मध्य प्रदेश में बीजेपी ने बड़ा खेल करते हुए मोहन यादव को अपना नया मुख्यमंत्री घोषित कर दिया है। उनकी ताजपोशी से सभी हैरान है, जिस नाम की चर्चा शुरुआत से कहीं नहीं हुई, उसी को पार्टी ने सबसे बड़ा पद दे दिया है। बड़ी बात ये है कि मोहन यादव भी पिछड़े समाज से आते हैं और संघ से उनकी नजदीकी शुरुआत से रही है। उनकी ताजपोशी ने बता दिया है कि एक बार फिर मोदी-शाह ने बड़ा खेल किया है। यहां जानिए मोहन यादव की ताजपोशी के कारण और बीजेपी की बड़ी रणनीति की जानकारी-

छत्तीसगढ़ के बाद एमपी में पिछड़ा चेहरा, 2024 का नेरेटिव क्लियर

बीजेपी ने छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय को अपना मुख्यमंत्री बनाया। वे आदिवासी समाज से आते हैं, पिछड़े समुदाय के बड़े नेता हैं और साफ छवि भी रखते हैं। अब एमपी में भी ऐसा ही देखने को मिल गया है। पार्टी ने एक बार फिर पिछड़े चेहरे पर ही दांव चला है, ओबीसी समुदाय से आने वाले मोहन यादव की ताजपोशी की गई है। बीजेपी ने तय रणनीति के तहत दोनों ही राज्यों के लिए पिछड़े वर्ग से अपने नेता को चुना है। ये नहीं भूलना चाहिए देश की सियासत में ओबीसी वर्ग मायने रखता है।

देश में इस समय 45 फीसदी के करीब ओबीसी वोटर है, वहां भी हिंदी पट्टी राज्य उत्तर प्रदेश में 54 प्रतिशत के करीब इस समाज की उपस्थिति है। बीजेपी ने पिछले लोकसभा चुनाव में 44 फीसदी ओबीसी वोट हासिल किया था, ऐसे में अब एक बार फिर 2024 के रण से पहले पार्टी बड़े स्तर पर ओबीसी पॉलिटिक्स खेल रही है। मोहन यादव की ताजपोशी भी उसी के तहत की गई है।

अखिलेश-तेजस्वी को याद रखते हुए यादव कार्ड!

मोदी-शाह जब भी कोई फैसला लेते हैं तो उसके दूर्गामी परिणाम जरूर देखने को मिलते हैं। हर कोई इस बात का जिक्र तो कर रहा है कि मोहन यादव एक बड़े ओबीसी चेहरा हैं, लेकिन ये समझना भी जरूरी है कि वे एक ‘यादव’ है। यानी कि यादव वोटर को भी वे सीधे-सीधे बीजेपी के लिए साध सकते है। इस समय बिहार में अगर लालू प्रसाद ने आरजेडी के लिए यादव वोट को एकमुश्त रखा है तो उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का ये परंपरागत वोटबैंक बना हुआ है। अब एक यादव मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी ने सीधे-सीधे बिहार में तेजस्वी तो यूपी में अखिलेश को सियासी संदेश देने का काम कर दिया है।

एमपी में नई पीढ़ी को मौका देना जरूरी

बीजेपी का मकसद छत्तीसगढ़ में भी एक नई पीढ़ी को मौका देना दिखा तो एमपी में वहीं कवायद दिख गई है। मोहन यादव को मुख्यमंत्री बना साफ कर दिया गया है कि अब शिवराज सिंह चौहान और प्रह्लाद सिंह पटेल जैसे दिग्गजों की जिम्मेदारी कुछ कम कर दी जाएगी। आने वाले सालों में तो नए नेताओं की लीडरशिप ही राज्य की सियासत तय करने जा रही है। 2013 में पहली बार विधायक बनकर आए मोहन यादव पर भी ये बात सटीक साबित होती है। खुद को लो प्रोफाइल रखने वाले मोहन अब एमपी में बीजेपी की भविष्य की राजनीति की बिसात बिछाने जा रहे हैं।

संघ से नजदीकी और कट्टर बीजेपी विचारधारा

संघ की पृष्ठभूमि से किसी नेता के बाहर निकलने के बीजेपी में बड़े मायने रहते हैं। संघ का अनुशासन उन नेताओं के व्यक्तित्व में भी झलकता है और शुरुआत से ही संगठन चलाने की उनकी कुशलता रहती है। अब एमपी में मोहन यादव को चुनने के पीछे भी एक बड़ा कारण ये है कि वे संघ के करीब रहे हैं। उन्होंने शिवराज सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री के तौर पर काम कर रखा है।