नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) ने सोमवार को तय समय से एक साल की देरी के बाद समूचे देश भर में हुए अपराध की घटनाओं पर ताजा आंकड़े जारी कर दिए। अधिकारियों ने बताया कि नए संशोधित आंकड़ों में धार्मिक कारणों से हुई हत्याओं और मॉब लिंचिंग में हुई मौतों के आंकड़ों को सार्वजनिक नहीं किया गया। जबकि, इसे बाकायदा तैयार किया था।

सूत्रों के मुताबिक एजेंसी ने एनसीआरबी के पूर्व निदेशक ईश कुमार के नेतृत्व में बड़े स्तर पर डाटा सुधार की प्रक्रिया शुरू की थी। ईश न हत्या की श्रेणी के तहत प्रोफार्मा को संशोधित किया और मॉब लिंचिंग तथा धार्मिक कारणों से हुई हत्या को इसमें जोड़ने का काम किया था। डाटा संग्रह की प्रक्रिया में शामिल एक अधिकारी ने बताया, “यह बेहद आश्चर्यजनक है कि डाटा प्रकाशित ही नहीं हुआ। यह डाटा तैयार था और पूरी तरह से संकलित तथा विश्लेषित था। इस मामले में सिर्फ उच्च ओहदों पर बैठे लोग ही बता सकते हैं कि आखिरकार इसे प्रकाशित क्यों नहीं किया गया।

गौरतलब है कि 2015-16 के दौरान देश भर में लिंचिंग से संबंधित घटनाओं में हुए इजाफे के बाद इसे इसे डाटा में शामिल करने की प्रक्रिया शुरू हुई। अधिकारी ने बताया कि इसके पीछे यह विचार था कि इस तरह के अपराध को रोकने के लिए डाटा सरकार को नई नीति बनाने के संबंध में सहायक सिद्ध हो सकते हैं। अधिकारी के मुताबिक किसी भी व्यक्ति की लिंचिंग (पीट-पीटकर मार डालना) कई कारणों के चलते होती हैं, जिनमें चोरी, बच्चा चोरी, मवेशियों की तस्करी या सांप्रदायिकता शामिल है।

एनसीआरबी की नई रिपोर्ट के मुताबिक, 2016 की तुलना में राज्य के खिलाफ अपराधों की घटनाओं में 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इस श्रेणी में देशद्रोह, देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने और दूसरों के बीच सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने जैसे अपराध शामिल हैं। डेटा से पता चलता है कि 2016 में 6,986 अपराधों के मुकाबले 2017 में 9,013 आपराधिक घटनाएं हुईं। आपराधिक वारदातों के मामले में हरियाणा (2,576) नंबर एक पर है, जबकि उत्तर प्रदेश (2,055) दूसरे नंबर पर। हालांकि, इन दोनों राज्यों में सबसे ज्यादा अपराध होने के पीछे सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने की वारदातों का अधिक होना है।

राजद्रोह के मामलों में असम (19) पहले स्थान पर है, जबकि हरियाणा (13) दूसरे स्थान पर रहा। गौर करने वाली बात यह है कि जम्मू-कश्मीर में राजद्रोह का सिर्फ एक ही मामला सामने आया। जबकि, छत्तीसगढ़ और पूर्वोत्तर के राज्यों में असम को छोड़कर बाकी सभी जगह राजद्रोह के एक भी मामले दर्ज नहीं हुए।