केन्द्र की मोदी सरकार को सत्ता में आए 4 साल पूरे हो गए हैं। अब चूंकि 2019 के लोकसभा चुनावों में सिर्फ 1 साल का वक्त बचा है तो मोदी सरकार ने उसकी तैयारी अभी से ही शुरु कर दी है। यही वजह है कि आजकल मोदी सरकार के मंत्री, नेता और कार्यकर्ता सरकार द्वारा पिछले 4 सालों में किए गए विकास कार्यों का लेखा-जोखा लेकर जनता के बीच जा रहे हैं और मोदी सरकार के पक्ष में हवा बनाने की कोशिश कर रहे हैं। खुद पीएम मोदी भी आजकल सार्वजनिक मंचों से अपनी सरकार के दौरान किए गए कामों का बखान करते नजर आते हैं। प्रिंट, इलेक्ट्रोनिक, डिजिटल माध्यमों के साथ ही पारंपरिक तौर पर भी मोदी सरकार के कामकाज का पूरा प्रचार प्रसार किया जा रहा है। लेकिन यहां सवाल उठता है कि क्या सरकार जो तस्वीर दिखा रही है, वह सही है? क्या सचमुच मोदी सरकार के 4 साल के कार्यकाल में इतना विकास हुआ है, जितना सरकार या उसके नुमाइंदे प्रचारित कर रहे हैं?

बता दें कि सरकार की आधिकारिक वेबसाइट mygovernment.in पर अगर आप जाएंगे तो देखेंगे कि सरकार ने उज्जवला योजना, मुद्रा योजना, विद्युतीकरण, स्वच्छ भारत योजना, जन-धन योजनाओं का जिक्र किया है और यह भी बताया है कि इन योजनाओं से अभी तक लाखों-करोड़ो लोग लाभान्वित हो चुके हैं। वहीं दूसरी तरफ इस तस्वीर का दूसरा पहलू भी है।

मुद्रा योजनाः सरकार का दावा है कि मुद्रा योजना के तहत 12 करोड़ लोगों को रोजगार के लिए करीब 6 लाख करोड़ रुपए का लोन दिया जा चुका है। वहीं जब आम जनता से इस बारे में सवाल किए गए तो उन्होंने सरकार के दावों को खोखला बताया। एबीजी न्यूज के पत्रकार से बात करते हुए रायपुर के सतीश नामक व्यक्ति का कहना है कि मुद्रा योजना के तहत उन्होंने 50 हजार का लोन मिलना था, लेकिन मिला सिर्फ 20 हजार रुपए का। वहीं कुछ लोगों का कहना है कि जब वह मुद्रा योजना के तहत लोन के लिए बैंक गए तो उन्हें बताया गया कि बजट खत्म हो चुका है। इसके साथ ही सरकार ने मुद्रा योजना के तहत जो लोन बांटे हैं, वो शिशु श्रेणी में बांटे हैं। बता दें कि शिशु श्रेणी के तहत अधिकतम 50 हजार रुपए तक का ही लोन दिया जा सकता है। यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि जो भी लोन बांटे गए हैं, उनमें से सिर्फ 25 प्रतिशत ही नए कारोबारियों को बांटे गए हैं, बाकि वो लोग हैं जो पहले से ही कुछ काम-धंधा कर रहे थे। ऐसे में मुद्रा योजना की सफलता पर बड़ा प्रश्नचिन्ह लग जाता है।

उज्जवला योजनाः सरकारी आंकड़ों के अनुसार, उज्जवला योजना के तहत पिछले 4 सालों में 39,877,723 एलपीजी गैस कनेक्शन बांटे गए हैं। लेकिन इन दावों की पोल खोलती एक सच्चाई यह भी है कि ग्रामीण इलाकों में कई गरीब परिवारों को गैस कनेक्शन मिल ही नहीं पाया है, जो कि इस योजना के असल हकदार थे। एबीपी न्यूज के एक पत्रकार के साथ बातचीत में बलिया की शारदा देवी से बात की। शारदा देवी का कहना है कि कनेक्शन तो मिल चुका हैं, लेकिन अब गैस सिलेंडर भरवाने के उनके पास पैसे ही नहीं है। ऐसे में फिर से चूल्हे पर खाना बना रही हैं। वहीं बलिया की ही मानती देवी को कई बार कोशिशों के बाद भी उऩ्हें उज्जवला गैस कनेक्शन नहीं मिला है। सीमा देवी तो उन महिलाओं में शामिल हैं, जिन्हें पीएम मोदी ने खुद अपने हाथ से गैस कनेक्शन दिया था, लेकिन इनकी कहानी भी वही है कि जब पैसे होते हैं तो गैस भरवा ली जाती है, वरना फिर से चूल्हे का रुख करना पड़ता है।

ये तो बात हुई मुद्रा योजना और उज्जवला योजना की, इसी तरह सरकार की अन्य योजनाएं भी सवालों के घेरे में हैं। कहा जा सकता है कि इन योजनाओं के पीछे सरकार की अच्छी सोच है, लेकिन ये योजनाएं ठीक तरह से क्रियान्वित नहीं किए जाने के कारण अपना सही उद्देश्य पूरा करने में अभी तक नाकामयाब नजर आ रही हैं।