जम्मू और कश्मीर के डोडा जिले में किसान अपने खेतों को भूखे बंदरों से बचाने के लिए चावल, मक्का और गेहूं जैसी फसलों के बजाय औषधीय पौधों की खेती कर रहे हैं। किसानों को यह सलाह आयुष मंत्रालय ने दी है। आयुष मंत्रालय के कृषि विशेषज्ञों ने किसानों को चावल, गेहूं और मक्का जैसी पारंपरिक फसलों के बजाय जड़ी-बूटियां उगाने की सलाह दी है, क्योंकि इससे न केवल उनकी फसलों की सुरक्षा होती है बल्कि अधिक मुनाफा भी होता है।
कौन-कौन से पौधे की खेती
डोडा में वन क्षेत्रों के पास मौजूद गांवों के कई किसानों ने इस समाधान को अपनाया है और अब खुशबू वाले पौधों जैसे लैवेंडर और टैगेटस मिनुटा के साथ-साथ ट्रिलियम (नाग-चत्री), सोसुरिया कोस्टस (कुथ), इनुला (मन्नू), सिंहपर्णी (हाथ), जंगली लहसुन और बलसम सेब (बान-काकरी) जैसे औषधीय पौधों की खेती कर रहे हैं। अधिकारियों ने कहा कि इन पौधों का स्वाद कड़वा होता है और इनमें तेज तीखी गंध होती है, जिससे ये बंदरों के लिए खाने में मुश्किल पैदा करते हैं।
आयुष मंत्रालय किसानों को दे रहा है ट्रेनिंग
एक स्थानीय व्यवसायी तौकीर बागबान ने कहा ऐसी खेती की मार्केट में काफी डिमांड है। उन्होने कहा, “आयुष मंत्रालय के अधिकारी अपने-अपने क्षेत्रों में मिट्टी, पानी और हवा की स्थिति के आधार पर फसलों की खेती करने के लिए किसानों को ट्रेनिंग दे रहा है।
किसानों की जिंदगी में इस बदलाव से काफी बेहतरी आई है। इससे किसानों की उम्मीद बढ़ गयी है। अधिकारियों ने कहा कि जम्मू और कश्मीर के चिनाब क्षेत्र में 3,000 से अधिक किसान पहले से ही जड़ी-बूटियों और सुगंधित पौधों की खेती कर रहे हैं, जिनमें से 2,500 अकेले भद्रवाह में स्थित हैं।
सरतिंगल गांव के एक किसान नवीद बट ने कहा, “इससे पहले हमने बंदरों को डराने के लिए कुत्तों को रखा ताकि बंदर भाग जाएं। एयर गन का भी इस्तेमाल किया गया। लेकिन बंदरों को दूर रखना मुश्किल था। किसान खेती छोड़ने वाले थे।