पंजाब के आईजी परमराज सिंह उमरानंगल बीहबल कलां फायरिंग मामले में पुलिस हिरासत में हैं। वहीं, बटला पुलिस 25 साल पहले मारे गए एक व्यक्ति की पहचान में जुटी है। दरअसल, वर्ष 1994 में परमराज सिंह उमरानंगल ने एनकाउंटर के दौरान एक व्यक्ति को मार दिया गया था। पुलिस रिकॉर्ड में मृत व्यक्ति की पहचान वांटेड आतंकी गुरनाम सिंह बंडाला के रूप में की गई थी। हालांकि, बंडाला को पुलिस ने घटना के चार साल बाद जिंदा पाया। इसके बाद बाद गुरदासपुर के ग्राम काला अफघना के रहने वाले एक व्यक्ति सुखपाल सिंह के परिवार ने दावा किया कि वे (सुखपाल) उमरानंगल द्वारा 1994 के मुठभेड़ के दौरान मारे गए थे।
रोपर के डीएसपी के अनुसार, उमरानंगल ने 29 जुलाई 1994 को एक एनकाउंटर में बंडाला को मारने का दावा किया था। इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए बंडाला ने कहा, “तत्कालीन रोपर एसएसपी अजित सिंह संधु, जिन्होंने बाद में आत्महत्या कर ली, और डीएसपी परमराज सिंह उमरानंगल ने मेरे कथित एनकाउंटर से पहले परिवारवालों को काफी ज्यादा प्रताडि़त किया था। वे मेरी तलाश में थे, लेकिन मुझे नहीं ढ़ूंढ़ सके। इसके बाद मेरे परिवारवालों को अखबार के माध्यम से यह पता चला कि मैं एनकाउंटर में मारा गया। इसके बाद परिजनों ने मेरा अंतिम संस्कार भी कर दिया। लेकिन जब बटला पुलिस ने मुझे 1998 में जिंदा पकड़ा तो सभी को मेरे जीवित होने की सूचना मिली।”
मानवाधिकार कार्यकर्ता कर्नल जीएस संधु (रिटायर्ड) ने सबसे पहले यह दावा किया कि 29 जुलाई 1994 को एनकाउंटर में जिस व्यक्ति को मारा गया था, वे काला अफघना के रहने वाले सुखपाल सिंह थे। संधु ने दावा किया, “घटना दिन के सुखपाल सिंह मारे गए थे। उनके शव को आतंकी गुरनाम सिंह का बताया गया क्योंकि गुरनाम 1984 से वांटेड थे और उनके उपर इनाम था। गुरनाम सिंह को जरनैल सिंह भिंडरवाला का करीबी माना जाता था। कोई भी पुलिस ऑफिसर गुरनाम सिंह को जिंदा या मृत पकड़ इनाम तथा प्रमोशन चाहता था। यही वजह है कि उमरानंगल ने किसी और को मार डाला तथा उसे गुरनाम सिंह बता दिया।”
कर्नल संधू (रिटायर्ड) और सुखपाल के परिवार ने मामले को आगे बढ़ाया। इसका असर ये हुआ कि वर्ष 2007 में अतिरिक्त महानिदेशक पुलिस (एडीजीपी) जे पी विर्दी के अधीन इसकी जांच का आदेश दिया गया। वर्ष 2010 में विर्दी की मौत हो गई और मामला ठंडा पड़ गया। इसके बाद सुखपाल सिंह की पत्नी दलबीर कौर वर्ष 2013 में हाईकोर्ट पहुंची तथा सीबीआई जांच की मांग की। उनकी मांग को देखते हुए पंजाब पुलिस ने एडीजीपी आईपीएस सहोता के अधीन जांच की सिफारिश की।
सहोता की जांच में यह बात सामने आयी कि सुखपाल सिंह की मां ने अपने बेटे की गुमशुदगी के बाद रिपोर्ट में एक व्यक्ति अवतार सिंह तारी का नाम लिया था। जांच रिपोर्ट के अनुसार, एनकाउंटर के दौरान जो व्यक्ति मारा गया, वह गुरनाम सिंह नहीं था। हालांकि, रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि इस बात के भी प्रमाण नहीं मिले हैं, कि वह सुखपाल सिंह ही थे। इस जांच रिपोर्ट के आधार पर फतेहगढ़ चुरियन पुलिस थाने में मार्च 2016 में धारा 364 तथा 365 के तहत अवतार सिंह तारी के खिलाफ मामला दर्ज किया गया।
फतेहगढ़ चुरियन पुलिस थाने के एसएचओ हरजित सिंह ने कहा, “यह प्राथमिकी 15 मार्च 2016 को दर्ज की गई। अवतार सिंह तारी पुलिस ऑफिसर नहीं है। उसका नाम एफआईआर में इसलिए दर्ज किया गया है क्योंकि मृतक की मां ने सुखपाल सिंह के अपहरण के दौरान सिर्फ उसकी ही पहचान की थी।”
प्राथमिकी दर्ज होने के तीन साल बाद भी पुलिस तारी को पकड़ने में नाकाम रही है। हाल ही में उन्हें पता चला कि उसी नाम के एक व्यक्ति को एनडीपीएस अधिनियम के तहत पटियाला जेल में बंद किया गया था। इस वर्ष फरवरी में मामले की उच्च न्यायालय में सुनवाई के के दौरान तारी को दो महीने पहले प्रोडक्शन वारंट पर लाया गया था।
एसएचओ ने आगे कहा, “हमारे पास कोई सुराग नहीं था कि अवतार सिंह तारी कौन है। हाल ही में दो महीने पहले हमने एक अवतार सिंह तारी को प्रोडक्शन वारंट पर पटियाला जेल से लाया था। उसने यह बताया था कि जिसकी हमें तलाश है, वह व्यक्ति वो नहीं है। उसे वापस पटियाला भेज दिया गया। हम अभी मामले की जांच कर रहे हैं।” हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई के लिए 1 मार्च को अगली तारीख मुकर्रर की है।