धनशोधन (काले धन को वैध बनाना) की रोकथाम के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है, जिसमें विभिन्न हितधारकों के बीच सहयोग और समन्वय शामिल है। वित्तीय संस्थाओं को वित्तीय अपराध से प्रभावी ढंग से लड़ने के लिए अधिकारियों और विभिन्न संगठनों के साथ सहयोग और भागीदारी करने की आवश्यकता है। धनशोधन से निपटने के लिए व्यक्तियों में शिक्षा और जागरूकता संदिग्ध गतिविधियों की पहचान करने में सहायक होती है, इस दिशा में काम किया जाना सहायक हो सकता है। धनशोधन के मामलों में धनशोधन रोकथाम अधिनियम 2005 और अन्य संबंधित कानूनों के अंतर्गत अपराध से जुड़े मामलों की तुरंत जांच, सुनवाई और दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा देने जैसे प्रभावी उपायों की भी जरूरत है।

धनशोधन की प्रवृत्ति मोटे तौर पर काले धन से जुड़ी हुई है। इसका अपना एक बड़ा मायाजाल है, जिसको समझना आसान नहीं। धनशोधन में अवैध रूप से प्राप्त धन यानी काले धन को छिपा कर एक प्रक्रिया द्वारा वैध बना कर दिखाया जाता है। यह एक प्रकार का वित्तीय अपराध है, जिसमें अवैध रूप से अर्जित धन को जानबूझ कर वित्तीय और आर्थिक स्रोतों में लाया और प्रसारित किया जाता है। यहां से अपराधी कानूनी रूप से उस धन का उपयोग सामान, संपत्तियां और सेवाएं खरीदने के लिए कर सकते हैं। चूंकि यह एक प्रकार का अपंजीकृत धन है, इसलिए सरकारें उस पर कर नहीं लगा पातीं। इससे एक तरफ सरकारों का राजस्व कम होता है तो दूसरी तरफ अवैध और खतरनाक गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है।

यह विश्वव्यापी समस्या है। अकेले यूनाइटेड किंगडम को हर वर्ष धनशोधन से सौ अरब पौंड से ज्यादा का नुकसान होता है। यूएनओडीसी यानी ‘यूनाइटेड नेशंस आफिस आप ड्रग्स एंड क्राइम’ का अनुमान है कि हर वर्ष दुनिया भर में धनशोधित की जाने वाली राशि वैश्विक जीडीपी के दो से पांच फीसद तक है। यह राशि 715 अरब से 1.87 ट्रिलियन यूरो के बीच है। भारत में भी धनशोधन के माध्यम से आए काले धन की एक समांतर अर्थव्यवस्था चल रही है। काले धन को विदेशी बैंकों में भी जमा किया जाता रहा है। भारतीयों द्वारा विदेशी बैंको में जमा किया गया काला धन एक अनुमान के मुताबिक लगभग 72 लाख 80 हजार करोड़ रुपए है। इस पैसे का इस्तेमाल शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और बुनियादी ढांचे के बजाय आपराधिक गतिविधियों में होता है। इनमें नशीली दवाओं की तस्करी, मानव तस्करी, जुआ, आतंकवाद आदि गैरकानूनी गतिविधियों का वित्तपोषण करने जैसे कार्य शामिल हैं।

धनशोधन में सलंग्न व्यक्ति पहले अवैध तरीके से धन प्राप्त करते हैं। इसमें अक्सर बड़ी मात्रा में नकदी जमा करना या नकदी से मूल्यवान संपत्ति खरीदना शामिल होता है, जिसे बाद में बेचा जा सके। इसमें बड़ी रकम को तोड़कर वित्तीय प्रणाली में कई छोटी जमा राशियों में डाल दिया जाता है। अपराधी ध्यान भटकाने के लिए विभिन्न इलेक्ट्रानिक हस्तांतरणों के माध्यम से बड़ी जमा राशियों को अलग-अलग खातों में फैला देते हैं। दूसरे चरण में अवैध रूप से प्राप्त धन को अलग-अलग खातों में और अक्सर विभिन्न देशों में स्थानांतरित कर देते हैं। फिर इसको निवेश के माध्यम से या संपत्ति खरीद कर उसका रूप बदला जाता है। तीसरे चरण में ‘शोधित’ धन, जो अब छिपा हुआ है और जिसका अवैध स्रोत तक पता नहीं लगाया जा सकता, उसको औपचारिक अर्थव्यवस्था में वापस लाया जाता है।

धनशोधन की प्रक्रिया में काले धन की प्राप्ति और उसके निपटारे के लिए कई तरीके इस्तेमाल किए जाते हैं। इनमें क्रिप्टोकरेंसी द्वारा लेनदेन आजकल काफी प्रचलित है। इसमें गुमनाम खरीदारों और विक्रेताओं द्वारा आनलाइन नशीली दवाओं और सेवाओं का व्यापार किया जाता है। इसमें वित्तीय लेनदेन में होने वाली आपराधिक गतिविधियों का पता लगाना बहुत मुश्किल होता है। इसी प्रकार व्यवसायी द्वारा बेची जाने वाली वस्तुओं या सेवाओं के चालान की राशि कम या अधिक दिखाई जाती है। इनमें अंतर की राशि अपराधी नकद प्रदान कर सकते हैं, जिसे वे फिर इलेक्ट्रानिक माध्यम से वापस जमा करवा कर उसको वैध दिखा सकते हैं। धनशोधन के अंतर्गत फर्जी कंपनी, जिन्हें ‘शेल कंपनियां’ भी कहा जाता है, उनमें निवेश या लेनदेन द्वारा धन-शोधन का तरीका भी काफी प्रचलित है। इन फर्जी कंपनियों का अस्तित्व केवल कागजों पर होता है। कंपनी के नाम पर कर्ज और सरकार से करों में छूट भी लेते हैं। इन सब फर्जी कामों के माध्यम से बहुत-सा काला धन जमा कर लेते हैं। अगर कोई तीसरा पक्ष वित्तीय अभिलेखों की जांच करना भी चाहे, तो उसको धन के स्रोत और स्थान के रूप में जांच को भ्रमित करने के लिए झूठे दस्तावेज दिखा दिए जाते हैं। ये कंपनियां निवेशकों को धोखा देने के लिए अपने वित्तीय विवरणों में हेरफेर करती और फर्जी मुनाफा दिखाती हैं। इन कंपनियों के शेयरों की खरीद-बिक्री आदि के कागजी लेनदेन के मध्यम से भी धनशोधन किया जाता है।

पिछले दस साल में 5155 मामले दर्ज

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) समय-समय पर फर्जी कंपनियों पर कार्रवाई करती है। सेबी ने ऐसी करीब पांच लाख कंपनियों की पहचान की है और शुरुआती तौर पर इनमें से 331 कंपनियों की सूची जारी की है। इनमें जो कंपनियां शेयर बाजार में सूचीबद्ध हैं, उनके कारोबार पर प्रतिबंध लगाया गया है। देश में धनशोधन की रोकथाम हेतु धनशोधन रोकथाम कानून 2005 लागू है। इस कानून के जरिए आर्थिक अपराधों में काले धन के इस्तेमाल को रोकना, धनशोधन में शामिल या उससे मिली संपत्ति को जब्त करना और धनशोधन संबंधी अन्य अपराधों पर अंकुश लगाने का प्रयास किया जाता है। सरकार का दावा है कि धनशोधन मामलों में जांच और कार्रवाई पिछले दस वर्षों में छियासी गुना बढ़ी है। ईडी ने पिछले दस वर्षों के दौरान धनशोधन रोकथाम कानूनों के तहत 5155 मामले दर्ज किए हैं। इन मामलों में गिरफ्तारी और संपत्तियों की जब्ती भी लगभग पच्चीस गुना बढ़ी है।

धनशोधन का देश की अर्थव्यवस्था और समाज पर गंभीर विपरीत प्रभाव पड़ता है। मगर दुनिया के कई देशों में धनशोधन रोकथाम उनकी प्राथमिकता सूची में नहीं है। इसलिए धनशोधन में शामिल जटिलताओं के चलते अपराधियों की पहचान करना और उन पर मुकदमा चलाना एक बड़ी चुनौती है। वित्तीय संस्थान धनशोधन से निपटने में सहायता कर सकते हैं। वे यह सत्यापित कर सकते हैं कि वैध व्यक्तियों से कारोबार किया जा रहा है या नहीं। आंतरिक नियंत्रणों की व्यवस्था और विभिन्न व्यावसायिक व्यवहारों का सटीक दस्तावेज बनाए रखना तथा उनको एक निश्चित समयावधि तक संधारित रखना भी बहुत सहायक हो सकता है। फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) ने ‘वित्तीय अपराध के खिलाफ लड़ाई में भागीदारी’ शीर्षक अपनी रपट में सिफारिश की है कि सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के वित्तीय संस्थान सूचना साझा करने में सहयोग करें।

धनशोधन की रोकथाम के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है, जिसमें विभिन्न हितधारकों के बीच सहयोग और समन्वय शामिल है। वित्तीय संस्थाओं को वित्तीय अपराध से प्रभावी ढंग से लड़ने के लिए अधिकारियों और विभिन्न संगठनों के साथ सहयोग और भागीदारी करने की आवश्यकता है। धनशोधन से निपटने के लिए व्यक्तियों में शिक्षा और जागरूकता संदिग्ध गतिविधियों की पहचान करने में सहायक होती है, इस दिशा में काम किया जाना सहायक हो सकता है। धनशोधन के मामलों में धनशोधन रोकथाम अधिनियम 2005 और अन्य संबंधित कानूनों के अंतर्गत अपराध से जुड़े मामलों की तुरंत जांच, सुनवाई और दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा देने जैसे प्रभावी उपायों की भी जरूरत है, तभी इसकी रोकथाम संभव है।