उस हालात में ‘स्वर्णिम समय’ (गोल्डन पीरियड) गंवाना पड़ता है।

छत्तीसगढ़ में सीआरपीएफ की विशेष जंगल युद्ध इकाई ‘कोबरा’ के साथ काम करने वाली एक बटालियन के कमांंिडग आफिसर ने कहा, ‘नक्सल विरोधी अभियानों के लिए हेलिकाप्टर संचालन मानक संचालन प्रक्रियाओं द्वारा नियंत्रित होता है और एक बार जब पायलट कहते हैं कि हवाई निकासी संभव नहीं है,आपके पास घायल सैनिकों को निकालने के लिए अन्य साधन तलाशने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता।’ उन्होंने कहा कि मौसम की स्थिति और प्राकृतिक प्रकाश की उपलब्धता दो सबसे महत्त्वपूर्ण कारण हैं, जिससे हेलिकाप्टरों के पहुंचने में या तो देरी हो रही है या उड़ानें रद्द कर दी गई हैं, जिससे जमीन पर काम कर रहे जवानों में भारी आक्रोश है।

अधिकारी ने कहा कि इस तरह के मुद्दों का अक्सर इस हालात में काम करने वाले सभी सुरक्षा बलों द्वारा सामना किया जाता है और इसलिए प्रमुख लड़ाकू शाखा के रूप में सीआरपीएफ अधिक हेलिपैड बनाने, उन्हें सुरक्षित करने और रोशन करने के तरीकों पर विचार कर रहा है जिससे इन राज्यों के अंदरूनी क्षेत्रों में हेलिकाप्टरों के उतरने की संख्या बढ़ सके। उन्होंने कहा कि तीन राज्यों में सीआरपीएफ के सेक्टर कार्यालयों को यह काम सौंपा गया है।