केंद्र सरकार ने आयुष्मान भारत स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्र का नाम बदलकर आयुष्मान आरोग्य मंदिर (AAM) कर दिया है। अब इस फैसले का देश के पूर्वोत्तर राज्यों  मिजोरम और नागालैंड में विरोध का सामना करना पड़ रहा है। सवाल यह है कि इन राज्यों को इस नाम से क्या समस्या है? तो इसका जवाब वहां की ईसाई आबादी और उनकी भावनाओं से जोड़कर दिया जा रहा है। दोनों ही राज्यों की ओर से समाज और चर्च का हवाला देकर पुराना नाम ( आयुष्मान भारत स्वास्थ्य एवं कल्याण) रखे रहने की वकालत की गई है। फिलहाल केंद्र की ओर से इस मामले पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। 

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय आयुष्मान भारत स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों को नया नाम देने का फैसला किया था। पूरे देश भर में 1.6 लाख प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों का नेटवर्क काफी अहम माना जाता है। सरकार के फैसले के बाद इन केंद्रों को अब आयुष्मान आरोग्य मंदिर के नाम से जाना जाता है, जिसकी टैगलाइन है ‘आरोग्यम परमम धनम’ (स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन है)।

मिजोरम ने जताई थी आपत्ति

भारत सरकार की ओर से नाम बदलने को लेकर नवंबर-2023 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के निदेशक एल एस चांगसन के पत्र के जरिए राज्यों को जानकारी दी थी।  बिना किसी शोर-शराबे के, केंद्र ने बाद में अपनी वेबसाइट में बदलाव कर दिए।

इस साल जनवरी में मिजोरम ने आपत्ति जताई और इससे छूट मांगी। प्रधान सचिव एस्तेर लाल रुआत्किमी ने तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव को लिखा और कहा–‘मैं मौजूदा स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों (HWC) को आयुष्मान आरोग्य मंदिर (AAM) किए जाने को लेकर अपनी चिंता व्यक्त करता हूं।’

आखिर दिक्कत क्या है?

एस्तेर लाल रुआत्किमी (Esther Lal Ruatkimi) ने लिखा केंद्र को लिखे पत्र में इस नाम से हो रही दिक्कत का ज़िक्र किया है। वह केंद्र सरकार को अवगत कराते हुए लिखती हैं, “जैसा कि आप जानते हैं, मिजोरम एक ईसाई राज्य है, जिसकी 90% से ज़्यादा आबादी ईसाई है। नाम बदले जाने से लोगों की ओर से विरोध की भावना उमड़ सकती है इसलिए मैं आपसे अनुरोध करती हूं कि कृपया मिजोरम को इस नाम बदले जाने के प्रोसेस से छूट दी जाए।”

इसके बाद फरवरी में भी मिजोरम की ओर से एक बार फिर केंद्र सरकार से संपर्क किया गया। लेटर में लिखा था, “एक बार फिर से अनुरोध किया जाता है कि मिजोरम को आयुष्मान भारत स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों का नाम बदलकर आयुष्मान आरोग्य मंदिर करने से छूट दी जाए।” मार्च में इस ही तरह की आपत्ति नागालैंड की ओर से भी जताई गई थी। राज्य के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण सचिव और आयोग के सदस्य वी केजो ने लिखा, “राज्य सरकार को इस तरह के कदम पर गंभीर आपत्ति है क्योंकि इससे राज्य के लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत होंगी और चर्च तथा नागरिक समाज की ओर से कड़ी आपत्ति जताई जा सकती है।”