कई जलीय जंतुओं का जीवन खतरे में पड़ गया है। बड़ी संख्या में मछलियां भी मर गई हैं। मुजफ्फरनगर और बिजनौर जिलों की सीमा पर स्थित हैदरपुर आर्द्रभूमि क्षेत्र में सर्दियों के मौसम में हजारों विदेशी पक्षी कलरव करते हुए नजर आते हैं। इस क्षेत्र को पिछले साल ही रामसर स्थल के रूप में मान्यता मिली थी। गंगा और सोनाली नदी के बीच करीब सात हजार हेक्टेअर में फैला यह इलाका जैव विविधता का महत्त्वपूर्ण केंद्र है। यह हस्तिनापुर वन्यजीव अभयारण्य का एक हिस्सा होने के कारण पहले से ही संरक्षित श्रेणी में आता है।

हाल में सिंचाई विभाग ने आर्द्रभूमि की झीलों के पानी को निकालकर गंगा नदी में डाल दिया, जिससे पूरा क्षेत्र ही खाली हो गया। पानी निकालने की खबरें मीडिया में आने के बाद केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने भी इस मामले में हस्तक्षेप किया और राज्य सरकार को जलनिकासी रोकने का निर्देश दिया है। पर्यावरण मंत्रालय ने यह भी निर्देश दिया है कि राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस संरक्षित स्थल से पानी तभी निकाला जाए जब प्रवासी पक्षी उस स्थान पर न रह रहे हों।

दरअसल, इस क्षेत्र से पानी की निकासी उन किसानों के दबाव में की गई थी, जिन्होंने अपने खेतों में जल जमाव की शिकायत की थी। इस बारे में वन विभाग की सहमत ली गई थी या नहीं, यह स्पष्ट नहीं हो सका है। इस क्षेत्र का प्रबंधन सिंचाई विभाग और वन विभाग मिलकर करते हैं।
सर्दियों के मौसम में फरवरी के अंत या मध्य मार्च तक पक्षियों की तीन सौ से ज्यादा प्रजातियां इस क्षेत्र में आती हैं।

पर्यावरण मंत्रालय ने कहा है जल निकासी के लिए पक्षियों के प्रवासी पैटर्न के अनुरूप ही योजना बनाएं। दूसरी ओर, उत्तर प्रदेश के जल शक्ति राज्य मंत्री दिनेश खटीक के मुताबिक, सिंचाई विभाग को निर्देश दिया गया है कि वे आर्द्रभूमि क्षेत्र से पानी निकासी को रोकें ताकि प्रवासी पक्षियों के लिए आवश्यक पानी उपलब्ध हो सके।

हैदरपुर आर्द्रभूमि क्षेत्र मुजफ्फरनगर और बिजनौर जिलों की सीमा पर स्थित अंतरराष्ट्रीय महत्व का एक रामसर स्थल है। ईरान के शहर रामसर में दो फरवरी 1971 को एक सम्मेलन हुआ था जिसमें शामिल देशों के बीच आर्द्रभूमि क्षेत्र के संरक्षण से संबंधित एक समझौता हुआ था। यह समझौता 21 दिसंबर 1975 से प्रभाव में आ गया। रामसर स्थल की परिभाषा के मुताबिक, आर्द्रभूमि क्षेत्र ऐसा स्थान है, जहां साल में कम से कम आठ महीने पानी भरा रहता हो और जहां दो सौ से ज्यादा प्रजातियों के पक्षियों की मौजूदगी रहती हो।

हैदरपुर आर्द्रभूमि क्षेत्र हस्तिनापुर वन्यजीव अभयारण्य का एक हिस्सा होने के कारण पहले से ही संरक्षित श्रेणी में आता है। बिजनौर गंगा बैराज के करीब सात हजार हेक्टेयर क्षेत्र में स्थित हैदरपुर वेटलैंड एक मानव निर्मित झील है। साल 1984 में मध्य गंगा बैराज के निर्माण के दौरान यह बनाई गई थी ताकि बाढ़ आने पर ज्यादा पानी इस झील में चला जाए। यहां हिरन, डाल्फिन, कछुए, घड़ियाल समेत कई जानवरों, पेड़-पौधों की दर्जनों प्रजातियां, पक्षियों की तीन सौ से ज्यादा प्रजातियों के अलावा कई अन्य जलीय जीव-जंतु भी पाए जाते हैं।

स्थानीय लोगों के मुताबिक, सिंचाई विभाग ने 10 जनवरी से दो दिनों में वेटलैंड का पानी निकाल दिया जिसकी वजह से प्रवासी और अन्य पक्षी उड़ गए। आमतौर पर सिंचाई विभाग जनवरी और फरवरी के अंत में धीरे-धीरे पानी की निकासी करता है लेकिन इस बार जनवरी की शुरुआत में ही ऐसा कर दिया। पर्यावरणविदों का कहना है कि वन्यजीव अधिनियम और आर्द्रभूमि क्षेत्र अधिनियम के तहत आर्द्रभूमि से पानी निकालने पर रोक लगाई गई है और ऐसा करने से पहले सिंचाई विभाग को वन विभाग के साथ समन्वय करना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

वन विभाग के अधिकारी भी इस बात से हैरान हैं कि कैसे बिना किसी से परामर्श किए और बिना किसी की अनुमति के पूरा इलाका खाली कर दिया गया। पर्यावरणविद आशंका जता रहे हैं कि इस क्षेत्र का सूखा होना वहां की वनस्पतियों और जंतुओं के साथ ही समग्र पारिस्थितिकी पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालेगा। इस बार की गलती की वजह से यह भी हो सकता है कि प्रवासी पक्षी अगली बार यहां की बजाय किसी और आर्द्रभूमि की ओर रुख कर लें।